मुंबई: रघु मिड़ियामी तब बमुश्किल 20 साल के थे, तब उन्होंने अपनी उम्र के अन्य युवाओं के साथ मिलकर बस्तर क्षेत्र के हाल के इतिहास में सबसे शक्तिशाली और शायद सबसे लंबे (अभी भी जारी) विरोध प्रदर्शनों में से एक का नेतृत्व किया था. आज उनकी उम्र 24 साल है.
इस आंदोलन की शुरुआत बस्तर संभाग के सुकमा ज़िले के सिलगेर गांव से हुई थी, जहां 13 मई, 2021 की रात को अर्धसैनिक बलों द्वारा शिविर स्थापित किया गया था. इसका विरोध कर रहे ग्रामीणों पर 17 मई, 2021 को सुरक्षाबलों द्वारा फायरिंग की गई, इस घटना में एक 14 वर्षीय लड़के सहित तीन ग्रामीणों और लाठीचार्ज में एक गर्भवती महिला की जान चली गई थी और लगभग 18 लोग घायल हो गए थे.
इसके बाद के वर्षों में मिड़ियामी सबसे आगे रहे, उन्होंने राज्य सरकार से उसकी शोषणकारी और दमनकारी नीतियों के लिए सवाल पूछे, साथ ही क्षेत्र में बढ़ते अत्याचारों के लिए सुरक्षा एजेंसियों से भी सवाल पूछते रहे हैं. क्षेत्र में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस और प्रतिनिधि बैठकों में मिड़ियामी को हमेशा नेतृत्व करते हुए, सत्ताधारियों से बातचीत करते हुए देखा गया.
बीते 27 फरवरी को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) संगठन से कथित जुड़ाव के लिए उन्हें गिरफ्तार किया. मिड़ियामी, जो हमेशा पुलिस और प्रेस दोनों के लिए उपलब्ध थे, पर भूमिगत, प्रतिबंधित आंदोलन का हिस्सा होने का आरोप लगाया गया है.
सुकमा जिले के परलागट्टा गांव के निवासी मिड़ियामी मूलवासी बचाओ मंच (एमबीएम) के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं. यह एक जन संगठन है जो इस क्षेत्र में सरकार की दमनकारी नीतियों के जवाब में बनाया गया है.
मानवाधिकार संस्था पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने माओवादियों के इशारे पर काम करने के झूठे आरोपों में मिड़ियामी की गिरफ्तारी की कड़ी निंदा करते हुए पिछले वर्षों में एमबीएम द्वारा किए गए योगदान उल्लेख किया.
पीयूसीएल के बयान में कहा गया है कि एमबीएम पिछले तीन सालों से पूरे बस्तर संभाग में लगभग 30 लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण धरना स्थलों का नेतृत्व कर रहा है.
बयान में आगे कहा गया है कि, ‘एमबीएम के बैनर तले और स्वतंत्र रूप से बस्तर की कई मजबूत युवा आवाज़ों के साथ रघु मिड़ियामी, बस्तर में पेसा कानून और एफआरए अधिनियम के गैर-कार्यान्वयन को उजागर करने और सही करने के लिए संविधान द्वारा प्रदत्त तरीकों का उपयोग कर रहे हैं.’
मिड़ियामी को दो साल पुराने मामले में गिरफ्तार किया गया है. 5 मई, 2023 को दर्ज इस एफआईआर के सिलसिले में स्थानीय छत्तीसगढ़ पुलिस ने पहले ही दो युवकों गजेंद्र माडवी और लक्ष्मण कुंजम को गिरफ्तार कर लिया था, जिनके पास कथित तौर पर प्रतिबंधित 2,000 रुपये के नोटों के 6 लाख रुपये और प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) पार्टी से संबंधित ‘अपराधपूर्ण पर्चे’ पाए गए थे. दो दर्जन से अधिक अन्य मामलों की तरह इस मामले को भी अंततः एनआईए को सौंप दिया गया.
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एफआईआर में एजेंसी ने माडवी के एमबीएम और क्रांतिकारी किसान सभा (केकेएस) से जुड़े होने की ओर इशारा किया है. एनआईए ने एफआईआर में एमबीएम और केकेएस दोनों को सीपीआई (माओवादी) का ‘फ्रंटल संगठन’ बताया है. जबकि एफआईआर 2023 में दर्ज की गई थी, एमबीएम पर अक्टूबर 2024 में ही प्रतिबंध लगाया गया था.
मिड़ियामी के वकील बताते हैं कि मामले में उनकी कोई खास भूमिका नहीं बताई गई है. मिड़ियामी की वकील शालिनी गेरा ने द वायर से कहा, ‘एफआईआर और उसके बाद की जांच से यह पता नहीं चलता है कि 2023 में गिरफ्तार किए गए लोगों से जब्त किए गए कथित नगद में मिड़ियामी की कोई भूमिका थी.’
हाल ही में बाइक दुर्घटना में घायल हुए मिडियामी को दंतेवाड़ा जिले से गिरफ्तार किया गया. एनआईए ने दावा किया है कि जांच के दौरान उनकी भूमिका सामने आई. एनआईए ने माडवी और कुंजम के खिलाफ पहले ही आरोप पत्र दाखिल कर दिया है.
मिडियामी की गिरफ्तारी के बाद जारी एक नोट में एनआईए ने दावा किया, ‘यह संगठन सीपीआई (माओवादी) के लिए धन के संग्रह, भंडारण और वितरण में लगा हुआ है, ताकि उनके भारत विरोधी एजेंडा को आगे बढ़ाया जा सके. एनआईए जांच के अनुसार, रघु मिड़ियामी सीपीआई (माओवादी) के नेतृत्व वाले विरोध प्रदर्शनों को मंच देने और बनाए रखने के लिए स्थानीय स्तर पर धन के वितरण के लिए नोडल व्यक्ति था.’
एनआईए ने दस बिंदुओं में मिड़ियामी की गिरफ़्तारी का आधार बताया है. इसके पीछे कारण सुरक्षा शिविरों और सरकारी परियोजनाओं के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन हैं, जिसका सिर्फ़ मिड़ियामी ही नहीं बल्कि पूरे क्षेत्र के ग्रामीण विरोध कर रहे हैं.
विरोध करने का अधिकार, जो भारतीय संविधान के तहत गारंटीकृत एक मौलिक अधिकार है, इस क्षेत्र में लगभग अपराध है, क्योंकि विरोध प्रदर्शन में भाग लेने वाले व्यक्तियों को अपराधी माना जाता है और उन पर कठोर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) कानून के तहत मामला दर्ज किया जाता है.
मिड़ियामी और क्षेत्र के अन्य आदिवासी जिन शिविरों के खिलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं, वे निगरानी और ग्रामीणों के खिलाफ़ अत्याचार के लिए कुख्यात हैं. इस क्षेत्र से सुरक्षा बलों के हाथों मानवाधिकारों के उल्लंघन के असंख्य मामले दर्ज किए गए हैं.
छत्तीसगढ़ पुलिस और एनआईए दोनों ने दावा किया है कि माडवी और कुंजम को नकदी के साथ गिरफ्तार किया गया था. अब, एनआईए ने दावा किया है कि मिड़ियामी प्रतिबंधित आतंकी संगठन को धन वितरित करने में शामिल था, हालांकि उसने यह स्पष्ट रूप से नहीं बताया कि माडवी और कुंजम से कथित रूप से जब्त की गई नकदी में मिड़ियामी की क्या भूमिका थी.
उल्लेखनीय है कि पिछले साल अक्टूबर में छत्तीसगढ़ सरकार ने एक अधिसूचना के ज़रिये एमबीएम को प्रतिबंधित संगठन घोषित किया था. हालांकि, अधिसूचना में राज्य सरकार ने संगठन पर किसी आपराधिक कृत्य का आरोप नहीं लगाया. इसके बजाय, अधिसूचना में कहा गया है कि संगठन ‘माओवादी प्रभावित क्षेत्रों’ में राज्य और केंद्र सरकार की पहलों का विरोध कर रहा है और सुरक्षा शिविरों की स्थापना का विरोध करके क्षेत्र में विकास परियोजनाओं में बाधा बन रहा है.
पिछले साल जून में बीजापुर पुलिस ने एक और एमबीएम नेता, 25 वर्षीय आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता सुनीता पोट्टम को गिरफ्तार किया था. उसे एक मामले में उठाया गया और फिर 12 मामलों में आरोपी के रूप में दिखाया गया. पिछले साल क्षेत्र के कई युवा आदिवासी अधिकार नेताओं को गिरफ्तार किया गया और कई मामलों में उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया. कार्यकर्ताओं के खिलाफ दमनात्मक कार्रवाई बस्तर क्षेत्र में हुई ‘मुठभेड़ों’ के नाम पर हत्याओं की खतरनाक संख्या के समानांतर चल रही है.
अब तक पुलिस ने मिड़ियामी के खिलाफ केवल एक ही मामला दर्ज किया है, इसके अलावा 2021 में उनके, पोट्टम और कुछ अन्य एमबीएम कार्यकर्ताओं के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था, जब वे रायपुर में छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुइया उइके से मिलने जा रहे थे. उन सभी पर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था, जिसे बढ़ते कोविड-19 मामलों के कारण क्षेत्र में लगाया गया था. कई अधिकार कार्यकर्ताओं ने तब पुलिस पर राज्यपाल तक पहुंचने से रोकने के लिए कार्यकर्ताओं को जानबूझकर अपराधी बनाने का आरोप लगाया था.
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