नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने महिलाओं के लिए सार्वजनिक स्थानों को असुरक्षित बनाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आह्वान करते हुए कहा है कि जब तक उत्पीड़न और भय से मुक्त वातावरण नहीं बनाया जाता, तब तक महिलाओं की प्रगति पर सभी चर्चाएं सतही हैं.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि वास्तविक सशक्तिकरण वही है, जब महिलाएं बिना किसी डर के जीने और स्वतंत्र रूप से घूमने के अधिकार को पा लेंगी.
अदालत ने यह टिप्पणियां 28 फरवरी को पारित एक फैसले में कीं. यह मामला 2015 में एक सार्वजनिक बस में अपनी महिला सह-यात्री के साथ यौन उत्पीड़न के लिए सजा पाए हुए व्यक्ति से जुड़ा था. हाईकोर्ट ने केस में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया.
साल 2019 में ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दोषी ठहराया और उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 354 (महिला की शील भंग करने के इरादे से उस पर आपराधिक बल का प्रयोग) के तहत दंडनीय अपराध के लिए एक साल के साधारण कारावास और धारा 509 (महिला की गरिमा भंग करने के इरादे से शब्द, इशारा या कृत्य) के तहत छह महीने की सजा सुनाई.
उनकी अपील के बाद सत्र न्यायालय ने भी इसी फैसले को बरकरार रखा था.
अब इस मामले में किसी भी तरह की नरमी बरतने से इनकार करते हुए हाईकोर्ट ने सख्त कानूनों के बावजूद सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के उत्पीड़न का सामना करने पर गहरी चिंता और दुख जाहिर किया.
अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि इस मामले में सार्वजनिक परिवहन पीड़िता के लिए असुरक्षित जगह बन गया, और आरोपी, जो अनुचित इशारे करने और महिला को जबरन चूमने के बाद मौके पर ही पकड़ा गया था, के प्रति कोई भी अनुचित नरमी भविष्य के अपराधियों को प्रोत्साहित करेगी.
अदालत ने कहा, ‘मामले के तथ्य और आरोपी के कृत्य दर्शाते हैं कि लड़कियां आज भी सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षित नहीं हैं. मामले के तथ्य यह भी दर्शाते हैं कि यह एक कड़वी सच्चाई है.’
महिलाओं की सुरक्षा सामूहिक जिम्मेदारी
कोर्ट ने आगे जोड़ा, ‘ऐसे मामलों में फैसले समाज और समुदाय को संदेश भेजने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं… कि अगर हम वास्तव में महिलाओं की तरक्की, उनके आगे बढ़ने की आकांक्षा रखते हैं, तो यह जरूरी है कि हम सबसे पहले ऐसा माहौल बनाएं जहां वे सुरक्षित हों – उत्पीड़न, अपमान और भय से मुक्त हों- और जो लोग सार्वजनिक स्थानों को असुरक्षित बनाते हैं, उनसे सख्ती से निपटा जाएगा. जब तक ऐसा नहीं होता, महिलाओं की प्रगति पर सभी चर्चाएं सतही ही रहेंगी.
अदालत ने कहा कि यह मामला एक ‘दुर्लभ उदाहरण’ है जहां बस कंडक्टर और एक अन्य सह-यात्री जैसे पीड़ित के लिए अपरिचित लोगों ने अभियोजन पक्ष के समर्थन में पुलिस और ट्रायल कोर्ट के सामने खुलकर गवाही देते हुए ‘सराहनीय साहस’ दिखाया.
कोर्ट ने जोड़ा कि ऐसे उदाहरण महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सामूहिक जिम्मेदारी के महत्व को मजबूत करते हैं; समाज के हर व्यक्ति को उत्पीड़न के खिलाफ खड़ा होना चाहिए.