नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (3 फरवरी) को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि दृष्टिबाधित उम्मीदवार न्यायिक सेवा के लिए अनुपयुक्त नहीं पाए जा सकते.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने 122 पन्नों के फैसले में कहा, ‘यदि कोई एक सिद्धांत है जो संविधान के आधार का हिस्सा है, तो वह है ‘समावेशी होना’, जिस पर समानता का सिद्धांत भी टिका हुआ है.’
अदालत ने कहा कि अब समय आ गया है कि संसद संविधान के अनुच्छेद 15 में संशोधन कर ‘विकलांगता’ को गैर-भेदभाव के आधार के रूप में शामिल करने पर विचार करे.
जस्टिस पारदीवाला, जिन्होंने निर्णय लिखा है, ने कहा, ‘अनुच्छेद 15 में भेदभाव न करने के आधार के रूप में ‘विकलांगता’ को शामिल नहीं किया गया था. इस स्पष्ट चूक को दूर करने के लिए अनुच्छेद 15 में एक संवैधानिक संशोधन करना विकलांगता अधिकार आंदोलन की लंबे समय से मांग रही है.’
शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी भी अप्रत्यक्ष भेदभाव, जिसके परिणामस्वरूप विशेष रूप से सक्षम व्यक्तियों को न्यायिक सेवा से वंचित किया जाता है, चाहे वह कठोर कट-ऑफ या प्रक्रियात्मक बाधाओं के कारण हो, को मौलिक समानता को बनाए रखने के लिए हटाया जाना चाहिए. न्यायिक सेवा के अंतर्गत पदों पर आवेदन करने के लिए अपेक्षित शैक्षणिक योग्यता रखने वाले विशेष रूप से सक्षम व्यक्तियों को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए.
अदालत ने कहा कि उम्मीदवारों की उपयुक्तता के आकलन में छूट तब दी जा सकती है जब संबंधित श्रेणी में चयन के बाद नियमों के अनुसार पर्याप्त संख्या में विशेष रूप से सक्षम व्यक्ति उपलब्ध न हों.
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा परीक्षा (भर्ती एवं सेवा शर्तें) नियम, 1994 के कुछ प्रावधानों से संबंधित याचिकाओं पर निर्णय कर रहा था, तथा राजस्थान न्यायिक सेवा नियम, 2010 में संशोधन करके उन्हें आरपीडब्ल्यूडी अधिनियम के अनुरूप बनाने की मांग पर विचार कर रहा था.
इस निर्णय से दृष्टिबाधित और अल्प दृष्टि वाले उम्मीदवारों के लिए मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा परीक्षा में भाग लेने का रास्ता खुल गया है, जिन्हें पहले मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा परीक्षा (भर्ती और सेवा की शर्तें) नियम 1994 के नियम 6ए के तहत राज्य न्यायिक सेवा में नियुक्ति से बाहर रखा गया था.
पीठ ने कहा कि मध्य प्रदेश नियम 1994 के नियम 6ए में किया गया संशोधन संविधान के विरुद्ध है, और इसलिए इसे इस हद तक रद्द किया जाता है कि इसमें दृष्टिबाधित व्यक्ति शामिल नहीं हैं जो उस पद के लिए आवेदन करने हेतु शैक्षणिक रूप से योग्य हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक सेवा के तहत पदों पर आवेदन करने के लिए अपेक्षित शैक्षणिक योग्यता रखने वाले विशेष रूप से सक्षम व्यक्तियों पर लागू होने वाली ‘अतिरिक्त आवश्यकताओं से संबंधित’ मध्य प्रदेश नियमों के नियम 7 के प्रावधान को भी खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि यह ‘समानता के सिद्धांत और उचित समायोजन के सिद्धांत का उल्लंघन करता है…’
इस प्रावधान में तीन साल की प्रैक्टिस अवधि या पहले प्रयास में 70% का कुल स्कोर की अतिरिक्त आवश्यकता निर्धारित की गई थी.
हालांकि, अदालत ने कहा कि उम्मीदवारों की उपयुक्तता का आकलन करने में छूट दी जा सकती है, जब उनके संबंधित श्रेणियों में चयन के बाद पर्याप्त विशेष रूप से सक्षम व्यक्ति उपलब्ध नहीं होते हैं.
फैसले में यह अनुरोध भी स्वीकार कर ली गई कि दृष्टिबाधित अभ्यर्थियों के लिए अलग कट-ऑफ बनाए रखा जाए तथा उसके अनुसार चयन किया जाए.