जयपुर: भाजपा शासित राजस्थान में एक सरकारी संस्कृति केंद्र ने 26 अप्रैल को समलैंगिक संबंधों पर आधारित नृत्य कार्यक्रम के लिए दी गई अनुमति रद्द कर दी. बताया गया है कि यह निर्णय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की सांस्कृतिक शाखा संस्कार भारती द्वारा आपत्ति जताए जाने के बाद लिया गया.
‘समाज’ शीर्षक वाला यह नृत्य कार्यक्रम 26 अप्रैल की शाम को जवाहर कला केंद्र (जेकेके) के मध्यवर्ती ऑडिटोरियम में प्रस्तुत किया जाना था.
प्रसिद्ध वास्तुकार चार्लेया कोरेया द्वारा डिज़ाइन किया गया, जेकेके एक अंतरराष्ट्रीय बहु-कला और संस्कृति केंद्र है जो राजस्थान सरकार के कला और संस्कृति विभाग द्वारा संचालित है. यह केंद्र कई प्रदर्शनियों, थिएटर प्रदर्शनों और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों की मेजबानी करता है, और 1993 में इसके उद्घाटन के बाद से शहर में कलात्मक गतिविधियों का केंद्र है.
‘प्रोडक्शन युवाओं को अनुशासनहीनता का संदेश देता है’
नृत्य कथा के निर्देशक, निर्माता और कोरियोग्राफर जैनिल मेहता ने कहा, ‘नृत्य कथा दो पुरुषों, समीर और मिराज के बीच रोमांटिक रिश्ते के बारे में है. ‘समाज’ नाम इन दो पात्रों के नामों से लिया गया है. यह रिश्तों में संतुलन के बारे में बात करता है और हम कहानी कहने के तत्वों जैसे कि रंगमंच, संगीत और कविता को शामिल करते हैं. हम इसे पहले ही मुंबई और अहमदाबाद जैसे शहरों में मंचित कर चुके हैं.’
मेहता ने बताया कि 21 अप्रैल को जेकेके प्रशासन ने 26 अप्रैल को मध्यावर्ती ऑडिटोरियम में समाज के प्रदर्शन के लिए उनकी बुकिंग की पुष्टि की थी.
मेहता ने कहा, ‘लेकिन 24 अप्रैल को जेकेके प्रशासन ने मुझे बताया कि उन्हें ऐसे लोगों से आपत्ति पत्र मिले हैं, जिन्हें लगता है कि यह प्रदर्शन भारतीय मूल्यों के अनुरूप नहीं होगा. मुझे संस्कार भारती का एक पत्र भी दिखाया गया, जिसमें कहा गया था कि यह भारतीय संस्कृति और सामाजिक मूल्यों के विरुद्ध है.’
संस्कार भारती की ओर से 24 अप्रैल को जेकेके के अतिरिक्त महानिदेशक को लिखे गए पत्र में कहा गया है कि यह नाटक एक ऐसी कहानी पर आधारित है जो समलैंगिक रिश्तों को बढ़ावा देती है और यह जनता की सामान्य भावनाओं से मेल नहीं खाती.

इसमें कहा गया है, ‘भारतीय परंपरागत मान्यताओं और सामाजिक व्यवस्थाओं के प्रति विद्रोही दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया जा रहा है. स्वतंत्रता के नाम पर अत्यधिक व्यक्तिवादी और अनियंत्रित विचारों को बढ़ावा दिया जा रहा है. प्रेम के नाम पर पूरा नाटक युवाओं को अनुशासनहीनता और सामाजिक मूल्यों से विमुख होने का संदेश देता है.’
ये कुछ कारण हैं जो संस्कार भारती ने हिंदी में लिखे पत्र में गिनाए हैं, जिसमें कहा गया है कि समाज नाटक के मंचन की अनुमति न दी जाए.
इस महीने की शुरुआत में संस्कार भारती एक विज्ञप्ति जारी करने के लिए खबरों में थी, जिसका शीर्षक था, ‘हास्य विधाओं में भारतीय मूल्य–बोध की पुनः स्थापना आवश्यक’.
25 वर्षीय मेहता ने कहा कि उन्होंने 24 अप्रैल को जेकेके की एक समिति के समक्ष अपना पक्ष रखा था, लेकिन उन्हें बताया गया कि नृत्य कथा भारतीय संस्कृति के खिलाफ है.
मेहता ने द वायर से कहा, ‘यह वाकई हैरानी की बात है कि समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने के बाद भी ऐसा हो रहा है. जेकेके प्रशासन ने मुझसे कहा था कि अगर मैं कला का निर्माण करना चाहता हूं, तो मुझे ऐसी कला बनानी चाहिए जो भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाए. मुझे जेकेके में प्रदर्शन करने की बहुत उम्मीद थी, क्योंकि यह जयपुर का सबसे बड़ा सांस्कृतिक केंद्र है. कलाकारों के लिए किसी तरह का समर्थन होना चाहिए, जो इस मामले में गायब था.’
मेहता ने बताया कि जेकेके में लगाए गए नृत्य कथा के पोस्टर और स्टैंडीज़ को बाद में प्रदर्शन रद्द होने के बाद हटा दिया गया.
‘शर्मनाक है कि राजस्थान सरकार ने एक युवा कलाकार को अपनी प्रतिभा दिखाने से रोका’
जेकेके ने 26 अप्रैल को मेहता को शो रद्द करने के बारे में पत्र जारी किया, जिस दिन यह प्रदर्शन होना था.
सांस्कृतिक केंद्र के अतिरिक्त महानिदेशक द्वारा हस्ताक्षरित निरस्तीकरण पत्र में कहा गया है कि जेकेके को विभिन्न संगठनों और व्यक्तियों द्वारा प्रदर्शन पर आपत्ति जताने की शिकायतें मिलने के बाद एक समिति ने कार्यक्रम का मूल्यांकन किया.
जेकेके द्वारा हिंदी में लिखे गए रद्द करने के पत्र में कहा गया है, ‘विषय-वस्तु समिति ने पाया है कि आपका कार्यक्रम केंद्र के परिसर में सार्वजनिक रूप से मंचित किए जाने के योग्य नहीं है.’
इसके बाद 26 अप्रैल को जयपुर में एक अन्य स्थान पर नृत्य प्रस्तुति का मंचन किया गया. प्रस्तुति के लिए स्थान न दिए जाने पर तीखी आलोचना हुई.
पिंक लिस्ट इंडिया के सह-संस्थापक और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) (एनसीपी (एसपी)) के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनीश गवांडे ने द वायर को बताया, ‘ऐसे समय में जब धारा 377 को खत्म कर दिया गया है, जब देश भर की कई अदालतों ने पुष्टि की है कि एलजीबीटीक्यू+ अधिकार मानव अधिकार हैं, यह शर्मनाक है कि राजस्थान सरकार ने एक युवा कलाकार को अपनी प्रतिभा दिखाने से रोका है.’
गवांडे ने कहा, ‘भारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था का मूल्य 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है, जो 8% कार्यबल को रोजगार देती है. अदूरदर्शी होमोफोबिया के कारण रचनात्मक अभिव्यक्ति को दबाना सरकार के 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के अपने मिशन के खिलाफ है.’
(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
