देश में एचआईवी प्रभावित बच्चों की जीवन-रक्षक दवा का टोटा

सरकार द्वारा बकाया न चुकाए जाने के चलते प्रसिद्ध दवा निर्माता कंपनी सिप्ला ने एचआईवी प्रभावित बच्चों के लिए बेहद ज़रूरी दवा को बनाना बंद कर दिया है.

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School children make an AIDS logo during the preparation for the World AIDS Day program at a school in the northern Indian city of Chandigarh November 29, 2006. India is home to an estimated 5.7 million people with HIV according to the United Nations, the largest caseload in the world. REUTERS/Ajay Verma (INDIA) - RTR1JTW1

सरकार द्वारा बकाया न चुकाए जाने के चलते प्रसिद्ध दवा निर्माता कंपनी सिप्ला ने एचआईवी प्रभावित बच्चों के लिए बेहद ज़रूरी दवा को बनाना बंद कर दिया है.

प्रतीकात्मक फोटो (साभार: रॉयटर्स/अजय वर्मा)

देश में एचआईवी पीड़ित बच्चों की जीवनरक्षक दवा लोपैनेविर सिरप के इकलौते निर्माता सिप्ला ने इसका उत्पादन बंद कर दिया है. द हिंदू की ख़बर के अनुसार सरकार द्वारा बकाया न चुकाए जाने के कारण सिप्ला ने ये कदम उठाया है.

एचआईवी दवाओं के उत्पादन में सिप्ला एक बड़ा नाम है. 2015 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एड्स, टीबी जैसी कई बीमारियों के लिए काम करने वाली संस्था ग्लोबल फंड ने सिप्ला को एचआईवी/एड्स के इलाज में काम आने वाली एंटी रेट्रो वायरल (एआरवी) दवाओं के लिए 18.9 करोड़ डॉलर (करीब 1,170 करोड़ रुपये) से अधिक का आॅर्डर दिया था.

स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा 2014 में भेजे गए माल के एवज में भुगतान न मिलने के बाद भी सिप्ला ने सरकारी टेंडरों में भाग लेना बंद नहीं किया था. अब इस स्थिति में स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी स्टेट एड्स कंट्रोल सोसाइटी को स्थानीय बाज़ार से दवा खरीदने के निर्देश दिए हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय के अपर सचिव अरुण पांडा बताते हैं, ‘हमने एक इमरजेंसी टेंडर निकाला है, साथ ही स्टेट एड्स कंट्रोल सोसाइटियों और राज्य सरकारों से स्थानीय बाज़ार से दवा खरीदने को भी कहा है.’ हालांकि सिरप का निर्माण न होने की स्थिति में खुदरा विक्रेताओं के पास भी दवा उपलब्ध नहीं है.

एड्स के इलाज के लिए काम कर रही संस्था डीएनपी प्लस के पॉल का कहना है, ‘पूरे देश के किसी भी राज्य में ऐसा कोई नहीं जो यह दवा बनाता हो. जब इसका इकलौता निर्माता ही इसे नहीं बना रहा है तो फिर कैसे यह दवा स्थानीय बाज़ार में मिल सकती है?

सिप्ला ने द हिंदू को कोई बयान देने से मना कर दिया पर उन्होंने सिप्ला के सीईओ उमंग वोहरा और एड्स के इलाज के लिए काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता लून गंगते के बीच हुए ईमेल को सार्वजनिक किया है, जिसमें सिप्ला ने साफ किया है कि वो हमेशा न सिर्फ देश के बल्कि दुनिया भर के मरीज़ों के साथ है, पर भुगतान से संबंधी मसलों को भी अविलंब सुलझाया जाना ज़रूरी है. गंगते द्वारा इसके जवाब में यह स्पष्ट कर दिया गया कि वो भुगतान की ज़िम्मेदारी नहीं ले सकते, न वे सरकार पर दबाव बना सकते हैं न ग्लोबल फंड जैसे दानदाताओं पर. पर इस स्थिति की सबसे ज़्यादा मार उन्हीं पर पड़ रही है.

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सिप्ला द्वारा उनके सीईओ उमंग वोहरा और एड्स के इलाज के लिए काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता लून गंगते के बीच हुए ईमेल को सार्वजनिक किया गया है, जिसमें सिप्ला ने कहा है कि वे न सिर्फ देश के बल्कि दुनिया भर के मरीज़ों के साथ है, पर भुगतान से संबंधी मसलों को भी अविलंब सुलझाया जाना ज़रूरी है. (साभार : द हिंदू)

जानकारों का भी कहना है कि देश में इस तरह दवाओं की कमी होना दुखद तो है ही साथ ही शर्मिंदगी भरा भी है. लायर्स कलेक्टिव की एचआईवी यूनिट के वरिष्ठ सलाहकार आनंद ग्रोवर के अनुसार सरकार एचआईवी पीड़ितों के इलाज की अपनी ज़िम्मेदारी से भाग रही है. एचआईवी मरीजों को जीवनरक्षक दवाइयां मुहैया करवाना उनकी संवैधानिक ज़िम्मेदारी है. वहीं दुनिया भर में दवाइयां मुहैया करवाने के लिए मशहूर सिप्ला भी सबको दवा पहुंचाने के अपने वादे से हट रहा है.

वहीं दूसरी ओर 4 मार्च को 3 से 19 साल की उम्र तक के 637 बच्चों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, वित्त मंत्री अरुण जेटली और स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा को एक पत्र लिखकर अपनी इस परेशानी से अवगत करवाया है. उन्होंने लिखा है कि दवा कंपनी सिप्ला द्वारा कई जगह यह बात दोहराई गई है कि सरकार के एचआईवी कार्यक्रम को दवा पहुंचाने के कई मामलों में भुगतान में देरी हुई, साथ ही कई जगह तो अब तक भुगतान नहीं किया गया. बच्चों के लिए आने वाली एचआईवी दवाओं में बहुत कम लाभ होता है और भुगतान में इस तरह की देरी से नेशनल एड्स कंट्रोल आॅर्गनाइजेशन (नाको) के कार्यक्रम बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं.

बच्चों ने पत्र में लिखा है, ‘हम आपसे निवेदन करते हैं कि एचआईवी दवाइयों के स्टॉक की इस कमी के मामले पर संज्ञान लें, खासकर इस बात पर भी ध्यान दिया जाए कि एचआईवी पीड़ित बच्चों की यह दवाएं न केवल आयात हों, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया जाए कि हर ज़रूरतमंद बच्चे तक इन्हें पहुंचाया जा सके.’

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