पेड़ अगर मतदाता होते तो नहीं काटे जाते: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए सुझाव दिया कि राष्ट्रीय राजधानी में अतिक्रमण करने वालों या मेट्रो रेल जैसी परियोजनाओं के अधिकार देने से पेड़ काटे जाने का कैग से ऑडिट कराया जाए.

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(फोटो: पीटीआई)

दिल्ली हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए सुझाव दिया कि राष्ट्रीय राजधानी में अतिक्रमण करने वालों या मेट्रो रेल जैसी परियोजनाओं के अधिकार देने से पेड़ काटे जाने का कैग से ऑडिट कराया जाए.

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(फाइल फोटो: पीटीआई)

जस्टिस बदर दुरेज़ अहमद और जस्टिस आशुतोष कुमार की पीठ ने कहा, ‘अगर पेड़ों को मतदाता सूची में वोटर के तौर पर शामिल कर लिया जाए तो उन्हें नहीं काटा जाएगा. उन्हें बताया गया कि दिल्ली मेट्रो जैसी परियोजनाओं के लिए स्थानीय अधिकारी बड़ी संख्या में पेड़ काट रहे हैं या असोला अभयारण्य जैसे स्थानों पर अतिक्रमणकारी काट रहे हैं.’

अदालत वायु प्रदूषण और इसके कारणों पर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसका एक कारण दिल्ली और आसपास के इलाकों में वन और हरित क्षेत्र में आई कमी है. पीठ का यह भी मानना था कि दिल्ली में काटे गए पेड़ों की संख्या और उससे मिली लकड़ी के उपायोग के बारे में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा ऑडिट कराया जाना चाहिए. पीठ ने कहा, यह तो आमदनी है जिसका लेखा-जोखा रखना होगा इसलिए कैग से ऑडिट कराने की ज़रूरत है.

अदालत ने यह भी कहा कि दिल्ली सरकार असोला भाटी वन्य जीव अभयारण्य में अतिक्रमण का पता करने और उन्हें हटाने के लिए पहले तय समयसीमा का पालन नहीं कर सकी. इस मामले में न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कैलाश वासदेव ने कहा कि सरकार की तरफ से कार्रवाई नहीं होने से वन क्षेत्र में कमी आई है.

उनके तर्कों का दिल्ली सरकार के वकील राहुल मेहरा ने विरोध करते हुए कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में वन क्षेत्र कम नहीं हुए हैं और दावा किया कि महानगर में हरित क्षेत्र में वृद्धि हुई है. बहरहाल, पीठ ने मामले पर अगली सुनवाई की तारीख नौ मार्च तय की है.

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