महाराष्ट्र में पुणे ज़िले के भीमा-कोरेगांव के लोगों ने हिंसा के लिए बाहरी लोगों को दोषी बताया, मुआवज़े की मांग, भिड़े का हिंसा में शामिल होने से इनकार.
पुणे/मुंबई: महाराष्ट्र में जातीय हिंसा का केंद्र रहे भीमा-कोरेगांव के निवासियों ने एक जनवरी को हुई घटनाओं के लिए शुक्रवार को बाहरी लोगों को दोषी बताया और दावा किया कि बड़े पैमाने पर होने वाले उस आयोजन में सुरक्षा पर्याप्त नहीं थी जिसकी वजह से ऐसे हालात बने.
भीमा-कोरेगांव की सरपंच सुनीता कांबले ने कहा कि दलित और मराठा समेत गांव के सभी समुदाय अमन से रहते हैं. दंगों और तोड़फोड़ में नुकसान उठाने वाले लोगों के लिए उन्होंने मुआवजे की भी मांग की.
इस हफ्ते की शुरुआत में, भीमा-कोरेगांव युद्ध के 200 वर्ष पूरे होने के मौके पर हुए आयोजन में हिंसा की घटनाएं हुई थी. उसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी. हिंसा के लिए दक्षिणपंथी समूहों को दोषी बताया गया था.
इसके बाद तीन जनवरी को दलित संगठनों ने महाराष्ट्र बंद की घोषणा की थी. जिस वजह से मुंबई और राज्य के अन्य हिस्सों में जनजीवन प्रभावित हुआ था.
भीमा-कोरेगांव के रहवासियों ने शुक्रवार को पत्रकार वार्ता आयोजित की और उस पूरी घटना के बारे में बात की जिसके चलते राज्य में धीरे-धीरे खौल रहा है और जातीय संघर्ष सतह पर आ गया.
उन्होंने आरोप लगाया कि हिंसा बाहरी तत्वों ने शुरू की और उनकी दुकानें तथा घर नष्ट कर दिए, उनमें आग लगा दी. उन्होंने झड़पों में जान गंवाने वाले राहुल फतंगले के संबंधियों को एक करोड़ रुपये का मुआवजा देने की भी मांग की.
सुनीता कांबले ने कहा, गांव में दलित और मराठा समेत सभी समुदाय शांतिपूर्वक रह रहे हैं. भविष्य में भी हम अमन से रहेंगे. गांव में अशांति कुछ बाहरी तत्वों ने फैलाई थी.
उन्होंने कहा, हम शांति की अपील करते हैं और सरकार से मांग करते हैं कि जिन लोगों की दुकानें, घर, वाहन या संपत्तियों को हिंसा के दौरान नष्ट किया गया उन लोगों को मुआवजा दिया जाए.
एक ग्रामीण ने स्थानीय अधिकारियों पर लापरवाही का आरोप लगाया और कहा कि यह जानते हुए कि हर वर्ष एक जनवरी को भीमा-कोरेगांव में लाखों लोग आते हैं, वह पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम करने में नाकाम रहे और इसी वजह से हिंसा हुई.
एक अन्य निवासी वृषाली गावहाने ने दावा किया कि भीड़ ने महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों पर हमला किया. ग्रामीणों ने भीमा-कोरेगांव में वधु बुदरुक के निकट बनी दलित व्यक्ति गोविंद गायकवाड़ की समाधि के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया. उस समाधि को भीड़ ने क्षतिग्रस्त किया था.
भिड़े का हिंसा में शामिल होने से इनकार
भीमा-कोरेगांव में हिंसा भड़काने के आरोपी हिंदुत्व समर्थक नेता संभाजी भिड़े ने इस पूरे प्रकरण में किसी भी भूमिका से शुक्रवार को इनकार किया.
पश्चिमी महाराष्ट्र के सांगली में संवाददाताओं से बातचीत के दौरान भिड़े ने कहा, न्यायिक या सीबीआई जांच का आदेश दीजिए. हिंसा की जांच भगवान यम की अगुवाई वाले किसी तंत्र से करा लीजिए. मैं किसी भी तरह की जांच का सामना करने को तैयार हूं. मेरे खिलाफ लगाए गए सभी आरोप निराधार हैं और जांच के बाद सच सामने आ जाएगा.
इस इलाके में उनकी मजबूत पैठ है. मुंबई में संवाददाताओं से बातचीत में शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान के एक पदाधिकारी ने भिड़े का बचाव किया.
शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान के चेतन बारसकर ने कहा, यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि भिड़े गुरुजी का नाम इसमें घसीटा जा रहा है जबकि हिंसा के समय वह पुणे में थे भी नहीं. वह सांगली में एक कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे थे. भिड़े गुरुजी हर दिन लोगों से बात करते हैं, भाषण देते हैं. उन्होंने एक बार भी एक जनवरी कार्यक्रम का जिक्र नहीं किया था.
एक अन्य पदाधिकारी बलवंत दलवी ने कहा कि मुंबई में रविवार को होने वाले एक कार्यक्रम को स्थगित कर दिया गया है. इस कार्यक्रम में भिड़े को हिस्सा लेना था.
उन्होंने कहा, पुलिस अधिकारियों ने हमसे मुलाकात की और कहा कि कानून-व्यवस्था से जुड़ी दिक्कत पैदा हो सकती है…किसी भी तरह की घटना न हो, इसे सुनिश्चित करने के लिए यह कार्यक्रम अब बाद में होगा.
इस संबंध में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि कानून और व्यवस्था से जुड़ी आशंकाओं के कारण पुलिस ने भिड़े को मुंबई में किलों के इतिहास पर भाषण देने की अनुमति नहीं दी.
कुछ दलित संगठनों ने पुलिस महानिदेशक और मुंबई के पुलिस आयुक्त को पत्र लिखकर भिड़े को भाषण देने की अनुमति नहीं देने और शहर में उनके प्रवेश को प्रतिबंधित करने की मांग की थी.
हिंसक झाड़प की घटना के एक दिन बाद दो जनवरी को पुणे पुलिस ने भिड़े और अन्य के खिलाफ अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया था.
दलित नेता 1818 में भीमा-कोरेगांव युद्ध में पेशवाओं की सेना पर ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना की जीत का जश्न मनाते हैं क्योंकि ब्रिटिश सेना में दलित महार सैनिक भी शामिल थे.
कुछ हिंदुत्ववादी संगठनों ने इस साल इससे जुड़े समारोह का विरोध किया था. संबंधित घटनाक्रम में भीमा-कोरेगांव की हिंसा के संबंध में समस्त हिंदू अघाड़ी के नेता मिलिंद एकबोटे और संभाजी भिड़े के खिलाफ दर्ज एक मामले को औरंगाबाद की छावनी पुलिस ने मामले को पुणे जिले के शिकारपुर थाने में स्थानांतरित कर दिया. यहां पहले से दोनों के खिलाफ मामले दर्ज हैं.
पुलिस उपायुक्त विनायक धकने ने बताया कि शिकायत के मुताबिक जयाश्री इंगले ने कहा है कि युद्ध स्मारक पर श्रद्धांजलि देने जाते समय 20-25 लोगों ने उनके वाहन पर पथराव किया. इस वाहन में उनके परिवार के सदस्य भी थे.
भिड़े ने मुझसे कहा कि भीमा-कोरेगांव हिंसा से उनका कोई लेना-देना नहीं: राकांपा सांसद
राकांपा प्रमुख शरद पवार ने भीमा-कोरेगांव में हिंसा के लिए जहां दक्षिणपंथी ताकतों पर आरोप लगाया है वहीं उनकी पार्टी के ही एक सांसद आज हिंसा भड़काने के मामले में आरोपी बनाए गए दो हिंदुत्व समर्थक नेताओं के पक्ष में सामने आए.
समस्त हिंदू आघाड़ी के मिलिंद एकबोटे और शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान के संस्थापक संभाजी भिड़े पर भीमा-कोरेगांव युद्ध की 200वीं सालगिरह पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान फैली हिंसा की साजिश रचने का आरोप है.
राकांपा सांसद और छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज उदयनराजे भोंसले ने बताया कि हिंसा भड़काने के मामले में आरोपी बनाए जाने के बाद भिड़े रोने लगे थे. गौरतलब है कि हिंसा के विरोध में दलितों ने महाराष्ट्र में प्रदर्शन किया था जिससे मुंबई और अन्य स्थानों पर जनजीवन प्रभावित हुआ था.
भोंसले ने दिल्ली में एक मराठी टीवी चैनल से कहा, मिलिंद एकबोटे मेरे मित्र हैं. मैं उनसे यह कहना चाहता हूं कि वह कुछ भी ऐसा कहने से बचें, जिससे तनाव बढ़े.
उन्होंने कहा, भिड़े मेरे सामने रोने लगे और कहा कि उनका इस पूरी घटना से कोई लेनादेना नहीं है. उन्होंने मुझसे कहा कि वह भीमा कोरेगांव के निकट वधू बुद्रुक गांव में एक समाधि साफ करने जा रहे थे.
भीमा-कोरेगांव में कथित तौर पर हिंसा भड़काने को लेकर एकबोटे और भिड़े के खिलाफ पिंपरी थाने में मामला दर्ज कराया गया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)