अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (आठ मार्च) से ठीक पहले महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी अपने एक बयान की वजह से विवादों में घिर गई हैं. उन्होंने लड़कियों के हॉस्टल में समयसीमा तय करने के नियम को उचित ठहराया है.

सोमवार को एनडीटीवी के एक टॉक शो के दौरान मेनका गांधी ने कहा, ‘बतौर माता-पिता अगर कोई अपने बेटे या बेटी को हॉस्टल में भेजता है तो मैं उसकी सुरक्षा की उम्मीद करती हूं. यह आपके भले के लिए ही है. जब आप 16 या फिर 17 साल के होते हैं, यह बहुत नाज़ुक समय होता है, आप में बहुत सारे हार्मोनल आउटबर्स्ट (हार्मोनल बदलाव) होते हैं. इन हार्मोनल बदलावों से आपको बचाने के लिए शायद एक सुरक्षा घेरा यानी लक्ष्मण रेखा खींची ही जानी चाहिए.’
वे आगे कहती हैं, ‘इसे समय-सीमा से ही बांधा जा सकता. यह समय सीमा कुछ भी हो सकती है, छह या फिर सात. ये अलग-अलग कॉलेजों पर निर्भर करता है कि वे क्या समय तय करते हैं. ये नियम सिर्फ बलात्कार से बचाव के लिए ही नहीं, बल्कि ट्रैफिक में होने वाली दुर्घटना के लिए हो सकता है या फिर किसी दूसरी वजहों के लिए भी.’
उन्होंने कहा, ‘अगर आप किसी कैंपस में रहने का चुनाव करती हैं तो वहां पर कुछ नियम होते हैं और ये नियम सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हैं.’
जब मेनका गांधी से ऐसे नियमों के ख़िलाफ़ चल रहे पिंजड़ा तोड़ अभियान के बारे में बताया गया तो मेनका गांधी ने कहा, ‘ये नियम लड़कियों के साथ-साथ बॉयज़ हॉस्टल के लिए भी होना चाहिए, क्योंकि आप दोनों (लड़का-लड़की) की सुरक्षा के लिए ही लक्ष्मण रेखा बनाई जाती है.’
टॉक शो में शामिल एक लड़की ने इस पर कहा कि इस समस्या को सुरक्षा बढ़ाकर भी सुलझाया जा सकता है, ये नहीं कि लड़कियों को पिंजड़े में बंद कर दिया जाए. इसके जवाब में मेनका ने कहा, ‘नहीं! बेटी, इस मसले को ऐसे नहीं सुलझाया जा सकता है कि दो बिहारी नौजवानों को गेट पर डंडा लेकर खड़ा कर दिया जाए. इसे समय-सीमा निर्धारित करके ही सुलझाया जा सकता है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘ये नियम लड़के और लड़की दोनों के लिए होने चाहिए. लड़कों को भी छह बजे के बाद हॉस्टल से बाहर जाने का अधिकार नहीं होना चाहिए. या फिर ऐसे करते हैं कि अगर वाकई में आपका उद्देश्य लाइब्रेरी जाना ही है तब आपके पास हफ़्ते में दो बार रात में लाइब्रेरी जाने की अनुमति हो और लड़कों को भी लाइब्रेरी जाने के लिए सिर्फ हफ़्ते में बस दो बार रात को लाइब्रेरी जाने को मिले. .’
उनके इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर बहस और बवाल मच गया है. लोग ट्वीट और पोस्ट से अपनी बात रख रहे हैं. ट्विटर पर सलीम ए. सिद्दीकी कहते हैं, ‘…क्योंकि मेनका गांधी भी कभी लड़की थीं.’
…क्योंकि मेनका गांधी भी कभी लड़की थीं।
— saleem A. siddiqui (@Saleem_Akhter_S) March 7, 2017
महेंद्र एनएस यादव फेसबुक पर लिखते हैं, ‘हार्मोन विशेषज्ञ डॉ. मेनका गांधी ने बताया है कि शाम के बाद लड़कियों के हार्मोन सक्रिय हो जाते हैं, जिस वजह से उनके बिगड़ने का खतरा रहता है. इससे बचने के लिए उन्होंने शाम के बाद लड़कियों को घर या हॉस्टल से बाहर न निकलने की ताकीद की है. उनका मानना है कि 16-17 साल में ये हार्मोन बहुत परेशान करते हैं.’
सस्पेंडेड अकाउंट के एक ट्वीट के मुताबिक, ‘आपको इससे बचने के लिए लौकी की सब्ज़ी खानी चाहिए.’ अमनदीप संधु कहते हैं, ‘हार्मोनल आउटबर्स्ट! वाह, क्या मुहावरा है. हार्मोन का चाहिए आज़ादी.’
'Hormonal Outburst' – Ooo! What a ring to the phrase. Hormone ko chahiye Aazadi!
— Amandeep Sandhu (@_asandhu) March 7, 2017