जेएनयू के कुलपति पर विश्वविद्यालय को स्कूल बनाने का आरोप क्यों लग रहा है?

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में छात्रों की उपस्थिति अनिवार्य करने के प्रशासन के फैसले को छात्र-छात्राएं और शिक्षकों का एक समूह जेएनयू की परंपरा के ख़िलाफ़ बता रहा है.

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जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय का ऐड-ब्लॉक. (फोटो: पीटीआई)

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में छात्रों की उपस्थिति अनिवार्य करने के प्रशासन के फैसले को छात्र-छात्राएं और शिक्षकों का एक समूह जेएनयू की परंपरा के ख़िलाफ़ बता रहा है.

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय. (फोटो: पीटीआई)
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में छात्र-छात्राओं की क्लास में उपस्थिति को अनिवार्य कर दिया गया है. विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस संदर्भ में 22 दिसंबर को एक सर्कुलर जारी किया था.

इस सर्कुलर में कहा गया है कि अकादमिक काउंसिल ने एक दिसंबर को आयोजित अकादमिक काउंसिल की 144वीं बैठक में सभी पंजीकृत छात्रों की उपस्थिति अनिवार्य करने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी है. शीतकालीन सत्र 2018 से अनिवार्य उपस्थिति सभी विभागों मतलब बीए, एमए, एमफिल और पीएचडी के छात्र-छात्राओं के लिए ज़रूरी होगी.

फिलहाल इस सर्कुलर में यह जानकारी नहीं दी गई है कि कम से कम कितनी उपस्थिति अनिवार्य होगी. हालांकि कुलपति ने अनिवार्य उपस्थिति के कार्यान्वयन के लिए गाइडलाइन बनाने के लिए पांच सदस्यीय कमेटी का गठन किया है. कहा जा रहा है कि अनिवार्य उपस्थिति का मॉडल आईआईटी की तर्ज पर अपनाया गया है.

उपस्थिति अनिवार्य कर देने के बाद जेएनयू में एक बार फिर छात्र और विश्वविद्यालय प्रशासन आमने-सामने हैं. विश्वविद्यालय के छात्र संगठन इस फैसले को जेएनयू की ‘परंपरा’ के ख़िलाफ़ बता रहे हैं. वहीं, शिक्षक संगठन भी इस फैसले का विरोध कर रहा है.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (जेएनयूटीए) ने पांच सदस्यीय उस समिति को पत्र लिखा जिसने सभी छात्रों के लिए न्यूनतम अनिवार्य उपस्थिति की सिफारिश की थी. शिक्षक संघ ने कहा कि यह आदेश एक ऐसी समस्या पैदा करेगा जो कभी थी ही नहीं.

शिक्षक संघ की अध्यक्ष आयशा किदवई ने एक विज्ञप्ति में कहा कि ग़ैरहाज़िरी से निपटने के लिए कई अन्य तरीके पहले से मौजूद थे लेकिन अनिवार्य उपस्थिति उनमें शामिल नहीं थी.

किदवई ने अपने पत्र में कहा, ‘हम इस जबरन थोपे हुए आदेश का कोई भी अंश लागू नहीं करना चाहते क्योंकि हमारे शैक्षणिक तौर-तरीके छात्रों को सिखाने के लिए थे केवल उनकी मौजूदगी भर के लिए नहीं.’

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय. (फोटो: पीटीआई)
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय. (फोटो: पीटीआई)

द वायर के साथ बातचीत में आयशा ने कहा, ‘हम इस फैसले का विरोध कर रहे हैं. शिक्षकों की संस्था अपनी आम सभा की बैठक में इस संबंध में कार्रवाई को लेकर फैसला करेगी.’

वहीं, जवाहर लाल नेहरू छात्रसंघ (जेएनयूएसयू) ने इसे लेकर कुलपति से मुलाकात की है. इस दौरान कुलपति को 2,500 छात्रों के हस्ताक्षरों वाला एक ज्ञापन भी सौंपा गया.

ग़ौर करने वाली बात यह है कि विश्वविद्यालय प्रशासन के इस फैसले का विरोध जेएनयू के लगभग सारे प्रमुख छात्र संगठन कर रहे हैं.

जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष गीता कुमारी कहती हैं, ‘इस तरह की निगरानी अकादमिक स्वतंत्रता और जेएनयू की संस्कृति को बर्बाद करके रख देगी. परिसर के छात्र न केवल कक्षाओं बल्कि ढाबा और छात्रावास के कैंटीनों पर भी सीखते हैं. ऐसा फैसला लेकर कुलपति विश्वविद्यालय प्रशासन को छात्रों को प्रताड़ित करने का नया हथियार दे रहे हैं. उपस्थिति का नाम लेकर छात्रों को परीक्षा देने से रोका जाएगा. उनकी स्कॉलरशिप रोकी जाएगी.’

वे आगे कहती हैं, ‘हम इसका विरोध इसलिए भी कर रहे हैं क्योंकि पढ़ाई दोतरफा होती है. शिक्षक मज़ेदार ढंग से पढ़ाते हैं तो बच्चे पढ़ने जाते हैं. जिन कक्षाओं में 40 बच्चे होते हैं वहां आपको 45 पढ़ते हुए मिल जाएंगे. जबरिया आप क्लास में बैठाकर बच्चों को नहीं पढ़ा सकते हैं. अकादमिक स्वतंत्रता के चलते ही जेएनयू देश के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में शुमार है. हम क्लास में बैठ जाएंगे तो हम सर्वश्रेष्ठ हो जाएंगे ये प्रूव करने की हमें ज़रूरत नहीं है. विरोध सिर्फ इसलिए हो रहा है कि इस फैसले का इस्तेमाल छात्रों के ख़िलाफ़ किया जाएगा.’

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े और जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व संयुक्त सचिव व शोध छात्र सौरभ शर्मा कहते हैं, ‘जेएनयू में अटेंडेंस अनिवार्य नहीं किया जाना चाहिए. एबीवीपी इसका कड़े शब्दों में विरोध करती है. इस संदर्भ में हम प्रशासन से कई बार मुलाकात भी कर चुके हैं. यह फैसला छात्र विरोधी है. यह जेएनयू की परपंरा के विपरीत है.’

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय. (फोटो: पीटीआई)
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय. (फोटो: पीटीआई)

इससे पहले जेएनयू छात्रसंघ द्वारा एक प्रेस रिलीज़ भी जारी की गई थी जिसमें दावा किया गया था उपस्थिति अनिवार्य करने का मामला अकादमिक काउंसिल की मीटिंग के एजेंडे में नहीं था. उपस्थिति अनिवार्य किए जाने को लेकर छात्रसंघ के नेतृत्व में बड़ी संख्या में छात्रों ने प्रशासनिक भवन के सामने ‘हाज़िर जनाब’ का स्लोगन लेकर प्रदर्शन भी किया है.

इस मसले पर जेएनयू में शोध छात्र और ओबीसी फोरम से जुड़े मुलायम सिंह यादव कहते हैं, ‘यह कोई पब्लिक स्कूल नहीं है रिसर्च यूनिवर्सिटी है. रिसर्च छात्रों को दिल्ली और देश के अन्य पुस्तकालयों में कई बार अपने शोध कार्यों के चलते जाना पड़ता है. इसलिए छात्र बेहतरीन रिसर्च करते हैं. अब अगर उपस्थिति अनिवार्य होगी तो निश्चित तौर पर शोध पर असर पड़ेगा. विश्वविद्यालय प्रशासन आईआईटी का उदाहरण दे रही है लेकिन शायद उन्हें आईआईटी और रिसर्च यूनिवर्सिटी के कार्यप्रणाली का अंतर नहीं पता है.’

जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष और शोध छात्र मोहित पांडेय कहते हैं, ‘उपस्थिति अनिवार्य करने से शिक्षा का स्तर नहीं बढ़ता है. हमारे कुलपति बेहतर शिक्षकों और पुस्तकालयों की व्यवस्था के बजाय छात्रों को परेशान कर रहे हैं. जेएनयू में छात्रों की उपस्थिति सामान्यता ज़्यादा ही होती है. कुलपति को एक दिन जेएनयू के सारे क्लास रूम घूमने चाहिए और साथ में फोटोग्राफर भी ले जाना चाहिए. फिर वो बताएं कि कक्षाएं भरी रहती हैं या नहीं. जेएनयू में कल्चर है कि अलग-अलग अनुशासन के लोग आपको किसी भी क्लास में मिल जाएंगे. मतलब इतिहास पढ़ने वाला आपको समाजशास्त्र की कक्षा में बैठा मिल जाएगा. कुलपति ऐसा फैसला लेकर इसी कल्चर को ख़त्म करना चाहते हैं.’

बापसा से जुड़े शोध छात्र राहुल सोनपिम्प्ले कहते हैं, ‘उपस्थिति अनिवार्य करना पूरी तरह से अतार्किक है. बिना उपस्थिति अनिवार्य किए ही जेएनयू सबसे अच्छी यूनिवर्सिटी है. यहां पर ज़्यादातर छात्र शोध करने आते हैं. उनका अपने शिक्षकों के साथ एक रिश्ता होता है. जिसके आधार पर वो शोध पूरा करते हैं. जेएनयू का अपना एक कल्चर है. ये उसे बर्बाद करने की कोशिश है. मुझे नहीं लगता दुनिया की किसी अच्छी रिसर्च यूनिवर्सिटी में हर दिन उपस्थिति को अनिवार्य बनाया गया होगा. दूसरी बात क्या विश्वविद्यालय प्रशासन को अंदाज़ा है, अगर सारे शोध छात्र यूनिवर्सिटी आना शुरू कर देंगे तो बैठेंगे कहां. मतलब बीए, एमए और ढेर सारे पीएचडी छात्र.’

जेएनयू कैंपस. (फोटो: रॉयटर्स)
जेएनयू कैंपस. (फोटो: रॉयटर्स)

वहीं, एनएसयूआई से जुड़े अलीमुद्दीन कहते हैं, ‘जेएनयू के विद्यार्थी अपनी कक्षाओं के साथ सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय रहे हैं. अगर छात्र-छात्राओं पर अनिवार्य उपस्थिति का दबाव डाला गया तो उनकी ये गतिविधियां ख़त्म हो जाएंगी. किसी छात्र का जेएनयू आने का आकर्षण सिर्फ यहां की किताबी पढ़ाई नहीं है यहां का सामाजिक और राजनीतिक माहौल भी है. विश्वविद्यालय प्रशासन केंद्र सरकार के दबाव में इसी को ख़त्म करने पर उतारू है.’

जेएनयू के रेक्टर-1 चिंतामणि महापात्रा ने टाइम्स आॅफ इंडिया से बातचीत में कहा है, ‘शोध छात्र अपने शोध को लेकर अपने रिसर्च गाइड से निश्चित समय पर सलाह लेते रहते हैं. उपस्थिति अनिवार्य करने का मतलब सिर्फ कक्षाओं में उपस्थिति ही नहीं है. इसका मतलब निश्चित समयांतराल पर पीएचडी छात्र-छात्राओं और रिसर्च गाइड में होनी वाली मुलाकात भी है.’

हालांकि उपस्थिति अनिवार्य करने के मसले को लेकर गत 4 जनवरी को जेएनयू छात्रसंघ के नेतृत्व में 50 छात्र-छात्राओं ने कुलपति से मुलाकात करके एक ज्ञापन सौंपा था. अब प्रशासन ने छात्रसंघ पदाधिकारियों को नोटिस भेज कर कहा है कि उन्होंने प्रदर्शन किया था और दिल्ली हाईकोर्ट के आदेशों का उल्लंघन किया है.

आठ जनवरी को चीफ प्रॉक्टर कौशल कुमार शर्मा द्वारा जारी इस नोटिस में जेएनयूएसयू की अध्यक्ष गीता कुमारी, उपाध्यक्ष सिमोन ज़ोया ख़ान, महासचिव डी. श्रीकृष्णा और संयुक्त सचिव शुभांशु सिंह का नाम है.

यानी उपस्थिति अनिवार्य किए जाने को लेकर शिक्षक, छात्र संगठन और प्रशासन कोई भी सुलह के मूड में नहीं हैं. यह विवाद आने वाले दिनों में ज़ोर पकड़ सकता है.

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