क्या जस्टिस अरुण मिश्रा का जज लोया केस छोड़ने का इशारा न्यायपालिका पर उठे सवालों का जवाब है?

जस्टिस अरुण मिश्रा द्वारा जज लोया की मौत की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाले मामले की सुनवाई के बाद ‘इसे उपयुक्त बेंच के समक्ष पेश करें’ कहना दिखाता है कि वे अब इस संवेदनशील मामले को नहीं सुनना चाहते.

जस्टिस अरुण मिश्रा द्वारा जज लोया की मौत की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाले मामले की सुनवाई के बाद ‘इसे उपयुक्त बेंच के समक्ष पेश करें’ कहना दिखाता है कि वे अब इस संवेदनशील मामले को नहीं सुनना चाहते.

Judge Loya Justice Arun Mishra PTI
सीबीआई जज बृजगोपाल लोया, जस्टिस अरुण मिश्रा (फोटो: द कारवां/पीटीआई)

बीते शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम जजों ने अप्रत्याशित प्रेस कांफ्रेंस करके संवेदनशील मुकदमों के बिना किसी तर्क के बेंचों को दिए जाने की बात कही थी. मंगलवार को जज लोया की मौत की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली याचिका के संबंध में आये एक आदेश से ऐसा लगता है कि जजों ने अपनी पहली लड़ाई जीत ली है.

बीते शुक्रवार को ही इस मामले की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने विशेष सीबीआई न्यायाधीश बृजगोपाल हरकिशन लोया की रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु को ‘गंभीर मामला’ बताते हुए महाराष्ट्र सरकार को उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया था, जिसके बाद महाराष्ट्र सरकार द्वारा मंगलवार को लोया की मौत से संबंधित दस्तावेज अदालत में दाखिल किए गए.

इसके बाद जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एमएम शांतानागौदर की बेंच ने लोया की मृत्यु से संबंधित दस्तावेज याचिकाकर्ताओं को देने का निर्णय महाराष्ट्र सरकार पर छोड़ते हुए आदेश दिया:

‘सात दिन के भीतर दस्तावेजों को अदालत के समक्ष दाखिल करें और अगर इसे उचित माना जाता है तो याचिकाकर्ताओं को इसकी प्रति सौंपी जा सकती है. इसे उचित पीठ के समक्ष प्रस्तुत करें.’

ज्ञात हो यह याचिका महाराष्ट्र के एक पत्रकार बीआर लोन और कांग्रेस नेता तहसीन पूनावाला द्वारा दायर की गई है.

इसके पहले राज्य सरकार के वक़ील हरीश साल्वे ने इन दस्तावेज़ों को गोपनीय बताया था, लेकिन अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को मामले के बारे में सब कुछ पता होना चाहिए.

इसके साथ ही पीठ ने लोया की मौत की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली दो जनहित याचिकाओं की सुनवाई एक सप्ताह के लिये स्थगित कर दी.

मंगलवार को सुनवाई के समय जजों द्वारा मामला सुनने को लेकर कोई अनिच्छा नहीं दिखाई गई थी, लेकिन शाम को आदेश में ‘उचित पीठ के समक्ष प्रस्तुत करें’ लिखा होना दिखाता है कि इस पर सुनवाई के बाद सोच-विचार कर कहा गया है.

इस वाक्य का इस्तेमाल सामान्य तौर पर किसी बेंच द्वारा तब किया जाता है, जब वह खुद को किसी मामले की सुनवाई के लिए उपयुक्त नहीं समझती और  चाहती है कि मामला चीफ जस्टिस के सामने जाए जिससे वे इसे किसी और बेंच को सौंपे जाने का आदेश दे सकें.

मीडिया में आई ख़बरों के अनुसार सोमवार को अदालत का काम शुरू होने से पहले चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के साथ सुप्रीम कोर्ट के जजों की मुलाकात के दौरान जस्टिस अरुण मिश्रा यह कहते हुए रो पड़े कि सुप्रीम कोर्ट की कार्य प्रणाली पर सवाल उठाने वाले चारों न्यायाधीशों द्वारा उन्हें गलत तरह से निशाना बनाया जा रहा है.

उन्होंने यह भी कहा कि गिरती सेहत के बावजूद वे पूरी ईमानदारी से अपना काम कर रहे हैं.

बताया जा रहा है कि इसके बाद चीफ जस्टिस और जस्टिस जे चेलमेश्वर ने जस्टिस अरुण मिश्रा को समझाया. रिपोर्टर्स के अनुसार जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा कि वे लोग उनके खिलाफ नहीं हैं, वे मुद्दा उठाना चाह रहे थे.

ऐसे में जानकारों का कहना है कि जज लोया की मौत से जुड़े केस को दूसरी बेंच को सौंपने के पीछे इस विवाद से उपजा तनाव ही है.

इस बीच शीर्ष अदालत ने सोमवार को सीजेआई की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के गठन की घोषणा भी की है.

पांच न्यायाधीशों की पीठ में सीजेआई दीपक मिश्रा, जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण शामिल हैं. यह संविधान पीठ 17 जनवरी से कई महत्वपूर्ण मामलों पर सुनवाई शुरू करेगी.

गौरतलब है कि इस पीठ में सवाल उठाने वाले चारों न्यायाधीशों- जस्टिस जे. चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी. लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसफ में से किसी का नाम नहीं है.

ऐसे में यह देखना होगा कि न्यायपालिका पर उठे बाकी सवालों के जवाब के लिए कोई और महत्वपूर्ण कदम उठाए जाते हैं या नहीं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)