सुप्रीम कोर्ट में होगी जज लोया की मौत से जुड़े सभी मामलों की सुनवाई

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने आदेश दिया कि जज लोया की मौत से जुड़े किसी भी मामले की सुनवाई उच्च न्यायालय में नहीं होगी.

फोटो: द कारवां/पीटीआई

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने आदेश दिया कि जज लोया की मौत से जुड़े किसी भी मामले की सुनवाई उच्च न्यायालय में नहीं होगी.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट में लंबित सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ कांड की सुनवाई कर रहे विशेष सीबीआई न्यायाधीश बीएच लोया की 2014 में रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु की निष्पक्ष जांच के लिये दायर दो याचिकाएं सोमवार को अपने यहां स्थानांतरित कर ली.

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने आदेश दिया कि जज लोया की मौत से जुड़े किसी भी मामले की सुनवाई किसी उच्च न्यायालय में नहीं होगी.

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने संबंधित पक्षों से कहा कि लोया की मृत्यु से संबंधित वे सारे दस्तावेज जो अभी तक दाखिल नहीं किए गए हैं, उनकी विवरणिका पेश की जाए.

न्यायालय इन दस्तावेजों को 2 फरवरी में अगली सुनवाई में देखेगा.

पीठ ने दो याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों को ‘गंभीर’ बताते हुए कहा, ‘हमें सारे दस्तावेज बहुत ही गंभीरता से देखने चाहिए.’ इस बीच, पीठ ने सभी उच्च न्यायालयों से कहा कि लोया की मृत्यु के संबंध में दायर किसी भी याचिका पर वे विचार नहीं करें.

एनडीटीवी की खबर के अनुसार जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने कहा इस मामले में सभी तरह के दस्तावेजों जैसे आरटीआई आदि को एक जगह इकठ्ठा करके कोर्ट को दिया जाए. एक जज की मौत हुई है और उसको लेकर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है. अख़बार में कई बार मौत को लेकर सवाल खड़े किए गए हैं. ऐसे में अख़बार में जो छपा है हम इस पर नहीं जाएंगे, बल्कि दस्तावेज क्या कहते है इस पर जाएंगे.

इन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान पीठ उस समय नाराज हो गयी जब बंबई लायर्स एसोसिएशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का नाम लेते हुए आरोप लगाया कि सब कुछ उन्हें (शाह) को बचाने के लिए किया गया है. इस एसोसिएशन ने ही बंबई उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की है.

इस मामले में महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे के प्रतिवाद पर ही पीठ ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा, ‘आज की स्थिति के अनुसार यह स्वाभाविक मृत्यु है. फिर आक्षेप मत लगाइए.’

सुनवाई के दौरान एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने संभावित भावी आदेश का निष्कर्ष निकालते हुए कहा कि शीर्ष अदालत इस मामले में मीडिया पर अंकुश लगा सकता है.

इस पर प्रधान न्यायाधीश ने अपनी नाराजगी व्यक्त की और कहा, ‘मेरे प्रति यह न्याय संगत नहीं है. आप ऐसा नहीं कर सकतीं.’ इसके साथ ही उन्होंने इंदिरा जयसिंह से कहा कि वह अपने शब्द वापस लें और इसके लिए माफी मांगे. इंदिरा जयसिंह ने अपना बयान वापस लेने के साथ ही माफी मांगी.

पहले जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने इन याचिचकाओं की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था और कहा कि इन्हें उचित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाये. ये याचिकाएं कांग्रेस के तहसीन पूनावाला और महाराष्ट्र के पत्रकार बीएस लोन ने दायर की हैं.

12 जनवरी को इस मामले की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने विशेष सीबीआई न्यायाधीश बृजगोपाल हरकिशन लोया की रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु को ‘गंभीर मामला’ बताते हुए महाराष्ट्र सरकार को उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया था, जिसके बाद महाराष्ट्र सरकार द्वारा 16 जनवरी को लोया की मौत से संबंधित दस्तावेज अदालत में दाखिल किए गए.

इसके बाद जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एमएम शांतानागौदर की बेंच ने लोया की मृत्यु से संबंधित दस्तावेज याचिकाकर्ताओं को देने का निर्णय महाराष्ट्र सरकार पर छोड़ते हुए आदेश दिया था कि सात दिन के भीतर दस्तावेजों को अदालत के समक्ष दाखिल करें और अगर इसे उचित माना जाता है तो याचिकाकर्ताओं को इसकी प्रति सौंपी जा सकती है. इसे उचित पीठ के समक्ष प्रस्तुत करें.

इस आदेश के बाद ही दोनों याचिकाएं सोमवार को प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध हुई थीं.

ज्ञात हो कि जज लोया की मौत 1 दिसंबर 2014 को नागपुर में हुई थी, जिसकी वजह दिल का दौरा पड़ना बताया गया था. वे नागपुर अपनी सहयोगी जज स्वप्ना जोशी की बेटी की शादी में गए हुए थे. उस समय वे गुजरात के चर्चित सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर मामले की सुनवाई कर रहे थे.

बृजगोपाल लोया के परिजनों से हुई बातचीत का हवाला देते हुए नवंबर 2017 में द कारवां पत्रिका में प्रकाशित हुई एक रिपोर्ट में लोया की मौत की संदेहास्पद परिस्थितियों पर सवाल उठाए गए थे, जिसके बाद यह मामला फिर से चर्चा में आया था.

इस पत्रिका की रिपोर्ट के बाद पूर्व न्यायाधीशों द्वारा इस मामले की जांच की मांग की गयी थी.

बीते 12 जनवरी को शीर्ष अदालत के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों जस्टिस जे चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में जिन विषयों को उठाया था, उसमें जज लोया की मौत का मामला भी शामिल था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)