नवंबर से शुरू हुई सुनवाई में अब तक अभियोजन के 40 गवाहों में से 27 गवाह बयान से मुकर चुके हैं.
मुंबई: सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले के मुकदमे के दौरान मंगलवार को अभियोजन पक्ष का एक और गवाह अपने बयान से मुकर गया.
बॉम्बे हाईकोर्ट की ओर से सीबीआई न्यायाधीश के 29 नवंबर के उस आदेश को खारिज करने के बाद पहली बार खुली अदालत में सुनवाई हुई, जिसमें कार्यवाही की रिपोर्टिंग से मीडिया को रोका गया था.
सीबीआई अदालत में यहां अभियोजन पक्ष के लिए एक ढाबे के मालिक ने गवाही दी. हालांकि उसने अभियोजन के मामले का समर्थन नहीं किया, इसलिए उसे अपने बयान से मुकरा हुआ माना गया.
विवादित मामले में अपने बयान से पलटने वाला वह 28वां गवाह है. मीडिया के कवरेज के बिना मुकदमे की सुनवाई में दो महीने के दौरान 27 गवाह अपने बयान से पलट चुके हैं. इस मामले में 41 गवाहों के परीक्षण हो चुके हैं.
सीबीआई के मुताबिक, मौजूदा गवाह ने कथित फर्जी मुठभेड़ के पीड़ितों में से एक तुलसीराम प्रजापति को पुलिस की कार में देखा था, लेकिन अदालत में उसने अभियोजन के मामले का समर्थन नहीं किया.
ज्ञात हो कि 29 नवंबर को जब से ट्रायल कोर्ट द्वारा मामले की मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक लगाई गई थी, तबसे अदालत में करीब 40 गवाहों से इस मामले में पूछताछ की थी. इस दौरान कई पुलिसकर्मियों ने अपने पुराने सहकर्मियों, जो इस मामले में आरोपी हैं, को पहचानने से इनकार कर दिया.
अपने बयान से मुकरने वालों में सोहराबुद्दीन की बहन भी हैं. सोहराबुद्दीन की बहन हैदराबाद की एक जेल में बंद हैं, जहां से वे वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से अदालत में पेश हुईं.
उन्होंने कहा कि सीबीआई ने उनके भाई के कथित एनकाउंटर के बाद उनसे कोई पूछताछ नहीं की. उन्होंने इस बात से इनकार किया कि उन्होंने सीबीआई को नहीं बताया कि सोहराबुद्दीन और कौसर बी नवंबर 2005 में उसके भाई के घर गए थे.
बीते नवंबर में स्पेशल जज एसजे शर्मा ने 22 आरोपियों के ख़िलाफ़ आरोप तय किए थे, जिनमें क़त्ल, आपराधिक षड्यंत्र, सबूत मिटने के आरोप थे. शुरुआत में 38 आरोपी थे, जिनमें से 15 को बरी कर दिया गया है. एक आईपीएस अधिकारी विपुल अग्रवाल पर आरोप तय करने पर बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा रोक लगाई गई है.
पूर्व नौसेना प्रमुख ने की जज लोया की मौत की जांच की मांग
नई दिल्ली: पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल (सेवानिवृत्त) एल रामदास ने उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर कर विशेष सीबीआई जज बृजगोपाल हरकिशन लोया की कथित रहस्यमयी मौत मामले में शीर्ष अदालत के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों और पूर्व पुलिस अधिकारियों की समिति द्वारा निष्पक्ष जांच कराने की मांग की.
संवेदनशील सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई कर रहे लोया की 1 दिसंबर 2014 को नागपुर में दिल का दौरा पड़ने से उस समय मौत हो गई थी, जब वे एक सहयोगी की बेटी की शादी में शामिल होने गये थे.
बीते नवंबर में लोया परिवार के कुछ सदस्यों ने उनकी मौत पर सवाल खड़े किये थे, जिसके बाद से उनकी मौत की स्वतंत्र जांच की विभिन्न संगठनों द्वारा कई बार मांग उठाई गई है.
मामले की जांच के लिए कांग्रेस के तहसीन पूनावाला और महाराष्ट्र के पत्रकार बीएस लोन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं भी दायर की थीं, जिन पर सुनवाई करते हुए 22 जनवरी को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने आदेश दिया कि जज लोया की मौत से जुड़े किसी भी मामले की सुनवाई किसी उच्च न्यायालय में नहीं होगी, बल्कि सुप्रीम कोर्ट उन्हें सुनेगा.
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने संबंधित पक्षों से कहा कि लोया की मृत्यु से संबंधित वे सारे दस्तावेज जो अभी तक दाखिल नहीं किए गए हैं, उनकी विवरणिका पेश की जाए.
न्यायालय इन दस्तावेजों को 2 फरवरी में अगली सुनवाई में देखेगा.
सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह आरोपी थे, जिन्हें बाद में आरोपमुक्त कर दिया गया था. 19 जनवरी को महाराष्ट्र के बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन ने इस मामले में भाजपा अध्यक्ष को बरी करने के निचली अदालत के फैसले को चुनौती नहीं देने के सीबीआई के फैसले के ख़िलाफ़ बॉम्बे उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की थी.
नौसेना प्रमुख रामदास द्वारा दायर आवेदन में केंद्र को जांच समिति के साथ सहयोग करने और जरूरी दस्तावेज उपलब्ध कराने के निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)