जज लोया की मौत की स्वतंत्र जांच के लिए एसआईटी गठित करने की मांग करते हुए सांसदों ने राष्ट्रपति से कहा कि उन्हें सीबीआई और एनआईए की जांच पर यक़ीन नहीं है.
नई दिल्ली: विपक्षी सांसदों ने शुक्रवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को एक ज्ञापन सौंपकर सीबीआई की विशेष अदालत के जज बृजगोपाल हरकिशन लोया की मौत के मामले में न्यायालय की निगरानी में एसआईटी जांच कराने की मांग की.
सांसदों ने कहा कि उन्हें सीबीआई या एनआईए की जांच पर भरोसा नहीं है. कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और द्रमुक सहित कई राजनीतिक पार्टियों के सांसदों ने राष्ट्रपति से मुलाकात की और मांगों से युक्त ज्ञापन सौंपा.
ज्ञापन में कहा गया, ‘कानून की महिमा बरकरार रखने के लिए हम आपसे इस मामले में दखल देने का अनुरोध करते हैं. उच्चतम न्यायालय की ओर से चुनी गई स्वतंत्र अधिकारियों की टीम और न्यायालय की ही निगरानी में गहन जांच की जरूरत है.’
इस ज्ञापन पर तृणमूल कांग्रेस, सपा, एनसीपी, द्रमुक, राजद, ‘आप’ और वामपंथी पार्टियों सहित 15 पार्टियों के 114 सांसदों के दस्तखत हैं. बसपा ने पत्र पर दस्तखत नहीं किए हैं.
सांसदों ने कहा कि सीबीआई और एनआईए का पिछला रिकॉर्ड देखते हुए जांच की जिम्मेदारी उन्हें नहीं सौंपनी चाहिए. उन्होंने राष्ट्रपति से कहा, ‘ऐसी प्रक्रिया से लोगों की नजरों में संस्था की विश्वसनीयता सुनिश्चित होगी. हम उम्मीद करते हैं कि आप न्याय दिलाने के लिए अपने पद का अच्छा इस्तेमाल करेंगे.’
विपक्ष की तरफ से लगाए जा रहे आरोपों की अगुवाई कर रहे राहुल गांधी ने कहा कि बहुत सारे सांसदों का मानना है कि लोया की मौत और उसके बाद हुई दो और मौतों में कुछ संदेहास्पद है.
सांसदों ने ज्ञापन में लिखा है, ‘जज बृजगोपाल हरकिशन लोया की मौत को लेकर हुए हालिया खुलासों की जांच होनी चाहिए. वे मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत में सोहराबुद्दीन फर्जी एनकाउंटर मामले की सुनवाई कर रहे थे. लोया के पिता और बहन ने बताया कि आरोपी के पक्ष में फैसला देने के लिए लोया पर बॉम्बे हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस द्वारा दबाव बनाया जा रहा था. इसके बदले में मृत जज को 100 करोड़ रुपये और मुंबई में फ्लैट और जमीन का ऑफर दिया गया था. ‘
सांसदों ने कहा कि ऐसे बयानों का सामने आना एक संज्ञेय अपराध के होने को दिखाता है, जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट के कानून के अनुसार एफआईआर दर्ज करवाना अनिवार्य है, लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा ऐसा न करना गंभीर मसला है.
सांसदों ने यह भी कहा कि मामले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन किया गया है. मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले की सीबीआई जांच के आदेश दिए गये थे, तब दो बातें स्पष्ट रूप से कही गयी थीं, पहली- इस मामले की सुनवाई गुजरात से बाहर हो, दूसरी- एक ही जज इस जांच को शुरू से अंत तक देखे.
लेकिन शीर्ष अदालत के दूसरे आदेश की अवहेलना हुई. मामले की जांच की शुरुआत जज जेटी उत्पत ने की, लेकिन अचानक वे इससे हट गये. 6 जून 2014 को जज उत्पत ने अमित शाह को इस मामले की सुनवाई में उपस्थित न होने को लेकर फटकार लगायी और उन्हें 26 जून को पेश होने का आदेश दिया. लेकिन 25 जून को 2014 को उत्पत का तबादला पुणे सेशन कोर्ट में हो गया.
इसके बाद जज बृजगोपाल लोया आये, जिन्होंने भी अमित शाह के उपस्थित न होने पर सवाल उठाये. उन्होंने सुनवाई की तारीख 15 दिसंबर 2014 तय की, लेकिन 1 दिसंबर 2014 को ही उनकी मौत हो गयी.
उनके बाद सीबीआई स्पेशल कोर्ट में यह मामला जज एमबी गोसावी देख रहे थे, जिन्होंने दिसंबर 2014 के आखिर में अमित शाह को इस मामले से बरी करते हुए कहा कि उन्हें अमित शाह के ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं मिला.
सांसदों ने लोया की मौत के बाद दो और लोगों की मौत पर भी संदेह जाहिर किया.
राष्ट्रपति से मिलने के बाद राहुल ने कहा, ‘बहुत सारे सांसद जज लोया और दो अन्य की मौत के मामले में मानते हैं कि कुछ संदेहास्पद है. वे स्वतंत्र जांच चाहते हैं और सीबीआई को जांच नहीं सौंपना चाहते.’
उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति ने सकारात्मक प्रतिक्रिया जाहिर की और उन्हें आश्वस्त किया कि वह मामले को देखेंगे.
सीबीआई या एनआईए पर यकीन नहीं होने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि 2जी मामले में हुई स्वतंत्र एसआईटी जांच की तरह ही इस मामले में भी स्वतंत्र जांच होनी चाहिए.
सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर मामले की सुनवाई कर रहे लोया की एक दिसंबर 2014 को उस वक्त मौत हो गई थी, जब वह अपने एक सहकर्मी की बेटी की शादी में नागपुर गए थे. जज लोया की मौत की संदिग्ध परिस्थितियों पर उनके परिजनों द्वारा बीते नवंबर में सवाल उठाए गए थे.
इसके बाद मौत की जांच की जनहित याचिकाओं की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है, जहां 5 फरवरी को हुई सुनवाई में याचिकाकर्ताओं के वकीलों द्वारा मामले में दाख़िल दस्तावेजों में पाई गई विसंगतियों की ओर इशारा किया गया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)