व्यंग्य: हे पकौड़ा! तुम चाय की तरह हमेशा के लिए अमर हो जाते अगर मोदीजी कह देते, ‘मैं चाय के साथ पकौड़ा भी बेचता था, इसलिए मैं चाहता हूं भाइयों-बहनों की पूरा हिंदुस्तान चाय-पकौड़ा बेचे’.
वैसे भी पिज़्ज़ा, बर्गर और सैंडविच के चक्कर में लोगों ने तुम्हें भुला ही दिया था पकौड़ा! लेकिन देखो, इस अकेलेपन और बाज़ारू जद्दोजहद के बीच केवल मोदीजी ने तुम्हारा साथ दिया है. तुम्हें अदद गर्म कड़ाही से निकालकर गरमागरम बहस का मुद्दा बना दिया.
अब तक तो तुम हल्की बारिश में दोपहर या सांझ के समय लोगों का चाय पर साथ देते थे, लेकिन देखो, एक ही झटके में मोदीजी ने तुम्हें कहां से कहां पहुंचा दिया.
इसके लिए तुम्हें मोदीजी का शुक्रगुज़ार होना चाहिए, वर्ना जब से ‘चाय पर चर्चा’ होने लगी थी तुम्हें पूछता कौन था, तुम तो ग़ायब ही थे एकदम, लेकिन देखो अब तुम्हारा भविष्य भी चमक गया है.
अब तुम भी कैमरे के सामने तले जा रहे हो, तुम्हारी रेसिपी इस समय राष्ट्रीय से अंतरराष्ट्रीय रेसिपी बन चुकी है, शायद तुम्हें न मालूम हो, लेकिन तुम्हारी रेसिपी इस समय गूगल पर टॉप सर्चिंग ट्रेंड कर रही है!
ये मोदीजी की मेहरबानी ही तो है कि आज से तुम सामान्य पकौड़ा नहीं रहे, अब तुम राजनीतिक और चुनावी पकौड़ा हो गए हो, एकाएक तुम्हारे कच्चे माल बेसन की मांग बढ़ गई है, अब एकाएक पतंजलि के बेसन और फॉर्च्यून की खपत भी तेज़ हो गई, स्वदेशी स्वाद जो देना था. कुछ भी हो इस समय तुम्हारे टक्कर का कोई नहीं है.
तुम सारे राष्ट्रीय संस्थानों में, राष्ट्रीय चैनलों पर तले जा रहे हो, कल को संसद भवन मार्ग पर भी तुम तले जा सकते हो, सोचो, उस संसद भवन मार्ग पर जहां से जाने वाले कितनों को कभी तुम्हारी याद नहीं आई, सिवाय मोदीजी को छोड़कर.
लेकिन, एक काम भूल-चूककर या कहें जान-बूझकर मोदीजी ने तुम्हारे साथ यहां भी कर दिया, तुम ‘चाय’ की तरह हमेशा के लिए अमर हो जाते अगर मोदीजी कह देते, ‘मैं चाय के साथ पकौड़ा भी बेचता था, इसलिए मैं चाहता हूं भाइयों-बहनों की पूरा हिंदुस्तान चाय-पकौड़ा बेचे’.
बताओ, ऐसा अगर मोदीजी कह देते तो तुम भी मोदीजी और चाय के रिश्तों पर लिखी जा रही हज़ारों किताबों की तरह लिखे जा रहे होते, जैसे चाय मोदीजी के साथ अमरत्व को प्राप्त कर चुकी है, वैसे तुम भी प्राप्त कर चुके होते.
लेकिन, यहां तुम्हारा साथ उन्होंने भी नहीं दिया. क्यों नहीं दिया पता नहीं! हालांकि एक बात तो है चाय के साथ तुम्हारी तुलना भी तो नहीं है, आख़िर मोदीजी ने ‘चाय’ बेचने वाले को रोज़गार की श्रेणी से बाहर जो रखा, ‘पकौड़े’ वाले को शामिल किया.
वैसे अब तुम्हारे सामने कई चुनौतियां भी हैं, रोज़गार की तलाश में देश के करोड़ों युवा अब तुम्हारी ओर जीभ निकालकर लपकेंगे.
अब शायद मोदीजी का किया चुनावी वायदा ‘दो करोड़ रोज़गार हर साल’ पूरा हो! तुम संभले रहना, तुममें बहुत मिलावट होने वाली है, तुम्हारा भी अब राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्करण निकलने वाला है.
बहुराष्ट्रीय कंपनियां तुम्हें लपकने वाली हैं, देखते ही देखते ‘स्टार्ट अप’ का नया मंत्र मोदीजी ने तुम्हारे ही भरोसे दिया है. आख़िरकार इस देश के करोड़ों युवाओं की उम्मीद जो तुम हो.
इसलिए, हे पकौड़े! अब हमें तुम्हारा ही आसरा है, मोदीजी ने अपनी सरकार के चौथे साल में हमें तुम्हारे पास भेजा है, उनके पास और कुछ नहीं है, वो और कोई नौकरी नहीं दे सकते हैं, उनसे रोज़गार की बात करने पे वो कहते हैं हिंदुस्तान का युवा रोज़गार ले नहीं रोज़गार दे रहा है.
और अब तो उन्होंने कहा दिया कि कोई बेरोज़गार है ही नहीं, पकौड़े वाले का रोज़गार उत्तम है, रोज़गार का सरकारी स्वरूप अब तुम्हें ही माना जाएगा. इसीलिए अपने चौथे बजट में मोदीजी ने लगे हाथ पांच लाख नौकरियां ख़त्म करके सबको तुम्हारे पास भेज दिया है.
इलाहाबाद से लेकर दिल्ली, कोटा से लेकर पटना, और कोलकाता से लेकर हैदराबाद तक करोड़ों युवा जो दौड़-दौड़ कर फॉर्म भर रहे हैं, बैंक एसएससी रेलवे के, वे अब सब तुम्हारी ओर दौड़ेंगे.
देखना उन्हें निराश मत करना, वैसे भी अब तुम्हीं एकमात्र और अंतिम उम्मीद बचे हो, मोदीजी ने तो हाथ खड़े कर दिए, अब पकौड़े तुम पर ही हमारे हिंदुस्तान का भविष्य टिका है, तुम्हारी प्रगति तेज़ी से होने वाली है.
आने वाले चुनाव में ‘पकौड़ा स्टॉल’ की संख्या तेज़ी से बढ़ने वाली है, देखते ही देखते तुम्हारा नाम ‘इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट’ के दायरे में आने वाला है, तुम्हारे नाम पर पहला पेटेंट तो मोदीजी ने करा ही लिया है.
अब वे तुम्हें ऐसे नहीं छोड़ेंगे, अब तुम्हें खूब भुनाया जाएगा, पकाया जाएगा और अंत में शायद जलाकर छोड़ दिया जाए.
इसलिए, हे पकौड़े! तुम होशियार रहना, मोदीजी ने तुम्हारा सहारा लेकर करोड़ों युवाओं को ठेंगा दिखाया है, लेकिन तुम्हें ‘हीरो’ बना दिया है, ध्यान रखना ऐसे लोग होते किसी के नहीं, न अपने परिवार के न देश के, संन्यासी होते हैं ऐसे लोग.
झोला उठाकर चल देते हैं, और मोदीजी ने तो झोला कंधे पर रखकर चल देने की बात कह भी दी है, इसलिए तुम अपनी कड़ाही, अपने बेसन, अपने तेल, अपने प्याज़, मिर्च-मसाले पर ही भरोसा करना, ये तुम्हें इस देश की संसद में बहस का विषय तो बना सकते हैं, लेकिन तुम्हारा कद इतना कभी नहीं उठने देंगे कि तुम सभी की जीभ पर पहुंच सको.
(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में शोध छात्र है.)