छात्रों ने थाने में शिक़ायत दर्ज करवाते हुए कहा कि नाटक में गोडसे का महिमामंडन और महात्मा गांधी का अपमान किया गया है.
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में कला संकाय के वार्षिकोत्सव ‘संस्कृति 2018’ में महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे पर नाटक होने पर विवाद हो गया है.
तीन दिवसीय इस समारोह में नाथूराम गोडसे पर एक नाटक का मंचन किया गया था. छात्रों का आरोप है कि इस नाटक में महात्मा गांधी का अपमान किया गया है, साथ ही इसके माध्यम से उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे का महिमामंडन करते हुए गांधी की हत्या को सही ठहराया गया.
इस नाटक का कथित वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है.
विश्वविद्यालय के तीन छात्रों ने इस संबंध में लंका थाने में शिकायत दर्ज करवाई है, साथ ही कुलपति को पत्र लिखकर शामिल व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की है.
छात्रों ने लिखा है, ‘1916 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय की नींव व आधारशिला गांधी जी के प्रथम भाषण के माध्यम से रखी गई है. विश्वविद्यालय के संस्थापक पूज्य महामना मदन मोहन मालवीय जी व गांधी जी के बड़े आत्मीय रिश्ते रहे… लेकिन 20.02. 2018 को महामना और महात्मा के इसी परिसर में विश्वविद्यालय के कुछ शिक्षकों और छात्रों के सुनियोजित षड्यंत्र ने भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के उच्च आदर्शों, महामना व विश्वविद्यालय परिसर के मूल्यों और हमारे संवैधानिक आदर्शों को गहरा धक्का पहुंचाया है.’
छात्रों की शिकायत में सवाल उठाया गया है कि ऐसे नाटक का मंचन कैसे संभव हुआ. उन्होंने लिखा है, ‘ज्ञात हो कि विश्वविद्यालय के सांस्कृतिक कार्यक्रम ‘स्पंदन’ व ‘संस्कृति’ में फिल्मी गानों पर भी प्रतिबंध है. ऐसे में देश के स्वतंत्रता आंदोलन, संवैधानिक मूल्यों को चोट पहुंचाने वाले कार्यक्रम का मंचन कैसे संभव हुआ?’
छात्रों का कहना है कि कार्यक्रम में देश की सभी समस्याओं के लिए गांधी को जिम्मेदार ठहराया गया, कहा गया कि देश के बंटवारे के लिए गांधी जिम्मेदार थे और गांधी अहिंसा से हिंसा कर रहे थे. छात्रों ने कहा कि न्यायालय द्वारा फांसी की सजा पाए आतंकवादी गोडसे के महिमामंडन से देश की एकता, अखंडता और अस्मिता को चोट पहुंचती है, जो राष्ट्रद्रोह से कम नहीं है.
विवाद पर विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. स्क्रॉल से बात करते हुए विश्वविद्यालय की चीफ प्रॉक्टर रोयना सिंह ने छात्रों की शिकायत मिलने की पुष्टि की. साथ ही यह भी कहा कि ऐसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए कला संकाय के डीन जिम्मेदार हैं. वे उनसे मिलकर इसके बारे में जानेंगी.
द वायर द्वारा कला संकाय के डीन प्रोफेसर श्रीनिवास पांडे से संपर्क का प्रयास किया गया, लेकिन उनसे बात नहीं हो सकी.
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए उन्होंने इस मामले को लेकर अनभिज्ञता जाहिर की. उन्होंने कहा, ‘मुझे इस घटना के बारे में पूछना होगा. मैंने इस बारे में नहीं सुना है. ऐसे चित्रण में कुछ गलत नहीं है. हर व्यक्ति को सम्मान और प्यार देना चाहिए, ये हमारे महापुरुष हैं. हमें इनका सम्मान करना चाहिए.
स्क्रॉल से बात करते हुए पांडे ने कहा कि संस्कृति कार्यक्रम शिक्षकों की एक टीम द्वारा आयोजित किया जाता है, जो विषयों को चुनते हैं. उन्होंने कहा, ‘मुझे इस बारे में जानकारी नहीं है और न ही मैं इस पर टिप्पणी करने की स्थिति में हूं.’