श्रीदेवी एहसासों में हैं, खिलखिलाहट में हैं, चुलबुलेपन में हैं. वो ख़ुद ही एक नृत्य हैं, एक पेंटिंग हैं. वो हम में ही कहीं भरी हुई हैं.
बबलू अंकल की शादी है. पहली मंज़िल पर छत पर बिछे लकड़ी के तख्त पर लेटे बबलू अंकल धूप सेकते हुए मेहंदी लगवा रहे हैं. मेहंदी लगाने वाली लड़कियों में से एक लड़की पड़ोस की सीमा भी है, जिसे देखकर बबलू अंकल ने कई बार गुनगुनाया है रंग भरे बादल से तेरे नैनों के काजल से मैंने इस दिल पे लिख दिया तेरा नाम ..
मेहंदी लगाती सीमा माचिस की तीली को मेहंदी के कप में डुबोती और बबलू अंकल की हथेली पर मेहंदी से लिख देती है अंग्रेज़ी में ‘एस’… एक आंसू की बूंद हथेली पर गिरती. उसी पल मिटा देती वो नाम का पहला अक्षर.
उन दोनों की आंखों में भर आये बेबसी के आंसुओं को महसूस कर पाने की उन बच्चों में समझ नहीं थी, जो ठीक ऊपर वाली मंजिल पर बने कमरे में बैठे हुए डेक पर गाने की कैसेट बार-बार बदल देते हैं और स्पीकर्स के जरिये तेज़ आवाज को चांदनी का काजल लगा देते हैं चांदनी ओ मेरी चांदनी.
स्पीकर के साथ साथ अपना भी सुर अलापते हैं. एक कहता, ‘मैंने चित्रहार में देखा है, श्रीदेवी है इस गाने में.’
बाकी सब बैंड-बाजे की धुन को पकड़े कमरे से बाहर भागते. मेरे हाथों में नौ नौ चूड़ियां हैं की खनक सुनाई पड़ती है. दूर के रिश्ते के ताऊजी की बेटी के डांस पर फिदा होते अपने भाइयों को देखकर वो लड़की बार-बार दावा करती है कि इससे अच्छा तो मैं ही कर सकती हूं बिल्कुल श्रीदेवी जैसा. हुह, इसको कुछ भी नहीं आता.
सब बच्चे उसकी खिल्ली उड़ाते हैं. वो झल्ला पड़ती है. उधर नीचे से बड़ी वाली चाची बैंड की तेज आवाज के बीच उसका नाम पुकार रही हैं और हाथ के इशारे से भी उसको बुलाती हुई कह रही हैं कि हमारी बिट्टो भी ऐसा बढ़िया नाचती है इस पर तो. इधर बिट्टो मुंह फुलाकर बैठी है, उधर मम्मी… इतना बढ़िया आता है पर जब कहो तब नहीं करेगी.
रात को बारात में बिट्टो बबलू अंकल के दोस्तों से घिरी हुई है. शंकर डेकोरेटर्स के लाइट से झिपझिपाती रथनुमा जीप पर खड़े हुए बैंड वाला माइक पर गा रहा है, मैं तेरी दुश्मन… मैं नागिन तू सपेरा… लाल-पीली-नीली रोशनियों के बीच बिट्टो नागिन बनी लहरा रही है.
ये बिट्टो या किसी और लड़की का किस्सा नहीं है, ये श्रीदेवी की याद है और तब की, जब छोटी लड़कियां उनकी तरह नाचना चाहती थीं. छोटे लड़के उनकी तरह नाचती लड़कियों पर दिल फेंका करते थे. थोड़ी-बड़ी लड़कियां उनकी तरह खूबसूरत दिखना चाहती थीं. थोड़े बड़े लड़कों की वो फैंटेसी थीं.
श्रीदेवी को जानने, सुनने और समझने के बजाय खुद के भीतर ही कहीं उतरते महसूस किया गया है. वो एहसासों में हैं, खिलखिलाहट में हैं, चुलबुलेपन में हैं. वो खुद ही एक नृत्य हैं, एक पेंटिंग हैं.
वो हम में ही कहीं भरी हुई हैं आज जब वो हमारे बीच नहीं हैं तो हमारे भीतर से जाने कहां-कहां से फूट-फूटकर निकल रही हैं. हम उन्हें कभी भी जाने नहीं दे सकते.
श्रीदेवी को जब पढ़ना और सुनना चाहा तब यही पाया कि वो बेहद खामोश और हसीन शै थीं और उतनी ही खामोशी से चली गयीं. लेकिन एक था उनका राज़दार जिसे वो अपने सारे अंदाज़, नखरे, जलवे, सुर, थिरकन बताती थीं… कैमरा.
हां, उसे श्री का हमदम माना जा सकता है. सार्वजानिक जीवन में बेहद चुप श्रीदेवी की हर धड़कन दर्ज करता कैमरा. उसके आगे वो मासूमियत से ‘हरी प्रसाद’ कहें या फिर शैतानी से ‘बलमा’, वो सुनता था. कैमरा ऑन, इज़हार ए मुहब्बत ऑन. करते हैं हम प्यार मिस्टर इंडिया से… और तोहफा तोहफा तोहफा मिलता सिल्वर स्क्रीन को.
उनका कैमरा से कोई बहुत गहरा राब्ता था और बहुत पुराना भी. एक बच्ची जिसको खूब सपने आते थे, जो उसको बहुत डराते थे. कभी फैंटम, कभी सांप के सपने. बहुत कम बोलती वो बच्ची, घर में मेहमान आते तो मां के पीछे दुबक जाती.
फिर कैमरा से मुलाकात हुई. चार साल की उस छोटी बच्ची को अपना दोस्त मिल गया. शूटिंग, सेट, लाइट, क्राउड के बीच उसको कैमरा अपना-सा लगता. कैमरा वो साथी बना जिसने सांप के सपने से भी डरने वाली श्रीदेवी को नगीना के जरिये भारतीय दर्शकों के दिलों पर राज करने वाली नागिन बना दिया.
चार साल की उम्र में तमिल फिल्म थुनाईवन में काम किया. इसके बाद उनकी कैमरा प्रेम कथा तेलुगु हुई ,मलयालम, फिर हिंदी और फिर इंग्लिश-विंग्लिश. हर बार एक नए रूप में अपने प्रेमी कैमरा को रिझाना ही उनका परम ध्येय था. हालांकि फिल्म निर्माता बोनी कपूर से शादी के बाद उन्होंने कैमरा छोड़ ही दिया था, पर जब भी दोनों आमने-सामने हुए पुराने प्रेमियों की मानिंद मिले, प्रेम रत्ती भर भी कम न हुआ.
कुछ वक्त पहले दिए इंटरव्यू में श्री कहती रहीं अभी उन्हें और काम करना है. यकीनन, अगर वो होतीं तो इस प्रेम कहानी के कुछ और मंजर देखने को मिलते. जिंदगी को गले लगाने और उसे बेतहाशा चूमने के मौके मिलते पर ये सितमगर वक्त.
अभी भी लग रहा है तपती कोई दोपहरी हो, पार्क में घास पर लोट पोट होते गर्म पाइप के जिस्म के किसी सुराख से ठंडी कोई धार निकलती हो. मैं जब उसमें चेहरा भिगाऊं तो हेलीकॉप्टर से कोई आवाज नीचे गिरे, मैंने इस दिल पे लिख दिया तेरा नाम…
कलाइयों में जाने कितनी ब्लैक मेटल की चूड़ियां चढ़ जाएं, कपड़ों को हल्दी लग जाए. फिर माथे पर कोई सिल्वर बिंदी, बैक ड्रॉप में गिटार के सुर… काटे नहीं कटते ये दिन ये रात
पर क्या कहें इस फरेबी लम्हे में सिवाय इसके कि श्रीदेवी की याद नहीं, हर लड़की के दिल की बात है. बकौल बशीर बद्र, ‘जिंदगी के उदास किस्से में एक लड़की का नाम और सही…
(माधुरी आकाशवाणी जयपुर में न्यूज़ रीडर हैं)