पिछले साल दिल्ली हाईकोर्ट ने सार्वजनिक क्षेत्र की नवरत्न कंपनी ओएनजीसी में भाजपा के प्रवक्ता डॉ. संबित पात्रा को स्वतंत्र निदेशक बनाने के मामले में दख़ल देने से इनकार कर दिया था.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह दिल्ली उच्च न्यायालय के पिछले साल के उस फैसले को चुनौती देने वाली एक एनजीओ की याचिका पर केंद्र को सुनेगी जिसमें भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा की ओएनजीसी में स्वतंत्र निदेशक के रूप में नियुक्ति के खिलाफ दायर अर्जी को ठुकरा दिया था.
न्यायमूर्ति एके सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने केंद्र को औपचारिक रूप से नोटिस जारी नहीं किया और एनजीओ से याचिका की एक प्रति केंद्र सरकार को भेजने को कहा.
एनजीओ ‘एनर्जी वॉचडॉग’ की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने जब अदालत से केंद्र को औपचारिक रूप से नोटिस जारी करने का आग्रह किया तो पीठ ने कहा, ‘आप भारत संघ (केंद्र सरकार) को प्रति भेजें. शुरुआती दलीलें सुनने के बाद हम औपचारिक नोटिस जारी कर सकते हैं.’
पीठ ने इसके बाद मामले को दो सप्ताह बाद सुनने के लिए रखा. एनजीओ ने उच्च न्यायालय के पिछले साल छह नवंबर के फैसले को चुनौती दी थी.
उस फैसले में दिल्ली हाई कोर्ट ने सार्वजनिक क्षेत्र की नवरत्न कंपनी ओएनजीसी (आॅयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन लिमिटेड) में भाजपा के प्रवक्ता डॉ. संबित पात्रा को स्वतंत्र निदेशक बनाने के मामले में दखल देने से इनकार कर दिया था. चीफ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस सी. हरिशंकर ने एनजीओ ‘एनर्जी वॉचडॉग’ की याचिका को खारिज कर दिया था.
उस याचिका में एनजीओ ने ओएनजीसी में स्वतंत्र निदेशक बनाने के लिए संबित पात्रा की योग्यता पर सवाल उठाया था. उसमें यह भी आरोप लगाया था कि उनकी नियुक्ति के लिए प्रक्रिया का भी सही से पालन नहीं किया गया.
Supreme Court seeks govt's response on plea challenging Sambit Patra's appointment as independent director in ONGC.
PIL by NGO Energy Watchdog, represented by Prashant Bhushan in court, cites following grounds: pic.twitter.com/WlNvYNhBkR— Upmanyu (@upmanyutrivedi) March 6, 2018
हाईकोर्ट में एनजीओ के पैरवीकार वरिष्ठ अधिवक्ता जयंत भूषण ने कहा था कि भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा पेशे से डॉक्टर हैं, जबकि ओएनजीसी का दवा के क्षेत्र से कोई लेना-देना नहीं हैं जो उन्हें उसके निदेशक मंडल में नियुक्त किया गया है. एनजीओ ने संबित पात्रा को मिलने वाले सालाना 23 लाख रुपये के भुगतान को लेकर भी सवाल उठाया.
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार संबित की नियुक्ति को तीन स्तरों पर चुनौती दी गई है. पहला- संबित ‘स्वतंत्र’ नहीं है क्योंकि वह सत्तारूढ़ भाजपा के सदस्य है. दूसरा- नियुक्ति के लिए संबित पात्रा आवश्यक योग्यता नहीं रखते. तीसरा- ज़्यादा तनख़्वाह वाला कोई भी पद किसी अयोग्य व्यक्ति को इसलिए नहीं दिया जा सकता कि वह सरकार का क़रीबी है.
हालांकि, केंद्र ने अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा था कि संबित पात्रा एक एनजीओ सफलता के साथ चला चुके हैं, इसलिए वे इस पद के लिए योग्य हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)