कथित तौर आत्महत्या करने वाले जेएनयू के छात्र रजनी कृष ने पिछले कुछ वर्षों में प्रताड़ित किए गए ‘वंचितों की लिस्ट’ पोस्ट करते हुए लिखा था, ‘यह लिस्ट 2017 में बढ़ सकती है.’ दुर्भाग्य से रजनी कृष का नाम भी इसमें जुड़ गया.
‘जिन नौजवानों को कल देश की बागडोर हाथ में लेनी है, उन्हें आज अक्ल के अंधे बनाने की कोशिश की जा रही है. इससे जो परिणाम निकलेगा वह हमें ख़ुद ही समझ लेना चाहिए. यह हम मानते हैं कि विद्यार्थियों का मुख्य काम पढ़ाई करना है, लेकिन क्या देश की परिस्थितियों का ज्ञान और उनके सुधार सोचने की योग्यता पैदा करना उस शिक्षा में शामिल नहीं? यदि नहीं तो हम उस शिक्षा को भी निकम्मी समझते हैं, जो सिर्फ क्लर्की करने के लिए ही हासिल की जाए. ऐसी शिक्षा की ज़रूरत ही क्या है? कुछ ज़्यादा चालाक आदमी यह कहते हैं, काका! तुम पॉलिटिक्स के अनुसार पढ़ो और सोचो ज़रूर, लेकिन कोई व्यावहारिक हिस्सा न लो. तुम अधिक योग्य होकर देश के लिए फायदेमंद साबित होगे.’
भगत सिंह, ‘विद्यार्थी और राजनीति (1928)’ लेख से.
जेएनयू में एमफिल के छात्र रजनी कृष यानी मुथुकृष्णनन जीवानंदम का भी मुख्य काम पढ़ाई करना ही था, लेकिन वह देश की परिस्थितियों और उनके सुधार के बारे में भी सोचते थे. वे सपने भी देखते थे. सोमवार को दिल्ली के मुनिरका विहार में एक घर में उनकी लाश मिली. उन्होंने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली. इससे पहले सात अगस्त को उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर लिखा था…
‘दोपहर को दो बज रहे थे. मैं चेन्नई की एक बिल्डिंग में पुताई का काम कर रहा था. दोपहर में लंच के समय मैं समुद्र के किनारे बैठा था. मैंने अपने ऊपर से एक जहाज़ उड़ते हुए देखा. मैंने सोचा, इस जीवन में तो मैं इस मशीनी चिड़िया पर बैठने की सोच नहीं सकता. मैंने ईश्वर से प्रार्थना की, ‘प्रिय ईश्वर! यदि मुझे दूसरा जन्म मिले तो हमें चिड़िया बना देना. मैं पूरी दुनिया देखना चाहता हूं. और मुझे तीन चार पंख देना क्योंकि जब तक पूरी दुनिया का कोना-कोना न देख लूं, मैं थकना नहीं चाहता. एक बार मैंने अपने पिता से कहा, मेरे दोस्त सब जहाज़ में उड़ते हैं, आप मुझे उड़ने के लिए कुछ पैसे क्यों नहीं दे देते? पिता ने कहा, हम तुम्हें इतना पैसा नहीं दे सकते लेकिन तुमको जीवन और अच्छा स्वास्थ्य दे सकते हैं. काम करो और अपने पैसे से उड़ो.’
और अंतत: रजनी कृष का सपना पूरा हुआ. उन्होंने कुछ पैसे जुटाए और हैदराबाद से दिल्ली की यात्रा की. रजनी कृष सपने देखने वाले युवा थे, उन्होंने मशीनी चिड़िया पर बैठकर उड़ने का सपना तो पूरा कर लिया, लेकिन दुनिया देखने का उनका सपना पूरा नहीं हो सका. दुनिया का हर कोना देखने की हसरत रखने वाले इस युवक की अब आंखें हमेशा के लिए बंद हो चुकी हैं.
रजनी कृष का शव सोमवार शाम एक दोस्त के घर फंदे से लटका मिला. पुलिस इसे आत्महत्या का केस मान रही है. लेकिन इस आत्महत्या पर तमाम सवाल उठ रहे हैं. पुलिस को कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है. इस कथित आत्महत्या के तीन दिन पहले रजनी कृष ने अपनी फेसबुक वॉल पर एक पोस्ट लिखी थी जिसमें कहा था, ‘समानता से वंचित करना हर चीज़ से वंचित करना है.’ यह उनकी आख़िरी फेसबुक पोस्ट है.
उन्होंने फेसबुक पर जेएनयू में असमानता के मुद्दे पर तमाम सवाल उठाए थे. उन्होंने लिखा, ‘एमफिल/पीएचडी दाख़िलों में कोई समानता नहीं है. मौखिक परीक्षा में कोई समानता नहीं है. सिर्फ समानता को नकारा जा रहा है. प्रोफ़ेसर सुखदेव थोराट की सिफ़ारिशों को नकारा जा रहा है. एडमिन ब्लॉक में छात्रों के प्रदर्शन को नकारा जा रहा है. वंचित तबके की शिक्षा को नकारा जा रहा है. समानता से वंचित करना हर चीज़ से वंचित करना है.’
रजनी कृष तमिलनाडु के सेलम ज़िले के रहने वाले थे. उनका असली नाम मुथुकृष्णनन जीवानंदम था, लेकिन दोस्तों के बीच वे रजनी कृष नाम से लोकप्रिय थे. उन्होंने इसी नाम से फेसबुक पेज भी बनाया था. रजनी जेएनयू के पहले हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र थे और इस साल पहले जेएनयू में दाख़िला लिया था. हैदराबाद में वे रोहित वेमुला आत्महत्या प्रकरण के बाद चले आंदोलन में शामिल रहे थे.
पुलिस का कहना है, ‘रजनी कृष होली के मौक़े पर अपने एक दक्षिण कोरियाई दोस्त के यहां गए थे. आत्महत्या से पहले वे कमरे में सोने चले गए थे. उन्होंने कमरा अंदर से बंद कर लिया था. जब दरवाज़ा बाहर से खटखटाया गया और कोई जवाब नहीं मिला तो पुलिस को जानकारी दी गई.’
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के मीडिया कोआॅर्डिनेटर साकेत ने कहा, ‘रजनी ने कैंपस में होली खेली और दोपहर के बाद अपने दोस्त के यहां चले गए.’ जेएनयू ने अब तक इस बारे में कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है. जेएनयू के छात्र उमर ख़ालिद ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा, ‘हमारे विश्वविद्यालय कब्रगाह में तब्दील हो रहे हैं.’
रजनी ने चार बार जेएनयू में एडमिशन के लिए कोशिश की थी और अतत: कामयाब हुए थे. इस कामयाबी से खुश होकर उन्होंने 26 जुलाई, 2016 को एक पोस्ट भी लिखी थी. उन्होंने एडमिशन की ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए यह भी लिखा है, ‘पहली दो कोशिशों के दौरान मुझे अंग्रेज़ी नहीं आती थी, लेकिन फिर मैंने सीख ली. कुछ जगहों पर काम करके अपनी पढ़ाई के लिए पैसे बचाता रहा. हर साल जेएनयू आता रहा, लोगों से पैसे भी मांगे, सफर के दौरान खाना नहीं खाकर पैसे बचाए.’
इसी पोस्ट में उन्होंने लिखा था, ‘हर साल मैं नेहरू की प्रतिमा के पास बैठकर नेहरू से पूछा करता था, प्लीज़ नेहरू जी, हमारा पूरा परिवार कांग्रेस को वोट देता है. आप मुझे पढ़ने क्यों नहीं देना चाहते? और अंतिम इंटरव्यू में मेरा एडमिशन हो गया.’ वे अपनी इस यात्रा पर ‘फ्रॉम जंकेट टू जेएनयू’ शीर्षक से एक किताब भी लिखना चाहते थे.
वे फेसबुक पर ‘माना’ शीर्षक से सीरीज में कहानियां लिख रहे थे, जिसमें एक दलित युवक का संघर्ष बयान करते थे. उनकी आख़िरी पोस्ट इसी सीरीज़ के तहत है जिसमें उन्होंने असामनता का मुद्दा उठाया था. उनकी फेसबुक वॉल लगातार ऐसी पोस्ट से भरी है जिसमें असमानता और संघर्ष के मुद्दों पर वे लिखते थे. रजनी कृष की पोस्ट से पता चलता है कि वे लगातार आंदोलनों से जुड़े थे और समाज में व्याप्त अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ रहे थे.
30 दिसंबर, 2016 को रजनी ने रोहित वेमुला और जेएनयू से लापता हुए नजीब की मां की फोटो के साथ एक लिस्ट पोस्ट की थी. इस शीर्षक दिया था ‘वंचितों की लिस्ट’. इस लिस्ट में रोहित वेमुला और नजीब समेत उन सभी दलित-वंचित वर्ग के नाम हैं जिन्हें किसी न किसी रूप में प्रताड़ित किया गया. 26 लोगों की इस लिस्ट के अंत में रजनी ने लिखा था, ‘यह लिस्ट 2017 में बढ़ सकती है, क्योंकि ‘वंंचितों की यह लिस्ट’ न सिर्फ़ आधुनिक तानाशाह मनुओं द्वारा लागू की जा रही है, बल्कि यह जाति का उन्मूलन भी है.’ दुर्भाग्य से रजनी कृष यानी मुथुकृष्णनन जीवानंदम का नाम भी इसी लिस्ट में जुड़ गया. रजनी कृष की मौत एक सपने के साथ-साथ विश्वविद्यालयों में पनप सकने वाली एक संभावना की मौत है.