एक के बाद एक भड़काऊ बयान दे रहे श्रीश्री रविशंकर पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है?

अयोध्या के संबंध में श्रीश्री का यह दावा करना कि अगर अदालत हिंदुत्ववादियों की मांग को ख़ारिज करता है तो हिंदू हिंसा पर उतर आएंगे, इसके ज़रिये वह न केवल क़ानून के राज को चुनौती दे रहे थे बल्कि संवैधानिक सिद्धांतों पर भी सवाल खड़ा कर रहे थे.

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Jabalpur: Art of Living founder Sri Sri Ravi Shankar speaks during Mahasatsang 'Shakti Sangam' at Jabalpur on Thursday. PTI Photo (PTI3_8_2018_000023B)
श्री श्री रविशंकर (फोटो: पीटीआई)

अयोध्या के संबंध में श्रीश्री का यह दावा करना कि अगर अदालत हिंदुत्ववादियों की मांग को ख़ारिज करता है तो हिंदू हिंसा पर उतर आएंगे, इसके ज़रिये वह न केवल क़ानून के राज को चुनौती दे रहे थे बल्कि संवैधानिक सिद्धांतों पर भी सवाल खड़ा कर रहे थे.

Jabalpur: Art of Living founder Sri Sri Ravi Shankar speaks during Mahasatsang 'Shakti Sangam' at Jabalpur on Thursday. PTI Photo (PTI3_8_2018_000023B)
(फाइल फोटो: पीटीआई)

श्रीश्री रविशंकर इन दिनों सुर्खियों में हैं (अलबत्ता फिर एक बार गलत वजहों से). चंद रोज पहले एक न्यूज चैनल ‘इंडिया टुडे’ से बात करते हुए उन्होंने एक किस्म की अंधकारमय भविष्यवाणी प्रस्तुत की कि अगर मंदिर मसले का समाधान जल्द नहीं किया गया तो भारत सीरिया बन सकता है.

मालूम हो कि सीरिया विगत कुछ वर्षों से गृहयुद्ध का शिकार है, जिसमें लाखों लोग मारे जा चुके हैं. उनका कहना था, ‘अगर अदालत मंदिर के खिलाफ निर्णय सुनाती है तो रक्तपात होगा. क्या आप सोचते हैं कि हिंदू बहुमत इससे राजी होगा? वह मुस्लिम समुदाय के खिलाफ असंतोष को हवा देंगे.’

जैसे कि उम्मीद की जा सकती है कि इन ‘भड़काऊ बयान’ के लिए उनकी काफी भर्त्सना हुई और इस बात को मद्देनजर रखते हुए कि उनका यह बयान ‘संप्रदायों में तनाव’ को बढ़ावा दे सकता है, देश के अलग-अलग हिस्सों में उनके खिलाफ पुलिस में शिकायतें भी दर्ज हुईं.

वही, अधिक विचलित करने वाली बात यह थी कि न ही बयान से उपजा गुस्सा और न ही पुलिस में दर्ज शिकायत का अयोध्या मामले के इन ‘स्वयंभू’ मध्यस्थ कहे जाने वाले इस आध्यात्मिक गुरु पर कोई असर हुआ और मध्य प्रदेश के जबलपुर में भी रिपोर्टरों से गुफ्तगू करते हुए उन्होंने अपने इसी विवादास्पद बयान को दोहराया. और यह कहने के लिए अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात की.

निश्चित ही वहां मौजूद किसी खबरनवीस ने उनसे यह पूछने की जुर्रत नहीं की कि क्या संविधान द्वारा तय मर्यादाओं का उल्लंघन या तयशुदा कानूनी विधानों की अनदेखी भी इसी दावे में शुमार की जा सकती है.

क्या श्रीश्री को नहीं पता होगा कि जहां तक ऐसे बयानों की बात है तो उनके बारे में कानून बिल्कुल स्पष्ट है. भले उनके अमल पर कोताही नजर आए. भारत के कानूनों के तहत धर्म के आधार पर दो समुदायों के बीच दुश्मनी फैलाना एक आपराधिक कार्रवाई है.

भारतीय दंड विधान की धारा, दंगा फैलाने की नियत से भड़काऊ कार्रवाई करने के लिए (धारा 153), धर्म के आधार पर दो समुदायों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने के लिए (धारा 153 ए), राष्ट्रीय एकता को बाधा पहुंचाने वाले वक्तव्यों, बयानों (धारा 153 बी), ऐसे शब्दों का उच्चारण जिनके जरिए दूसरे व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को आहत करना (धारा 298), सार्वजनिक शांति व्यवस्था को बाधित करने वाले वक्तव्य (धारा 505 (1), बी और सी) और अलग-अलग तबकों के बीच नफरत, दुर्भावना और दुश्मनी पैदा करने वाले वक्तव्य (धारा 505/2).

भारतीय दंड विधान की सेक्शन 153 ए या बी का किसी व्यक्ति द्वारा किया जा रहे उल्लंघन के खिलाफ कार्यकारी दंडाधिकारी को कार्रवाई शुरू करने का अधिकार है.

अगर हम आध्यात्मिक गुरु के बयान को बारीकी से देखेंगे तो पता चलेगा कि अगर उनके खिलाफ दायर शिकायतों को प्रथम सूचना रिपोर्टों की शक्ल प्रदान की गयी तो उनके लिए कानूनी पचड़ों से बच निकलना आसान नहीं रहेगा.

एक कार्यकर्ता जिसने दिल्ली के थाने में शिकायत दर्ज की है. उन्होंने कहा कि ‘अगर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नहीं की गयी तो वह अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई को आगे बढ़ाएंगे.’

कोई पूछ सकता है कि आखिर ऐसे विवादास्पद बयान देने का साहस लोग कैसे करते हैं. दरअसल ऐसे लोगों पर क्या कार्रवाई होती है वह इस बात से तय होता है कि सत्ता से उनकी कितनी नजदीकी है.

ऐसे तमाम उदाहरण दिखते हैं जब ऐसे लोग जिनकी दक्षिणपंथी विचारों के प्रति सहानुभूति जगजाहिर है वह बेधड़क ऐसे भड़काऊ बयान देते जाते हैं और उनका कुछ नहीं होता.

बहुत अधिक वक्त नहीं हुआ जब भाजपा से जुड़े तमिलनाडु के पूर्व विधायक एच. राजा अचानक तब सुर्खियों में आए, जब त्रिपुरा के चुनावों के बाद हिंदुत्व वर्चस्ववादी ताकतों ने लेनिन की एक मूर्ति तोड़ी थी और उसी समय उन्होंने फेसबुक पर लिखा:

‘लेनिन कौन होता है? भारत के साथ उसका ताल्लुक क्या है? भारत के साथ कम्युनिस्टों का क्या संबंध है? लेनिन की मूर्ति को त्रिपुरा में तबाह कर दिया गया. आज लेनिन की मूर्ति, कल तमिलनाडु के ईवीआर रामास्वामी (पेरियार) की मूर्ति.’

रामास्वामी पेरियार की तमिलनाडु में अहमियत को इस बात से समझा जा सकता है कि सभी द्रविड पार्टियां- चाहे अन्नाद्रमुक, द्रमुक तथा अन्य उनके योगदानों के प्रति नतमस्तक रहती हैं.

डॉ. आंबेडकर ने जिस तरह महाराष्ट्र तथा शेष भारत के दलितों में अलख जगाई, उसी किस्म का काम पेरियार ने तमिलनाडु की शूद्र तथा अतिशूद्र जातियों में किया था और व्यापक आंदोलन को जन्म दिया था.

इस तथ्य के बावजूद कि एच. राजा के इस फेसबुक वक्तव्य से समूचे राज्य में हिंसा हो सकती है, उनके खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं हुई. विपक्षी पार्टियों की तरफ से भले मांग की गई कि उन्हें गिरफ्तार किया जाए और गुंडा एक्ट लगाया जाए.

एच. राजा ने तत्काल अपने फेसबुक पोस्ट से दूरी बना ली और कहा कि उस पेज को कई एडमिन देखते हैं. किस्सा वहीं खत्म हुआ.

एक तरफ जबकि एच. राजा को अपने आक्रामक पोस्ट के लिए ‘स्पष्टीकरण’ के बाद कुछ भी विपरीत नहीं झेलना पड़ा, मगर एक किशोर जाकिर त्यागी उतना किस्मतवाला नहीं निकला.

Ayodhya Babri Masjid PTI
(फाइल फोटो: पीटीआई)

पिछले साल जब योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया और उन्होंने ऐलान किया कि अब गुंडों और बदमाशों को यूपी छोड़ना होगा तो मुज़फ़्फ़रनगर के रहने वाले इस किशोर ने व्यंग्य शैली में लिखा:

‘गोरखपुर में योगीजी ने कहा कि अब गुंडों और बदमाशों यूपी छोड़ो. मैं यह कहने वाला कौन होता हूं कि योगी आदित्यनाथ जी के खिलाफ 28 मुकदमे दर्ज हैं जिनमें से 22 मामलों में गंभीर धाराएं लगी हैं.’

बस इसी बात पर उसे कई सप्ताह जेल में बिताने पड़े. उसके तमाम धाराओं के तहत जिनमें एक देशद्रोह की भी धारा है- मुकदमे कायम किए गए.

हम पड़ताल करें तब तमाम ऐसे मामले मिल सकते हैं कि अगर आप साधारण व्यक्ति हैं और आपने ‘महान नेता’ की तस्वीर सोशल मीडिया पर साझा की या आपने फेसबुक पर कुछ लिखा जिससे ‘आहत भावनाओं की ब्रिगेड’ बौखला गयी और उसने आपके खिलाफ केस कर दिया.

वैसे फिलवक्त जब श्रीश्री के वक्तव्य के प्रति आधिकारिक प्रतिक्रिया का इंतजार किया जा रहा है, यह देखना होगा कि आखिर श्रीश्री के ‘विवादास्पद’ बयान से क्या तर्क निकलते हैं, मगर उसके पहले थोड़ी पृष्ठभूमि पर भी चर्चा जरूरी है.

यह बात अब इतिहास हो चुकी है कि अयोध्या (जो हमारी साझी विरासत का प्रतीक रही) उसका नाम पचीस साल पहले कलंकित हुआ जब पांच सौ साल पुरानी एक मस्जिद को सांप्रदायिक फासीवादी संगठनों के कार्यकर्ताओं ने नष्ट कर दिया.

इन दिनों उस मामले की सुनवाई आला अदालत कर रही है जिसने यह तय किया है कि उसे एक ‘जमीन के विवाद’ के तौर पर देखेगी और इसकी अगली सुनवाई 14 मार्च को होगी.

याद कर सकते हैं कि आला अदालत का हस्तक्षेप तब सामने आया था जब उसने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ द्वारा दिए एक फैसले पर स्थगनादेश दिया था, जिसने एक तरह से जमीन की मिल्कियत के सवाल को तीन पार्टियों के बीच के संपत्ति के विवाद के रूप में तब्दील कर दिया था और केस को तय करने के लिए वास्तविक तथ्यों पर गौर करने के बजाय जनता के विश्वासों और भावनाओं की दुहाई दी थी.

उच्च न्यायालय के इस फैसले की जबरदस्त भर्त्सना हुई थी क्योंकि यह स्पष्ट था कि उसे संतुलित कानूनी सिद्धांतों के आधार पर नहीं दिया गया था और उसका मूल सूत्र था कि दो समुदायों के बीच लंबे समय से चल रहे विवाद को किसी तरह सुलटा दिया जाए.

इसे ‘पंचायती’ फैसला कहा गया क्योंकि यहां मध्यस्थ के शब्द को अंतिम शब्द माना गया था. इस फैसले ने एक तरह से हिंदुत्ववादी वर्चस्ववादी जमातों की लंबे समय से चली आ रही मांग को ही पुष्ट कर दिया था जिसमें उनका दावा था कि आस्था के मामले किसी कानून एवं न्याय प्रणाली के परे होते हैं.

और इसने उनके खेमे में प्रचंड खुशी का माहौल बना था और अपने एजेंडा की जीत को देखते हुए उन्होंने दोनों समुदायों के बीच के अन्य विवादास्पद मुद्दों को ही उछालना शुरू किया था और यहां तक मांग की थी कि मुसलमानों को चाहिए कि मथुरा और वाराणसी तथा ऐसे तमाम मामलों में अपना दावा छोड़ दे.

ध्यान रहे अगर हम श्रीश्री रविशंकर के साक्षात्कार को गौर से पढ़ें तो साफ दिखता है कि वह इलाहाबाद उच्च अदालत के फैसले की अंतर्वस्तु को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं, जिसने बहुसंख्यकवादी दावों को पुष्ट किया था तथा न्याय की अनदेखी की थी.

उन्होंने कहा कि इस विवाद को आसानी से सुलझाया जा सकता है बशर्ते मुसलमान अयोध्या पर अपने दावे को ‘छोड़ दें’.

‘मुसलमानों को चाहिए कि वह अयोध्या पर अपने दावे को छोड़ दें, सदिच्छा कायम करने के एक अवसर के तौर पर…’ अयोध्या मुसलमानों के लिए आस्था का स्थान नहीं है.

अपने साक्षात्कार में यह दावा करना कि अगर सर्वोच्च न्यायालय हिंदुत्ववादियों की मांग को ख़ारिज करता है तो हिंदू हिंसा पर उतर आएंगे, इसके जरिए न केवल श्रीश्री रविशंकर कानून के राज को चुनौती दे रहे थे बल्कि संवैधानिक सिद्धांतों पर भी सवाल खड़ा कर रहे थे- जिनके सामने जाति, धर्म, जेंडर, नस्ल, समुदाय आदि आधारों पर किसी भी तरह का भेदभाव संभव नहीं है.

उनका वक्तव्य एक तरह से ऐसे लोगों/समूहों के लिए अप्रत्यक्ष अपील या अह्वान भी था जो हिंदुत्व की विचारधारा के प्रति सहानुभूति रखते हैं कि वह एक्शन के नए दौर के लिए तैयार रहें.

वैसे वे सभी लोग बेहद नर्म अंदाज में बोलने वाले इन आध्यात्मिक गुरु पर फिदा दिखते हैं- जिनका वैश्विक आध्यात्मिकता कार्यक्रम 140 देशों में चलता है तथा जिसके 2 करोड़ सदस्य हैं, तथा जिसके प्रति युवाओं के एक हिस्से में काफी क्रेज है.

उन्हें यह सुन कर आश्चर्य होगा कि गुरुजी किन-किन विवादास्पद मसलों पर जुबां खोलते रहते हैं. वैसे उन्हें बारीकी से देखने वाले बता सकते हैं कि किस तरह प्यार और खुशी और मीडिया की सहायता से बनायी गयी खिलंदड़ीपन की इमेज के बावजूद श्रीश्री के लिए (बकौल मीरा नंदा) अपनी ‘हिंदू राष्ट्रवादी भावना को छिपा पाना असंभव है. और यह एक ओपन सीक्रेट (ज़ाहिर रहस्य) है कि राम मंदिर और अल्पसंख्यक मामलों के बारे में वह क्या सोचते हैं?’

ब्रिटेन की बहुचर्चित पत्रिका ‘द इकोनॉमिस्ट’ ने उनकी राजनीति को बखूबी पकड़ा था:

‘आर्ट आॅफ लिविंग सभी आस्थाओं के सभी लोगों के लिए खुला है. मगर हक़ीक़त यही है कि राम मंदिर की चर्चा करते हुए इसके प्रमुख श्रीश्री रविशंकर आध्यात्मिक गुरु के बजाय राजनेता लगने लगते हैं, जो ‘अल्पसंख्यक समुदाय की तुष्टीकरण’ के लंबे इतिहास की बात करता है और इस व्यवस्था की गैर-बराबरी को दिखाता है जो मक्का में हज यात्रा पर जाने के लिए मुसलमानों को सब्सिडी प्रदान करता है.’

अब बात ठीक से समझ आ सकती है कि आर्ट आॅफ लविंग अचानक कभी-कभी आर्ट आॅफ कोअर्शन (दमन की कला) या ‘आर्ट आॅफ हेटिंग अदर’ (अन्य से नफरत की कला) कैसे बन जाती है.

(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता और चिंतक हैं.)