‘नई दुनिया’ अख़बार के 26 अप्रैल के मध्य प्रदेश संस्करण में 24 में से 23 पृष्ठों पर सरकारी विज्ञापन छपे थे. शेष बचे एक पृष्ठ पर अख़बार के संपादक का लेख ‘देश को गति देती मध्य प्रदेश की योजनाएं’ शीर्षक से छपा था.
मध्य प्रदेश में बीते डेढ़ दशक से सत्ता में पैर जमाए बैठी भारतीय जनता पार्टी के लिए इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव टेढ़ी खीर साबित होने वाले हैं. इसकी बानगी इस बात से मिलती है कि प्रदेश की शिवराज सरकार सरकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार और अपनी उपलब्धियों का बख़ान करने के लिए विज्ञापन पर पैसा पानी की तरह बहा रही हैं.
इसका हालिया उदाहरण गुरूवार को देखने मिला जब 24 पृष्ठ के एक अखबार में 23 पृष्ठों पर उसने सरकारी विज्ञापन दे डाले जिनमें प्रदेश सरकार की योजनाओं का प्रचार और सरकारी उपलब्धियों का बखान था.
राज्य के बड़े अखबारों में शुमार उक्त अखबार के 26 अप्रैल के 24 पृष्ठीय अंक में पृष्ठ क्रमांक एक से लेकर पृष्ठ 11 तक और पृष्ठ 13 से लेकर पृष्ठ 24 तक हर पृष्ठ पर राज्य की भाजपा सरकार का विज्ञापन लगा हुआ था.
अखबार के प्रत्येक पृष्ठ के एक चौथाई हिस्से में लगे विज्ञापन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का फोटो भी लगा था.
हालांकि, अखबार का विज्ञापन रहित एकमात्र पृष्ठ (पृष्ठ 12) जो कि ‘संपादकीय’ था, वहां राज्य सरकार द्वारा दिया कोई विज्ञापन भले ही न हो, लेकिन अखबार की मध्य प्रदेश इकाई के संपादक द्वारा लिखा एक लेख जरूर छपा था जिसमें मध्य प्रदेश की योजनाओं का बखान इस शीर्षक के साथ किया गया था कि ‘देश को गति देती मध्य प्रदेश की योजनाएं’.
इस तरह देखा जाए तो अखबार के सभी पृष्ठों को शिवराज सरकार ने अपनी योजनाओं के प्रचार-प्रसार और सरकार की उपलब्धियों के बखान के लिए विज्ञापन के माध्यम से खरीद लिया था.
प्रदेश सरकार की जिन योजनाओं का बखान विज्ञापन के माध्यम से किया गया उनमें प्रदेश सरकार की लाडली लक्ष्मी योजना, मुख्यमंत्री कौशल संवर्धन योजना, मेधावी विद्यार्थी योजना, मध्य प्रदेश युवा स्वरोजगार योजना, दीनदयाल अंत्योदय उपचार योजना, दीनदयाल चलित अस्पताल योजना, दीनदयाल रसोई योजना, मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना, मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना, नि:शुल्क साइकिल वितरण योजना, नि:शुल्क पैथोलॉजी जांच योजना, मध्य प्रदेश शौचालय निर्माण योजना, सौभाग्य योजना, मुख्यमंत्री कौशल्या योजना, मुख्यमंत्री तीर्थदर्शन योजना, मजदूरों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाएं, मुख्यमंत्री ग्रामीण आवास योजना, मुख्यमंत्री अन्नपूर्णा योजना, युवा इंजीनियर कांट्रेक्टर योजना, मध्य प्रदेश प्रतिभा किरण योजना शामिल हैं.
वहीं, अखबार के 14वें पृष्ठ का तीन चौथाई हिस्सा विज्ञापन से घिरा हुआ है. इस पृष्ठ पर 26 अप्रैल को प्रदेश के अशोकनगर जिले में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा आयोजित ‘असंगठित मजदूर एवं तेंदूपत्ता संग्राहक सम्मेलन’ का आधा पेज का विज्ञापन अलग से छपा है.
सरकारी योजनाओं के विज्ञापनों को अखबार में इस सूचना के साथ छापा गया है, ‘मध्य प्रदेश शासन द्वारा प्रारंभ की गई विभिन्न योजनाओं की जानकारी देती यह श्रृंखला आज के अंक में इस तरह प्रकाशित की गई है कि आप इसे काटकर और स्टेपल कर संदर्भ पुस्तिका के रूप में सहेज कर रख सकते हैं.’
मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार के जनसंपर्क विभाग द्वारा विज्ञापनों पर सरकारी खजाना खाली करना कोई नई बात नहीं है. इससे पहले भी कई अवसरों पर विभाग का विज्ञापन खर्च सुर्खियों में रहा है.
वर्ष 2016 में प्रदेश के जनसंपर्क विभाग में अपात्रों को विज्ञापन की बंदरवाट का मामला सामने आया था जिसे विपक्ष ने ‘विज्ञापन घोटाला’ ठहराया था, जिसमें आरोप लगे कि 234 फर्जी वेबसाइट को विज्ञापन के नाम पर करोड़ों रुपये लुटा दिए गए.
मध्य प्रदेश सरकार जो कि डेढ़ लाख करोड़ रुपये के कर्ज़ में डूबी हुई है, वह इस तंगहाली के बावजूद इन वेबसाइट को विज्ञापन जारी करके अपना खजाना खाली कर उन पर मेहरबानी बरसाती रही. यह मामला अदालत तक पहुंच चुका है.
वहीं, मध्य प्रदेश सरकार की मीडिया और पत्रकारों पर मेहरबानी की कहानी पुरानी है. वर्ष 2016 में देश की एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी पत्रिका की पड़ताल में सामने आया कि सरकार द्वारा व्यापमं से जुड़े जांच अधिकारी, जज और पत्रकारों को किस तरह फायदा पहुंचाया गया.
बहरहाल, बात करें शिवराज सरकार द्वारा मीडिया में विज्ञापन पर सरकारी खजाना खाली करने की तो हाल ही में मार्च माह में विधानसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए राज्य के जनसंपर्क मंत्री ने बताया था कि पिछले पांच सालों में सरकार ने विज्ञापन पर प्रचार के लिए केवल इलेक्ट्रोनिक मीडिया में 315 करोड़ से अधिक की राशि खर्च की है.
राऊ से कांग्रेसी विधायक जीतू पटवारी ने सवाल पूछा था कि पिछले पांच वर्षों में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के प्रचार और विशेष अवसरों पर प्रचार के तहत कुल कितना खर्च किया गया?
जवाब में जनसंपर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने बताया कि प्रचार पर इस दौरान 119 करोड़, 99 लाख, 82 हजार, 879 रूपये की राशि खर्च की गई. वहीं, विशेष अवसरों पर प्रचार में 195 करोड़ 43 लाख, 72 हजार, 352 रूपये खर्च किया गया.
इस राशि का योग 315 करोड़ 43 लाख 55 हजार 239 रूपये हुआ.
वहीं, मुख्यमंत्री द्वारा पिछले साल की गई ‘नमामि देवी नर्मदे’ यात्रा में भी विज्ञापन पर सरकारी खजाने को दिल खोलकर खाली किया गया था.
मुख्यमंत्री की महत्वाकांक्षी ‘नमामि देवि नर्मदे’ सेवा यात्रा 11 दिसम्बर 2016 से 15 मई 2017 तक लगभग पांच महीने चली थी. मध्यप्रदेश विधानसभा में पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक, इस यात्रा के प्रचार-प्रसार में प्रदेश सरकार ने विज्ञापन के विभिन्न माध्यमों पर कुल 33 करोड़ रुपये से अधिक की राशि (33,07,40,344) खर्च की थी.
इस राशि में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर कुल 24 करोड़ की राशि खर्च की गई. बाकी राशि विज्ञापन के अन्य माध्यमों जैसे, सोशल और डिजिटल मीडिया, बस शेल्टर्स, एयरपोर्ट ब्रांडिंग, होर्डिंग फ्लेक्स, रेलवे ग्लोशाइन आदि माध्यमों पर खर्च की.
इस यात्रा के दौरान प्रदेश के जनसंपर्क विभाग ने 934 पत्रकारों को अपने खर्चे पर किराए के वाहनों से यात्रा कराई जिसमें कुल 13,30,348 रुपये की राशि सरकारी खजाने से खाली की गई.
यहां बात केवल शिवराज की नर्मदा यात्रा की की गई है. लेकिन नर्मदा यात्रा के बाद शिवराज ने प्रदेश में दो और यात्रा ‘मध्य प्रदेश विकास यात्रा’ और ‘एकात्म यात्रा’ भी निकालीं. इन यात्राओं का भी प्रदेश भर में जोर-शोर से प्रचार-प्रसार किया गया. मीडिया और अन्य माध्यमों से प्रचार-प्रसार करने में सरकार ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. अखबारों में पूरे एक-एक पृष्ठ के कई-कई सरकारी विज्ञापन छपवाए गए. स्वाभाविक है कि उनका खर्च भी सरकारी खजाने से किया गया.
विधानसभा में ही एक सवाल के जबाव में जुलाई 2017 में प्रदेश के जनसंपर्क मंत्री ने बताया था कि सरकार की ओर से वित्तीय वर्ष 2016-2017 के लिए करीब 411 करोड़ रूपये जनसंपर्क विभाग को आबंटित किए गए थे, जिसमें से लगभग 400 करोड़ रुपये वर्ष के दौरान उसने प्रचार-प्रसार पर खर्च किए.
करीब डेढ़ लाख करोड़ के कर्ज तले दबे उस प्रदेश के लिए यह एक बड़ी राशि मानी जा सकती है जहां कर्ज के बोझ तले दबे किसान आत्महत्या को मजबूर हों, सड़कों पर आकर प्रदर्शन करने को मजबूर हों, शिक्षक अपने नियमितीकरण और वेतन को बढ़ाने की मांग को लेकर आंदोलनरत हों, जहां शिक्षा और स्वास्थ्य के गिरते स्तर पर नीति आयोग भी चिंता जता चुका हो.
यहां इस बात पर भी गौर करने की जरूरत है कि प्रदेश सरकार अपने जनसंपर्क विभाग के माध्यम से विज्ञापनों पर तो पैसा खर्च कर ही रही है, साथ ही अपने कोष से प्रदेश के पत्रकारों के लिए भी विभिन्न योजनाएं चला रही है जिनके तहत प्रदेश के पत्रकारों को लैपटॉप देना, पेंशन लाभ देना, होम लोन पर ब्याज दरों में कटौती, यात्रा किराए में छूट आदि अनेकों लाभ पत्रकारो को पहुंचाए जा रहे हैं.
कहा जा सकता है कि यह पत्रकार और पत्रकारिता को प्रोत्साहित करने की कवायद है लेकिन जब हम थोड़ा गहराई में जाते हैं तो सरकार की मंशा पर संदेह प्रकट होता है कि अधिकांश लाभ क्या उसके चहेतों को मिल रहे हैं?
यह संदेह इसलिए उत्पन्न होता है कि 2016 में जिन 234 फर्जी वेबसाइट को करोड़ों के विज्ञापन देने का खुलासा हुआ था उनमें ज्यादातर वेबसाइट पत्रकारों के रिश्तेदार संचालित कर रहे थे. इनमें भी 26 वेबसाइट को 10 लाख से ज्यादा के विज्ञापन दे दिए गए थे. जिनमें अधिकांश ऐसी वेबसाइट थीं जिन्हें कई समाचार पत्रों से जुड़े पत्रकारो के रिश्तेदार संचालित कर रहे थे जिनका पत्रकारिता से कोई नाता नहीं था.
कई वेबसाइट ऐसी थीं जिन्हें सरकार द्वारा अलॉट किए गए स्थानों पर चलाया जा रहा था.
खास बात जो देखी गई थी कि कई वेबसाइट अलग-अलग नामों से तो चल रही थीं लेकिन सामग्री वे एक समान ही परोस रही थीं.
इस गड़बड़झाले से संबंधित प्रश्न तब विधानसभा में कांग्रेस विधायक बाला बच्चन ने उठाया था. उन्होंने सवाल किया था, ‘सरकार की ओर से विज्ञापन उन्हीं संस्थानों को जारी किए जाने चाहिए जो वास्तव में पत्रकारों द्वारा चलाए जा रहे हैं. पर विज्ञापन उन्हीं लोगों को क्यों दिया जा रहा है जो भाजपा से ताल्लुक रखते हैं.’
कुछ ऐसा ही मध्य प्रदेश सरकार द्वारा पत्रकारों को दी जाने वाली अधिमान्यता में भी देखा गया, जहां ऐसे अयोग्य लोग जिनका पत्रकारिता से दूर तक कोई नाता नहीं, वे भी राज्य सरकार के अधिमान्य पत्रकार बना दिए गए. कई पत्रकारों के रिश्तेदारों तक को अधिमान्य पत्रकार होने के कार्ड थमा दिए गए.
वहीं, व्यापमं घोटाले से जुड़े पत्रकारों को लाभ पहुंचाने की बात ऊपर की ही जा चुकी है.
बहरहाल, इस तरह विज्ञापन पर सरकारी खजाना खाली करने का मतलब केवल यह नहीं कि इससे शिवराज सरकार अपनी योजनाओं को जनता तक पहुंचा रही है, इसका मतलब यह भी निकाला जाता है कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को अपने कंधे पर थामे रखने वाले और सत्ता को चुनौती देने वाले पत्रकारों को भी वह इसके माध्यम से रिझाकर अपने पक्ष में रखे रहना चाहती है.