साल 2008 में हुए अहमदाबाद बम विस्फोट पर बनी फिल्म ‘समीर’ के एक डायलॉग को लेकर सेंसर बोर्ड को आपत्ति है. फिल्म से प्रताड़ना और बम विस्फोट से जुड़े दृश्यों को भी हटाने को कहा गया है.
एक फिल्म को लेकर एक बार फिर सेंसर बोर्ड ने आपत्ति जताई है. यह आपत्ति फिल्म के एक डॉयलॉग को लेकर है, जिसमें ‘मन की बात’ का जिक्र आता है.
2008 में हुए अहमदाबाद बम विस्फोट पर बनी ‘समीर’ नाम की फिल्म के आख़िरी सीन में मुख्य क़िरदार सुब्रत दत्त और खलनायक का किरदार निभा रहे मोहम्मद जीशान अयूब के बीच हो रही बातचीत में जिशान कहते हैं, ‘एक मन की बात कहूं, तुम करेक्टर अच्छा बना लेते हो’. इस पर सुब्रत दत्त कहते हैं, ‘वैसे सर, चाय से चू** बनाना आप से ही सीखा है.’
मिड डे की रिपोर्ट के अनुसार, बोर्ड को चाय वाले डायलॉग से आपत्ति नहीं है, लेकिन पहले डॉयलॉग से तीन शब्द ‘मन की बात’ हटाने के लिए बोर्ड ने कहा है.
फिल्म के निर्देशक डाक्शिन छड़ा ने बताया, ‘इस बारे में मैंने बोर्ड के अध्यक्ष पहलाज निहलानी से संपर्क किया तो पीएम का रेडियो शो है इसलिए ये लाइन हटा दो. इसके अवाला फिल्म को ए सर्टिफिकेट देने के साथ ही प्रताड़ना और बम विस्फोट से जुड़े कुछ दृश्यों को हटाने के लिए बोला गया है.’
छड़ा कहते हैं, ‘सिनेमैटोग्राफी एक्ट के कौन से नियम के तहत यह लाइन काटने को कहा गया है, ये बात अभी तक बोर्ड की तरफ से स्पष्ट नहीं किया गया है. बोर्ड की तरफ से मौखिक सुनवाई पहले होनी चाहिए पर वो अभी तक हुई नहीं है.’
छड़ा अपनी फिल्म से ‘मन की बात’ वाली लाइन को हटाने के पहलाज निहलानी के निर्देश को चुनौती देने की बात कही है.
हनुमान चालीसा पढ़ने के बाद भूत नहीं भागी तो कहा सीन हटाओ
इतना ही नहीं अनुष्का शर्मा की आने वाली फिल्म फिल्लौरी में वे एक भूत का किरदार निभा रही हैं. हीरो डरकर उनसे हनुमान चालीसा पढ़ने लगता है, लेकिन भूत बनी अनुष्का नहीं भागती. सेंसर बोर्ड ने इस दृश्य को फिल्म से हटाने के लिए कहा है.
इसे हटाने के पीछे बोर्ड ने तर्क दिया है कि समाज में मान्यता ये है कि हनुमान चालीसा के पाठ से भूत भाग जाते हैं जबकि इस फिल्म में भूत बनीं अनुष्का नहीं डरतीं. इससे एक ख़ास वर्ग को आपत्ति हो सकती थी.
इसके पहले लिपस्टिक अंडर माय बुर्खा को सेंसर बोर्ड ने सर्टिफिकेट देने से मना कर दिया था. बोर्ड का कहना था कि फिल्म ‘लेडी ओरिएंटेड’ (महिलान्मुखी) है, और फिल्म में उनके सपनों और फंतासियों को ज़िंदगी से ज़्यादा तवज्जो दी गई है.