नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी की किताब के विमोचन के अवसर पर जस्टिस गोगोई ने कहा कि हम आज जो करेंगे उसका असर हमारे बच्चों पर पड़ेगा.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई ने देश में बाल यौन हिंसा के मामलों को लेकर बीते शुक्रवार को चिंता प्रकट की और कहा कि देश की न्याय व्यवस्था आमूलचूल बदलाव की गुहार लगा रही है.
उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा समय में जो संस्थागत ख़ामी दिख रही हैं उसकी वजह से भविष्य में बच्चों को विरासत में चुनौतीपूर्ण हालात मिलेंगे.
नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी की पुस्तक ‘एवरी चाइल्ड मैटर्स’ के विमोचन के मौके पर जस्टिस गोगोई ने कहा, ‘बच्चों के पास मतदान का अधिकार भले ही न हो, लेकिन आने वाले समय में होगा. कल वे अपने नेता चुनेंगे और फिर ख़ुद भी नेतृत्व करेंगे.’
उन्होंने कहा, ‘मुझे थोड़ी चिंता भी है. हम आज संपूर्ण पटल पर जो संस्थागत खामी देख रहे हैं उनसे हमारे बच्चों को विरासत में चुनौतीपूर्ण हालात मिलेंगे.’
जस्टिस गोगोई ने कहा कि आज हम जो करेंगे उसका सीधा असर हमारे बच्चों पर होगा.
उन्होंने बाल श्रम (संशोधन) क़ानून-2016 के कुछ प्रावधानों को लेकर उसकी आलोचना की और कहा कि इन संशोधनों का मक़सद बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा मुहैया कराना था, लेकिन पारिवारिक कारोबारों (कुछ ख़तरनाक कामों को छोड़कर) में बच्चों के काम करने की इज़ाज़त देना उनकी सेवा करना नहीं है.
सत्यार्थी की किताब पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि यह किताब एक बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल उठाती है कि क्या हरेक बच्चा हमारे लिए मायने रखता है. इसका जवाब ‘हां’ में है. यह बात अब किसी से छुपी हुई नहीं है कि हमारी न्यायिक प्रक्रिया काफी लंबी चलती है. लेकिन बच्चों को जल्द से जल्द न्याय दिलाने की ज़रूरत होती है और अब हम इसके लिए इंतज़ार नहीं कर सकते हैं. इसके लिए सामाजिक और राजनीतिक इच्छाशक्ति की बहुत ही ज़रूरत है. यह इच्छाशक्ति जितनी ज़्यादा होगी हमारे बच्चे उतनी ही जल्दी स्वतंत्र होंगे.
कार्यक्रम में कैलाश सत्यार्थी ने कहा कि बाल मजदूरी पर जितना अधिक अंकुश लगेगा उतना ही रोज़गार बढ़ेगा.
उन्होंने कहा, ‘भारत में बाल अधिकारों की लड़ाई को आगे बढ़ाने में सामाजिक प्रयासों के साथ ही न्यायपालिका का प्रमुख योगदान रहा है. हम जैसे लोगों का न्यायपालिका में भरोसा बढ़ता ही गया है.’
नोबेल पुरस्कार विजेता ने कहा, ‘बाल मजदूरी और बाल यौन शोषण के ख़िलाफ़ हमें अपने देश की अंतरात्मा को जगाना होगा.’
सत्यार्थी ने कहा, ‘मानवीयता और करुणा के अभाव में बचपन सिसक रहा है. बच्चों के लिए मैं जब लिखता हूं, तो चाहता हूं कि उस पर अमल की कार्रवाई भी हो. मेरा लेखन चारों ओर जो एक उदासीनता व्याप्त है उस पर गुस्सा है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)