लैंगिक भेदभाव के चलते गुजरात में हर साल 9,000 से अधिक बेटियों की अकाल मौत

विकास और आर्थिक दृष्टि से पिछड़े माने जाने वाले राज्य मणिपुर, मिज़ोरम, मेघालय की स्थिति बाल मृत्युदर के मामले में गुजरात से बेहतर है. वहीं, ज़्यादातर आदिवासी क्षेत्रों में बाल मृत्यु दर कम है.

Farrukhabad: Children in the Farrukhabad hospital on Monday where 49 children have died in the past one month. PTI Photo (PTI9 4 2017 000229B)
(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

विकास और आर्थिक दृष्टि से पिछड़े माने जाने वाले राज्य मणिपुर, मिज़ोरम, मेघालय की स्थिति बाल मृत्युदर के मामले में गुजरात से बेहतर है. वहीं, ज़्यादातर आदिवासी क्षेत्रों में बाल मृत्यु दर कम है.

Farrukhabad: Children in the Farrukhabad hospital on Monday where 49 children have died in the past one month. PTI Photo (PTI9 4 2017 000229B)
(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

राजकोट: गुजरात में लापरवाही और लड़कियों के प्रति भेदभाव के कारण हर साल लगभग 9000 बच्चियों की मौत हो जाती है. मेडिकल जर्नल ‘लैंसेट’ की ओर से जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि गुजरात में बेटे-बेटी में भेदभाव के कारण हर साल पांच साल से कम उम्र की 9331 बेटियाें की असामान्य और अकाल मौत हो जाती है. गुजरात में ‘अतिरिक्त’ महिला मृत्यु दर 16 है.

चिंता का विषय यह है कि इनमें से ज़्यादातर मौतों का कारण लापरवाही और भेदभाव बताया गया है. बेटियों के असामान्य माैत के मामले में गुजरात राज्य छठवें स्थान पर है.

दैनिक भास्कर की एक ख़बर के अनुसार, ‘इस महीने प्रकाशित हुई मेडिकल जर्नल लैंसेट की रिपोर्ट के अनुसार भारत में गर्भ परीक्षण ही बेटियों की मौत का कारण नहीं है, बल्कि भेदभाव के कारण जन्म के बाद पांच साल तक की 2.39 लाख बेटियों की हर साल अकाल मौत हो जाती है. गुजरात में यह आंकड़ा 9000 के पार है.’

इस रिपोर्ट में यह भी देखने को मिला है कि विकसित राज्यों के अलावा पिछड़े राज्यों में बेटियों काे अधिक सम्मान दिया जाता है. बाल मृत्युदर में गुजरात छठवें स्थान पर है, इससे पहले महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार और पहले स्थान पर उत्तर प्रदेश है.

गुजरात को विकसित राज्य माना जाता है लेकिन इसकी तुलना में पिछड़े माने जाने वाले मणिपुर, मिजोरम, मेघालय बाल मृत्युदर की सूची में सबसे पीछे हैं. ज़्यादातर आदिवासी क्षेत्रों में बाल मृत्यु दर कम है.

पहले स्थान पर काबिज उत्तर प्रदेश में एक साल में 76,782 बच्चियों की असामान्य मौत हो जाती है. उत्तर प्रदेश के  बाद बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र का स्थान है.

बिहार में हर साल 4,253 बच्चियों की अकाल और असामान्य मौत हो जाती है. वहीं, राजस्थान में इन मौतों का आंकड़ा 20,963 है. मध्यप्रदेश में 19,302 तो महाराष्ट्र में 9,850 और गुजरात में 9,331 बच्चियों की असामान्य मौत हो जाती है.

अभी तक लैंगिक भेदभाव को समझने के लिए ज़्यादातर अध्ययनों में प्रसवपूर्व मृत्युदर पर ज़ोर दिया गया था लेकिन हाल में ही इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फ़ॉर एप्लाइड सिस्टम एनालिसिस के अध्ययन में 5 साल से कम आयु की बच्चियों की ‘अतिरिक्त’ मृत्युदर को समझा गया. अतिरिक्त मृत्यु दर दोनों ही लिंगों में वास्तव में ‘देखी जाने वाली’ और ‘अपेक्षित’ की गई मृत्युदर का अंतर है. उत्तर प्रदेश में यही अतिरिक्त महिला मृत्यु दर 30.5 है. जबकि, बिहार में 28.5 ,राजस्थान 25.4 और मध्य प्रदेश में 22.1 है.

दैनिक भास्कर की ही एक अन्य ख़बर के मुताबिक़, पूरे देश में भेदभाव के कारण हर साल 2,39,317 बच्चियों की मौत होती है. मृत्युदर की बात करें तो इस मामले में मध्यप्रदेश प्रति हजार पर 111.8 की दर के साथ पहले पायदान पर है. तो, सबसे कम मृत्युदर केरल में है जे कि 27.8 है. राजस्थान में मृत्यु दर 98.60 प्रति हजार है.

मौतों के मामले में प्रदेश का उत्तर प्रदेश और बिहार के बाद देश में तीसरा स्थान है. कम मृत्यु दर के मामले में उत्तर-पूर्वी और पहाड़ी राज्यों की स्थिति ठीक है. सिक्किम में मृत्यु दर 60.2, मणिपुर में 52.6, मिजोरम में 64.8, जम्मू-कश्मीर में 64.2, हिमाचल में यह 55.3 है.

रिपोर्ट के मुताबिक, लैंगिक भेदभाव के अलावा बच्चियों की मौत के जिम्मेदार कुछ अन्य कारणों में धीमा आर्थिक विकास, चिकित्सा सेवाओं की कमी, भ्रूण परीक्षण और पिछड़ापन भी शामिल हैं.

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25