नाबालिग से सहमति से बनाए गए यौन संबंध भी बलात्कार: गुजरात हाईकोर्ट

अदालत ने एक मामले की सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि पोक्सो क़ानून की जानकारी न होने से युवाओं का जीवन ख़राब हो रहा है. इससे लोगों को अवगत कराना ज़रूरी है.

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अदालत ने एक मामले की सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि पोक्सो क़ानून की जानकारी न होने से युवाओं का जीवन ख़राब हो रहा है. इससे लोगों को अवगत कराना ज़रूरी है.

Gujarat Highcourt Bar n Bench
फोटो साभार: बार एंड बेंच

अहमदाबाद: बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध के ख़िलाफ़ पोक्सो क़ानून से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि नाबालिग के साथ सहमति से बनाया गया यौन संबंध बलात्कार की श्रेणी में आता है. गुजरात हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि इस तरह के मामले में दोषी पाए जाने वाले को पोक्सो क़ानून के मुताबिक सज़ा होगी.

मालूम हो कि पोक्सो क़ानून के नाबालिग से संबंध बनाने पर सात से 10 साल तक की सज़ा का प्रावधान है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की ख़बर के अनुसार, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एवाई कोगजे की पीठ ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वे पोक्सो क़ानून के बारे में लोगों को अवगत कराएं, जिसमें 18 साल से कम उम्र की लड़की के साथ सहमति से यौन संबंध बनाने पर भी 7 से 10 साल की सज़ा हो सकती है.

अदालत का मानना है कि इस क़ानून के बारे में ज़्यादा लोगों को अवगत कराने से बच्चों के ख़िलाफ़ हो रहे यौन अपराध में कमी आएगी.

अदालत ने कहा कि नाबालिग के साथ प्रेम संबंध में सहमति से यौन संबंध बनाया जाता है, तब भी पोक्सो क़ानून लागू होगा. ऐसे मामलों में क़ानून की जानकारी न होने की दलील नहीं दी जा सकती.

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इसके आधार पर अदालत ऐसे मामलों में सज़ा में किसी तरह की राहत नहीं दे सकतीं क्योंकि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की सात साल की सज़ा के प्रावधान के उलट पोक्सो एक्ट में इस अपराध के लिए 10 साल की सज़ा का प्रावधान है. अदालत का कहना है कि सज़ा की जानकारी न होने की वजह से युवाओं की जीवन और करिअर बर्बाद हो रहा है.

अदालत ने राज्य सरकार से कहा कि युवाओं और आने वाली पीढ़ियों को ऐसे क़ानूनों के परिणामों के बारे में जागरूक करने की जरूरत है, खासकर स्कूलों और कॉलेजों को इन क़ानूनों के बारे में जागरूकता पैदा करने के बारे में सोचना और काम करना चाहिए.

हाईकोर्ट ने गृह सचिव, उच्च शिक्षा और महिला एवं बाल विकास विभाग के सचिवों को आदेश भेजकर कहा है कि पोक्सो क़ानून के अधिनियम 43 के तहत इस क़ानून का प्रचार अनिवार्य है.

एडिशनल महाधिवक्ता प्रकाश जानी ने बताया कि ऐसा आदेश अदालत ने उस मामले की सुनवाई के दौरान दिया, जहां 19 साल का एक लड़का देवभूमि द्वारका जिले की एक 15 वर्षीय लड़की के साथ घर से भाग गया था. अदालत ने इस लड़के की सज़ा सात साल से बढ़कर 10 साल कर दी.

जजों को मानना है कि पोक्सो क़ानून के प्रचार के दो फ़ायदे हैं, एक तो सक्रिय अपराधियों पर लगाम लगेगी और दूसरा युवा 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की से सहमति या बिना सहमति के यौन संबंध नहीं बनाएंगे.

अदालत ने यह भी कहा कि पोक्सो जैसा क़ानून सिर्फ क़िताबों में रह जाएगा अगर लोगों को इसके बारे में पता नहीं चलेगा. क़ानून के प्रचार के लिए बच्चों और माता-पिता को इससे अवगत करना होगा और प्रचार के लिए टीवी, रेडियो और अख़बार का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.