कश्मीर एडिटर्स गिल्ड के सदस्य ने कहा, संपादकीय लिखने वाले हाथ हमसे छीन लिए गए हैं. ऐसा लग रहा है मानो हमारी स्याही सूख गयी है, इसलिए यह ज़रूरी है कि हम अपना विरोध दर्ज करवाएं.
श्रीनगर: जम्मू कश्मीर में वरिष्ठ पत्रकार और ‘राइजिंग कश्मीर’ के संपादक शुजात बुख़ारी की हत्या के विरोध में कश्मीर तकरीबन सभी अख़बारों ने मंगलवार को अपने संपादकीय ख़ाली छोड़े हैं.
मालूम हो कि 14 जून को शुजात बुख़ारी और उनके दो निजी सुरक्षा अधिकारियों (पीएसओ) हामिद चौधरी और मुमताज़ अवान की श्रीनगर में उनके कार्यालय के बाहर आतंकवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी.
सोमवार को श्रीनगर में पत्रकारों ने प्रेस एन्क्लेव, जहां बुखारी को गोली मारी गयी थी, वहां से लाल चौक तक एक शांति मार्च निकालकर विरोध प्रदर्शन किया था. इसके बाद हुई कश्मीर एडिटर्स गिल्ड (केईजी) की बैठक में संपादकीय ख़ाली छोड़ने का फैसला लिया गया.
केईजी के एक सदस्य ने गोपनीयता की शर्त पर नेटवर्क 18 से फ़ोन पर हुई बातचीत में बताया कि यह फैसला एक मत से लिया गया है. उन्होंने कहा, ‘केईजी के सदस्यों द्वारा यह फैसला सर्व-सम्मति से लिया गया और फिर यही घाटी के अख़बारों तक पहुंचाया गया. संपादकीय ख़ाली छोड़ने के पीछे सरकार तक यह संदेश पहुंचाना है कि प्रेस पर इस तरह के हमले जारी नहीं रह सकते.’
केईजी के इस सदस्य ने बताया कि घाटी में उर्दू और अंग्रेज़ी के करीब 11 अख़बारों ने अपने संपादकीय ख़ाली छोड़े हैं.
उन्होंने कहा, ‘संपादकीय लिखने वाले हाथ हमसे छीन लिए गए हैं. ऐसा लग रहा है मानो हमारी स्याही सूख गयी है. इसलिए यह ज़रूरी है कि हम अपना संदेश साफ करें और अपना विरोध दर्ज करवाएं. शुजात की हत्या कश्मीर में मीडिया को सेंसर करने, कमज़ोर करने और आखिरकार उन्हें चुप करा देने की एक कोशिश है.’
राइजिंग कश्मीर, ग्रेटर कश्मीर, कश्मीर रीडर, कश्मीर टाइम्स, राइजिंग कश्मीर, डेली रौशनी, डेली चट्टान, तामील-ए-इरशाद आदि घाटी के प्रमुख अख़बारों ने मंगलवार को प्रकाशित अंक में अपने संपादकीय ख़ाली छोड़े हैं.
राइजिंग कश्मीर के संपादकीय पेज को एडिट करने वाले शोएब हामिद ने भी कहा है कि ख़ाली संपादकीय छोड़ना अपना विरोध दर्ज करवाना तो है ही, साथ ही बुखारी के कातिलों को ये बताने की कोशिश है कि एक स्वतंत्र और ज़िम्मेदार प्रेस को चुप नहीं कराया जा सकता.
नेटवर्क 18 के मुताबिक शोएब ने कहा, ‘शुजात बुखारी की हत्या हम सब पर हमला है. हम अपना विरोध जारी रखेंगे. असल में हम कश्मीर में हो रही हिंसा पर राइजिंग कश्मीर के संपादकीय लिखने की सोच रहे हैं. साथ ही ख़ाली संपादकीय इसलिए भी है कि हम यह बता सकें कि अभिव्यक्ति की आज़ादी को दबाया नहीं जा सकता है.’
उन्होंने यह भी कहा कि समाज के सभी लोगों को बुखारी की हत्या के विरोध का अपनी तरह विरोध करना चाहिए.
हालांकि हामिद ने यह माना कि बुखारी की हत्या को प्रेस पर हमले के बतौर नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि कश्मीर में शांति की बात करने वाली आवाज़ों पर हमला माना जाना चाहिए. ऐसा ही मानना हाजी हयात मोहम्मद भट का है. भट कश्मीर रीडर के प्रमुख संपादक हैं.
उन्होंने नेटवर्क18 से बातचीत में कहा, ‘एक ज़िम्मेदार पत्रकार के बतौर हमें इस निर्मम हत्या पर सवाल करने चाहिए, इसका विरोध करना चाहिए. और हम यही कर रहे हैं.’
इससे पहले सोमवार को हुए प्रदर्शन में घाटी के पत्रकारों ने इस हत्या को प्रेस पर हमला बताया और कहा कि उनकी आवाज़ को इस तरह नहीं दबाया जा सकता.
स्क्रॉल की खबर के अनुसार राइजिंग कश्मीर के उर्दू अख़बार कश्मीर परचम के संपादक राशिद मकबूल ने बुखारी की हत्या को पत्रकारिता और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला बताया. मकबूल ने कहा, ‘हम इस विरोध प्रदर्शन के जरिये यह संदेश देने के लिए सड़कों पर उतरे हैं कि भले ही कुछ हो जाए, चाहे अत्याचार असहनीय हो जाएं, हम अभिव्यक्ति की आज़ादी की मशाल बुझने नहीं देंगे.’
मकबूल ने कहा कि बीते सालों में कश्मीर की प्रेस ने तमाम मुश्किलों का सामना किया है और साथ खड़े रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘हमने इन मुश्किलों और डर के माहौल से निकल कर आये हैं. अगर ऐसा फिर होता है तो हम अपनी पेशेवर जिम्मेदारियां निभाने से पीछे नहीं हटेंगे. कोई मुश्किल आये, कोई भी ताकत हमें अपनी ड्यूटी निभाने से रोक नहीं सकती.’
मीडिया संगठनों ने जम्मू कश्मीर सरकार से की इंसाफ की मांग
नई दिल्ली: 11 मीडिया संगठनों ने सोमवार को जम्मू कश्मीर सरकार से वरिष्ठ पत्रकार शुजात बुखारी के हत्यारों को यथाशीघ्र पकड़ने तथा उनकी हत्या से पहले उसके खिलाफ चलाये गये द्वेषपूर्ण अभियान की जांच कराने की मांग की.
संयुक्त बयान सह प्रस्ताव में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, इंडियन वूमेंस प्रेस कोर, प्रेस एसोसिएशन, एडिटर्स गिल्ड, साउथ एशियन फ्री मीडिया एसोसिएशन, साउथ एशियन वूमेन इन मीडिया, इंडियन जर्नलिस्ट्स यूनियन, नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट, फॉरेन कॉरस्पोंडेंट्स क्लब , वर्किंग न्यूज कैमरापर्सन एसोसएिशन और ऑल उर्दू एडिटर्स कॉन्फ्रेंस ने कहा कि बुखारी की निर्मम हत्या विभिन्न स्तरों पर जवाबदेही की मांग करती है.
उन्होंने कहा कि देश में हर व्यक्ति भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सार्वभौमिक अधिकर है और ऐसी आजादी के विरुद्ध बढ़ती असहिष्णुता में लोकतंत्र के चरित्र एवं प्रकृति को कमजोर करने की ताकत है.
उन्होंने बयान में कहा, ‘हम मांग करते हैं कि जम्मू कश्मीर सरकार इस कायराना अपराध के अपराधियों को जल्द से जल्द इंसाफ के कठघरे में खड़ा करे. हम मांग करते हैं कि सरकार शुजात के खिलाफ चलाये गये द्वेषपूर्ण अभियान की जांच कराए.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)