दिल्ली हाईकोर्ट ने लगभग 17 हज़ार पेड़ों की कटाई पर चार जुलाई तक रोक लगाई. दक्षिण दिल्ली की छह कालोनियों- सरोजनी नगर, नौरोज़ी नगर, नेताजी नगर, त्यागराज नगर, मोहम्मदपुर और कस्तूरबा नगर के पुनर्विकास के लिए काटे जाने हैं पेड़.
नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को सवाल किया कि क्या एक आवासीय परियोजना के लिए 16,500 से ज़्यादा पेड़ों की कटाई राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली बर्दाश्त कर सकेगी.
पेड़ों की कटाई पर अंतरिम रोक लगाने के अदालत के रुख़ को देखते हुए नेशनल बिल्डिंग्स कन्स्ट्रक्शन कॉरपोरेशन (इंडिया) लिमिटेड ने चार जुलाई तक पेड़ों की कटाई नहीं करने की सहमति दे दी.
दरअसल, नेशनल बिल्डिंग्स कन्स्ट्रक्शन कॉरपोरेशन (एनबीसीसी) और केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) को दक्षिण दिल्ली की छह कालोनियों- सरोजनी नगर, नौरोज़ी नगर, नेताजी नगर, त्यागराज नगर, मोहम्मदपुर और कस्तूरबा नगर, के पुनर्विकास का काम सौंपा गया है.
इसी क्रम में 16,500 से ज़्यादा पेड़ों की कटाई होनी है.
न्यायमूर्ति विनोद गोयल और न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की अवकाशकालीन पीठ ने जब सवाल किया, ‘क्या दिल्ली वर्तमान में एक आवासीय परिसर के लिए इतने पेड़ों की कटाई झेल सकती है? हम समझ सकते थे, अगर ये सड़कें चौड़ी करने के लिए होता, जिसे टाला नहीं जा सकता था.’
पीठ ने पहले एनबीसीसी को कहा था कि वह दो जुलाई तक पेड़ों की कटाई रोक दे क्योंकि राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ऐसे ही एक मामले की सुनवाई करेगा. पीठ ने याचिका दायर करने वाले आर्थोपेडिक सर्जन डॉक्टर कौशल कांत मिश्र से भी कहा कि वह एनजीटी के पास जाएं.
अदालत ने ये टिप्पणियां उस वक़्त कीं जब एनबीसीसी ने कहा कि केंद्र द्वारा किसी परियोजना को पर्यावरण मंज़ूरी देने के ख़िलाफ़ याचिकाओं पर सुनवाई का अधिकार क्षेत्र एनजीटी के पास है.
एनबीसीसी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जेपी सेंग ने कहा कि उसने वृक्षों की कटाई की अनुमति के लिए वृक्ष प्राधिकरण के यहां आठ करोड़ रुपये भी जमा कराए हैं.
पर्यावरण मंत्रालय के वकील रिपुदमन भारद्वाज ने कहा कि केंद्र ने एनजीटी के पूर्व के आदेशों के अनुरूप ही पर्यावरण मंज़ूरी दी है.
हालांकि याचिकाकर्ता के वकील का कहना था कि यह मामला पेड़ों की कटाई के संबंध में दिल्ली सरकार के वृक्ष प्राधिकरण द्वारा पिछले साल नवंबर में दी गई अनुमति से भी जुड़ा हुआ है और इस फैसले को एनजीटी में चुनौती नहीं दी जा सकती है.
इसके बाद, अदालत ने डॉ. कौशल को चार जुलाई तक अपनी याचिका में संशोधन कर वृक्ष प्राधिकरण के फैसले को चुनौती देने को कहा है.
उच्च न्यायालय ने दक्षिण दिल्ली की छह कालोनियों के पुनर्विकास के क्रम में एनबीसीसी और सीपीडब्ल्यूडी द्वारा पेड़ों की कटाई के लिए केंद्र से मिली मंज़ूरी को स्थगित रखने से 22 जून को इनकार कर दिया था.
आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. मिश्र ने इस संबंध में दायर जनहित याचिका में कहा था कि इस क्रम में 16,500 से ज़्यादा पेड़ों को काटना पड़ेगा.
याचिका में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा आवासीय परियोजना के लिए दी गयी पर्यावरण मंज़ूरी और कार्य शर्तो को निरस्त करने का अनुरोध किया गया है.
उच्च न्यायालय ने पेड़ों की कटाई के लिये केंद्र से मिली मंजूरी को स्थगित रखने से 22 जून को इनकार कर दिया था.
समाचार वेबसाइट एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, कौशल कांत मिश्र ने इस संबंध में दायर जनहित याचिका में कहा था कि इस क्रम में लगभग 20,000 पेड़ काटने पड़ सकते हैं और कोर्ट को इस पर रोक लगानी चाहिए.
उन्होंने पत्रकारों से बात करते हुए नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के हवाले से कहा था कि दिल्ली में पहले से ही नौ लाख पेड़ों की कमी है. कोर्ट को इसे स्थगित करने का आदेश देना चाहिए.
लोगों ने किया प्रदर्शन, कहा- 50 साल के विकसित पेड़ की भरपाई पौधे से नहीं की जा सकती
16 हजार से अधिक पेड़ों को काटने के फैसले का लोगों ने विरोध करना शुरू कर दिया है. फैसले के खिलाफ स्थानीय लोगों, कार्यकर्ताओं और पर्यावरणविदों ने बीते रविवार को प्रदर्शन किया.
सरोजिनी नगर इलाके में करीब 1,500 प्रदर्शनकारियों ने पेड़ों को गले लगाकर अपने ‘चिपको आंदोलन’ की शुरुआत की. 1970 के दशक में उत्तराखंड (तत्कालीन उत्तर प्रदेश) में पेड़ों की कटाई के विरोध में लोगों ने यह आंदोलन चलाया था. लोगों ने पेड़ों को ‘राखी’ के तौर पर हरे रंग का रिबन भी बांधा. सोशल मीडिया पर इस चीज को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए वेल्फी बूथ (वीडियो सेल्फी) भी बनाए गए थे.
आवास और शहरी विकास राज्य मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने इस पर कहा, ‘जब तक मैं मंत्री हूं तब तक कोई पेड़ काटा नहीं जाएगा और हर एक पेड़ काटने के बदले हम 10 पेड़ लगाएंगे.’
उन्होंने कहा, ‘इन कॉलोनियों के विकास के बाद ग्रीन कवर को तीन गुना किया जाएगा. युवा कार्यकर्ता बहुत जल्दी दोष लगा रहे हैं.’
हरदीप सिंह पुरी को सोशल मीडिया पर अपने बयान के कारण आलोचना का सामना करना पड़ा. उन्होंने परियोजना को उचित ठहराते हुए कहा था कि सभी पेड़ों के बदले पौधे लगाए जाएंगे.
लोगों का कहना है कि एक पौधा लगाकर विकसित पेड़ के काटे जाने से हुए नुकसान की भरपाई नहीं हो सकती हैं.
ट्विटर पर एक व्यक्ति ने लिखा, ‘यह सिर्फ एक पेड़ के बारे में नहीं है, यह पूरे पारिस्थितिकी तंत्र के बारे में है जो इस पर निर्भर है, जिसमें पक्षी, जानवरों और कीड़े भी शामिल हैं. 50 साल के पेड़ को काटने और इसकी भरपाई एक पौधे के साथ करना मूर्खता है. पेड़ों की कटाई को वनीकरण से प्रस्थापित नहीं किया जा सकता है.’
Why didn't you consider to make accommodations in Dwarka or Rohini or outer Delhi minister @HardeepSPuri Ji ? Don't you think this project of yours is lethal & unreasonable?#Savs17KTreesDelhi
— Airavta (@Airavta) June 23, 2018
ट्विटर पर गजेंद्र नाम के एक व्यक्ति ने लिखा, ‘मंत्री हरदीप सिंह पुरी जी, आप द्वारका, रोहिणी या बाहरी दिल्ली में घर बनाने के बारे में क्यों नहीं सोचते. आपको नहीं लगता कि आपकी यह योजना घातक और अविवेकपूर्ण है.’
इस पर नाराज़ हरदीप सिंह पुरी ने जवाब दिया और आलोचकों को उनके बोलने के तरीके को लेकर सावधान रहने को कहा. उन्होंने कहा, ‘अपने टोन को लेकर सावधान रहिए. सिर्फ इसलिए कि मैं एक सरकारी नौकर हूं, आप इस तरह बात नहीं कर सकते हैं. जो भी फैसला लिया जाएगा वो इस बात को ध्यान में रखकर लिया जाएगा कि कभी भी इलाके में पेड़ों की संख्या में कोई कमी न हो.’
Dear sir, What is wrong with my tone? Rather answering my concerns you are threatening me?
You are a minister, we are a democracy, you are answerable to people, all those trees matter to our lives.
Btw- Nobody cares about ur press note, DONT LET IT HAPPEN. #SaveTreesSaveDelhi https://t.co/hNLMeEZtvU
— Airavta (@Airavta) June 23, 2018
दक्षिण दिल्ली पुनर्विकास परियोजना के लिए नौरोजी नगर और नेताजी नगर जैसे इलाकों से 3,000 से अधिक पेड़ पहले से ही काटें जा चुके हैं. नौरोजी नगर परियोजना को दिल्ली के पहले विश्व व्यापार केंद्र के रूप में बनाने की योजना के तहत शुरू किया गया है.
(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)