सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को हलाला और बहुविवाह के मामले में जल्द जवाब दाख़िल करने का निर्देश दिया है. मामले में याचिकाकर्ताओं में से एक समीना बेगम की ओर से पेश अधिवक्ता शेखर और अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि उनकी मुवक्किल को धमकी दी जा रही है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम समुदाय में व्याप्त ‘हलाला’ और ‘बहुविवाह’ प्रथाओं को चुनौती देने वाली अर्जियों को सूचीबद्ध करने पर विचार करने के लिए सोमवार को सहमति जताई. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति एएम खानविलकर तथा न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता वी शेखर की इस दलील पर गौर किया कि याचिकाओं को अंतिम फैसले के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए. गौरतलब है कि पहले ही मामले को पांच न्यायधीशों की पीठ को भेजा गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि मामले की सुनवाई के लिए कोई तारीख तय नही की लेकिन कहा, ‘हम इसे देखेंगे.’
वहीं, दिल्ली के याचिकाकर्ताओं में से एक समीना बेगम की ओर से पेश अधिवक्ता शेखर और अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि उनकी मुवक्किल को धमकी दी जा रही है और कहा जा रहा है कि मुस्लिम समुदाय में ‘हलाला’ और ‘बहुविवाह’ प्रथाओं को चुनौती देने वाली अपनी याचिका वह वापस ले लें.
इस बीच पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता को इस याचिका पर जवाब दाखिल करने की अनुमति दी.
गौरतलब है कि याचिकाकर्ता और तीन बच्चों की मां समीना बेगम दो बार तीन तलाक का शिकार हो चुकी हैं. याचिका में कहा गया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 की धारा 2 को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन करने वाला घोषित किया जाए, क्योंकि यह बहुविवाह और निकाह हलाला को मान्यता देता है. साथ ही भारतीय दंड संहिता, 1860 के प्रावधान सभी भारतीय नागरिकों पर बराबरी से लागू हो.
एनडीटीवी के मुताबिक, याचिका में यह भी कहा गया है कि ‘ट्रिपल तलाक आईपीसी की धारा 498A के तहत एक क्रूरता है. निकाह-हलाला आईपीसी की धारा 375 के तहत बलात्कार है और बहुविवाह आईपीसी की धारा 494 के तहत एक अपराध है.’
साथ ही याचिका में कहा गया है कि ‘कुरान में बहुविवाह की इजाजत इसलिए दी गई है ताकि उन महिलाओं और बच्चों की स्थिति सुधारी जा सके, जो उस समय लगातार होने वाले युद्ध के बाद बच गए थे और उनका कोई सहारा नहीं था. पर इसका मतलब यह नहीं है कि इसकी वजह से आज के मुसलमानों को एक से अधिक महिलाओं से विवाह का लाइसेंस मिल गया है. याचिका में उन अंतरराष्ट्रीय कानूनों और उन देशों का भी जिक्र किया गया है, जहां बहुविवाह पर रोक है.
समीना ने कहा है कि सभी तरह के पर्सनल लॉ का आधार समानता होनी चाहिए, क्योंकि संविधान महिलाओं के लिए समानता, न्याय और गरिमा की बात कहता है.
गौरतलब है कि इससे पहले बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने भी बहु विवाह और निकाह हलाला पर पूरी तरह से रोक लगाने के लिए याचिका दायर की थी. उनका कहना था कि इससे महिलाओं के मौलिक अधिकारों का हनन होता है.
इसके अलावा उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर की 27 वर्षीय फरजाना ने बहु विवाह और हलाला को असंवैधानिक करार देने की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की है. इससे पहले भी बहुविवाह और हलाला के खिलाफ कई याचिकाएं दायर हो चुकी हैं और इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ को करनी है.
आपको बता दें कि हलाला के तहत तलाकशुदा महिला को अपने पति के साथ दोबारा शादी करने के लिए पहले किसी दूसरे पुरुष से शादी करनी होती है. दूसरे पति जब तलाक देगा तभी वह महिला अपने पहले पति से निकाह कर सकती है, जबकि बहुविवाह नियम मुस्लिम पुरुष को चार पत्नी रखने की इजाजत देता है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)