नोटबंदी पर बनी बंगाली फिल्म ‘शून्योता’ पर सेंसर बोर्ड ने लगाई रोक

नोटबंदी पर बनी एक बंगाली फिल्म की रिलीज़ पर सीबीएफसी के कोलकाता स्थित क्षेत्रीय कार्यालय ने रोक लगा दी है. इस फिल्म को मंज़ूरी देने के लिए सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष को भेजा गया है.

नोटबंदी पर बनी एक बंगाली फिल्म की रिलीज़ पर सीबीएफसी के कोलकाता स्थित क्षेत्रीय कार्यालय ने रोक लगा दी है. इस फिल्म को मंज़ूरी देने के लिए सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष को भेजा गया है.

Shunyota Facebook
(फोटो साभार: फिल्म के फेसबुक पेज से)

केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) के क्षेत्रीय दफ्तर ने आम आदमी पर पड़े नोटबंदी के प्रभावों की थीम पर बनी बंगाली फिल्म ‘शून्योता’ (खालीपन) की रिलीज़ टाल दी और आगे के फैसले के लिए इसे सीबीएफसी अध्यक्ष को भेजा है.

निर्देशक सुवेंदू घोष ने दावा किया कि शून्योता नोटबंदी पर बनी पहली फिल्म है और इसे 31 मार्च को रिलीज किया जाना था.

सीबीएफसी क्षेत्रीय दफ्तर ने एक ख़त में फिल्म के निर्माताओं को बताया कि निरीक्षण समिति ने 27 मार्च को फिल्म देखी थी. सर्टिफिकेट को लेकर समिति के सदस्यों की राय अलग-अलग थी इसलिए प्रमाणन नियमों के मुताबिक इस मामले को सीबीएफसी के फैसले के लिए सीबीएफसी अध्यक्ष पहजाज निहलानी को संदर्भित किया जा रहा है.

सीबीएफसी के क्षेत्रीय अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित पत्र में कहा गया है, प्रमाणन के संदर्भ में जैसे ही इस दफ्तर को सीबीएफसी अध्यक्ष के दफ्तर से कोई जानकारी मिलेगी आपको सूचित किया जाएगा.

सीबीएफसी के क्षेत्रीय कार्यालय के इस फैसले से सुवेंदू हैरान हैं. इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में उन्होंने कहा कि शून्यता तीन शॉर्ट फिल्मों पर आधारित है. इनमें से दो फिल्मों को यू (यूनिवर्सल) और यू/ए (यूनिवर्सल/एडल्ट) कैटेगरी में सेंसर बोर्ड से पहले ही सर्टिफिकेट मिल चुका है.

वे कहते हैं, ‘मैंने तीसरी शॉर्ट फिल्म इसलिए बनाई ताकि तीनों को एक साथ एक फीचर फिल्म के रूप में व्यावसायिक तौर पर रिलीज़ कर सकूं. अगर पहली दो फिल्में जो कि नोटबंदी पर आधारित हैं उन्हें बिना किसी दिक्कत के सर्टिफिकेट मिल सकता है तो फिर अब फिल्म की रिलीज़ पर क्यों रोक लगा दी गई.’

बहरहाल फिल्म की रिलीज़ टल चुकी है और सुवेंदू अब सीबीएफसी के अध्यक्ष पहलाज निहलानी के जवाब का इंतज़ार कर रहे हैं.

बता दें कि पिछले दो सालों में सेंसर बोर्ड कई फिल्मों के विषय, डायलॉग आदि को लेकर आपत्ति जताता रहा है. पिछले दिनों ही साल 2008 में हुए अहमदाबाद बम विस्फोट पर बनी फिल्म ‘समीर’ के एक डायलॉग को लेकर सेंसर बोर्ड को आपत्ति थी.

आपत्ति फिल्म के एक डॉयलॉग को लेकर था, जिसमें ‘मन की बात’ का ज़िक्र आता है. बोर्ड की ओर से कहा गया कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रेडियो शो है इसलिए इस लाइन को फिल्म से हटा दो.

वहीं पिछले हफ़्ते रिलीज़ हुई अनुष्का शर्मा की फिल्म ‘फिल्लौरी’ से सेंसर बोर्ड ने हनुमान चालीसा हटाने का निर्देश दिया. फिल्म में एक किरदार भूत से डरकर हनुमान चालीसा पढ़ने लगता है, लेकिन भूत बनी अनुष्का नहीं भागती.

हनुमान चालीसा हटाने के पीछे बोर्ड ने तर्क दिया है कि समाज में मान्यता ये है कि इसके पाठ से भूत भाग जाते हैं जबकि इस फिल्म में भूत नहीं डरता. इससे एक ख़ास वर्ग को आपत्ति हो सकती थी.

इसके पहले सेंसर बोर्ड ने अलंकृता श्रीवास्तव की कई फिल्म समारोहों में पुरस्कृत फिल्म ‘लिपस्टिक अंडर माय बुरख़ा’ को सर्टिफिकेट देने से मना कर दिया था. बोर्ड का कहना था कि फिल्म ‘लेडी ओरिएंटेड’ (महिलान्मुखी) है, और फिल्म में महिलाओं के सपनों और फंतासियों को ज़िंदगी से ज़्यादा तवज्जो दी गई है.