चीफ जस्टिस ही मास्टर ऑफ रोस्टर, इसमें कोई संदेह नहीं: सुप्रीम कोर्ट

चीफ जस्टिस द्वारा मामलों के आवंटन पर पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण की याचिका पर जवाब देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि सीजेआई की भूमिका समकक्षों के बीच प्रमुख की होती है, उन्हें विभिन्न पीठों को मामले को आवंटित करने का विशेषाधिकार होता है.

सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: पीटीआई)

चीफ जस्टिस द्वारा मामलों के आवंटन पर पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण की याचिका पर जवाब देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि सीजेआई की भूमिका समकक्षों के बीच प्रमुख की होती है, उन्हें विभिन्न पीठों को मामले को आवंटित करने का विशेषाधिकार होता है.

सुप्रीम कोर्ट (फोटो: पीटीआई)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को  कहा कि प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ होता है और उनके पास शीर्ष न्यायालय की विभिन्न पीठों के पास मामलों को आवंटित करने का विशेषाधिकार और प्राधिकार होता है.

जस्टिस एके सीकरी एवं जस्टिस अशोक भूषण ने अपने अलग-अलग लेकिन समान राय वाले आदेश में कहा कि सीजेआई की भूमिका समकक्षों के बीच प्रमुख की होती है और उनके पास अदालत के प्रशासन का नेतृत्व करने का अधिकार होता है जिसमें मामलों का आवंटन करना भी शामिल है.

यह आदेश पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण की याचिका पर आया है जिन्होंने प्रधान न्यायाधीश द्वारा शीर्ष न्यायालय में मामलों को आवंटित करने की वर्तमान रोस्टर प्रणाली को चुनौती दी थी.

पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ तथा तीन न्यायाधीशों वाली पीठ पहले के अपने आदेशों में कह चुकी है कि प्रधान न्यायाधीश ‘ मास्टर ऑफ रोस्टर’ होता है.

जस्टिस सीकरी ने अपने फैसले में आज कहा, ‘जहां तक मास्टर ऑफ रोस्टर के तौर पर सीजेआई की भूमिका की बात है तो इसमें कोई मतभेद नहीं हैं कि वह मास्टर ऑफ रोस्टर हैं और शीर्ष न्यायालय की विभिन्न पीठों को मामले आवंटित करने का उनके पास अधिकार है.’

जस्टिस भूषण ने भी जस्टिस सीकरी के समान राय रखते हुए कहा कि सीजेआई के पास मामले आवंटित करने और उनकी सुनवाई के लिए पीठ नामित करने का विशेषाधिकार है.

जस्टिस भूषण ने यह भी कहा कि शीर्ष न्यायालय की समृद्ध परिपाटी और दस्तूर हैं जो समय पर खरे उतरे हैं और उनके साथ छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए.

जस्टिस सीकरी ने कहा कि याचिकाकर्ता के उस आवेदन को स्वीकार करना मुश्किल है जिसमें उन्होंने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के नियम के तहत ‘भारत के प्रधान न्यायाधीश’ शब्द को मामले आवंटित करने के लिए ‘पांच वरिष्ठतम न्यायाधीशों के कॉलेजियम’ के तौर पर पढ़ा जाना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘लोगों के मन में न्यायपालिका का क्षरण होना न्यायिक व्यवस्था के लिये सबसे बड़ा खतरा है.’

साथ ही उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायधीश होने के नाते प्रधान न्यायाधीश ‘न्यायपालिका का नेता एवं प्रवक्ता’ होता है.’

पीठ ने कहा कि कोई भी तंत्र पूरी तरह पुख्ता नहीं होता और न्यायपालिका की कार्यप्रणाली में सुधार की हमेशा गुंजाइश होती है.

गौरतलब है कि भूषण ने अपनी जनहित याचिका में आरोप लगाया था कि मास्टर ऑफ रोस्टर ‘दिशानिर्देश विहीन और बेलगाम’ विशेषाधिकार नहीं हो सकता जिसका उपयोग सीजेआई मनमाने ढंग से अपने चुनिंदा न्यायाधीशों की पीठ चुनने अथवा विशेष जजों को मामले आवंटित करने के लिए करे.

मालूम हो कि इस साल की शुरुआत में जनवरी महीने में सुप्रीम कोर्ट के तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मामलों के आवंटन पर सवाल उठाए थे. उन्होंने कहा था कि ‘चयनात्मक तरीके से’ मामलों के आवंटन है, साथ ही उन्होंने  कुछ न्यायिक आदेशों पर सवाल भी उठाए थे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)