उच्चतम न्यायालय ने जगन्नाथ मंदिर प्रबंधन को निर्देश दिया था कि वह सभी दर्शनाभिलाषियों, चाहे वे किसी भी धर्म-आस्था को मानने वाले क्यों न हों, को मंदिर में पूजा करने की अनुमति दे. विहिप पुनर्विचार याचिका दाख़िल करेगा.
भुवनेश्वर: ओडिशा के पुरी स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर में गैर-हिंदुओं के प्रवेश का विरोध करते हुए विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने शनिवार को कहा कि वह इस बाबत उच्चतम न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर करेगी ताकि न्यायालय अपने प्रस्ताव पर फिर से विचार करे.
विहिप की ओडिशा इकाई के कार्यवाहक अध्यक्ष बद्रीनाथ पटनायक ने बताया कि मंदिर को लेकर कोई भी कदम उठाने से पहले पुरी के गजपति राजा दिव्यसिंह देब और पुरी के शंकराचार्य निश्छलानंद सरस्वती से विचार-विमर्श किया जाना चाहिए.
12वीं सदी में निर्मित इस मंदिर में अभी सिर्फ हिंदुओं को प्रवेश की अनुमति है. इसे श्री मंदिर के नाम से भी जाना जाता है.
विहिप नेता ने श्री जगन्नाथ मंदिर में वंशानुगत सेवादार प्रथा को खत्म करने के शीर्ष न्यायालय के प्रस्ताव को भी स्वीकार नहीं किया.
पटनायक ने कहा, ‘राज्य सरकार से अपील की जाएगी कि वह इस मामले में अपना मौजूदा रुख कायम रखे और यदि वह ऐसा करने में नाकाम रही तो हम उच्चतम न्यायालय की बड़ी पीठ में पुनर्विचार याचिका दायर करेंगे.’
उच्चतम न्यायालय ने जगन्नाथ मंदिर प्रबंधन को निर्देश दिया था कि वह सभी दर्शनाभिलाषियों, चाहे वे किसी भी धर्म-आस्था को मानने वाले क्यों न हों, को मंदिर में पूजा करने की अनुमति दे.
हालांकि, न्यायालय ने कहा था कि गैर-हिंदू दर्शनाभिलाषियों को मंदिर के ड्रेस कोड का पालन करना होगा और एक उचित घोषणा-पत्र देना होगा.
मंदिर के संबंध में कोई भी कदम उठाने से पहले पुरी में गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य और पुरी गजपति राजा से विमर्श करने पर जोर देने की बात कहते हे उन्होंने कहा, ‘कैसे कोई एक सेवक का मूल अधिकार छीन सकता है? श्री जगन्नाथ मंदिर अधिनियम पीढ़ियों से मंदिर में सेवा कर रहे सेवकों के अधिकार की रक्षा करता है.’
ओडिशा के कानून मंत्री प्रताप जेना ने कहा कि राज्य सरकार अभी तक सुप्रीम कोर्ट का आदेश नहीं मिला है. मंदिर में गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर वे बोले, ‘यह शीर्ष अदालत द्वारा दिया गया एक प्रस्ताव है. राज्य सरकार अपना फैसला मुद्दे पर सर्वसम्मति से निकले निष्कर्ष के आधार पर ही लेगी. हम आदेश की सामग्री का इसकी प्रति मिलते ही अध्ययन करेंगे. राज्य सरकार शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए अंतिम फैसले के बाद ही कोई निर्णय लेगी. ’
राज्य सरकार जगन्नाश मंदिर की व्यवस्था में सुधारों को लेकर उत्सुक है, ऐसा कहते हुए जेना ने कहा कि अगर जरूरी होता है तो सरकार जगन्नाथ मंदिर अधिनियम 1954 में भी संशोधन करेगी.
वरिष्ठ भाजपा नेता बिजय मोहपात्रा ने बताया कि सेवकों के वंशानुगत अभ्यास को रोकना मुश्किल है और अगर ऐसा किया जाता है तो इससे अराजकता की स्थिति बनेगी.
इससे पहले, पुरी जिला जज ने सुप्रीम कोर्ट को जगन्नाश मंदिर के सेवकों के वंशानुगत सेवाओं को रोकने का सुझाव दिया था.
मोहपात्रा ने कहा, ‘श्री जगन्नाथ मंदिर की किसी अन्य मंदिर से तुलना नहीं करनी चाहिए. पुरी का मंदिर एक अद्वितीय तीर्थस्थान है क्योंकि यहां सेवक देवी-देवताओं के कम से कम 120 अनुष्ठान करते हैं.’
गौरतलब है कि याचिकाकर्ता मृणालिनी ने जगन्नाथ मंदिर में श्रद्धालुओं को होने वाली परेशानियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है. उन्होंने अपनी याचिका में कहा है कि मंदिर के सेवक किस तरह से श्रद्धालुओं का शोषण करते हैं.
साथ ही याचिका में कहा गया है कि मंदिर के आसपास उतनी साफ-सफाई नहीं है जितनी जरूरत है. साथ ही मंदिर परिसर में अतिक्रमण है. याचिका में आरोप भी लगाया गया है कि मंदिर का प्रबंधन और अनुष्ठान का व्यवसायीकरण हो गया है.
ज्ञात हो कि पुरी जगन्नाथ मंदिर हाल ही में तब सुर्खियों में आया था जब देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को मंदिर के गर्भगृह में जाने से रोक दिया गया था.
मार्च माह में राष्ट्रपति अपनी पत्नी के साथ मंदिर गए थे. आरोप है कि गर्भगृह के रास्ते पर कुछ सेवादारों ने उनका रास्ता रोका था और कुछ ने उनकी पत्नी के साथ धक्का-मुक्की भी की थी. राष्ट्रपति भवन ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए मंदिर प्रबंधन को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)