13 दिन पहले त्रिपुरा, मिज़ोरम, केंद्र सरकार और ब्रू समुदाय के शीर्ष संगठन मिज़ोरम ब्रू डिस्प्लेस्ड पीपुल्स फोरम के बीच हुए समझौते के बाद त्रिपुरा में बसे क़रीब 33 हज़ार ब्रू लोगों को मिज़ोरम वापस भेजने का फैसला किया गया था.
बीते 3 जुलाई को गृह मंत्रालय ने त्रिपुरा और मिज़ोरम की सरकारों के साथ हुए एक त्रिपक्षीय समझौते के बाद कहा था कि करीब दो दशकों से त्रिपुरा में बसे ब्रू समुदाय के करीब 33 हज़ार लोगों को वापस मिज़ोरम भेजा जाएगा.
इस समझौते के लिए नई दिल्ली में हुई बैठक में गृह मंत्री राजनाथ सिंह और दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के अलावा ब्रू समुदाय के शीर्ष संगठन मिज़ोरम ब्रू डिस्प्लेस्ड पीपुल्स फोरम (एमबीडीपीएफ) के अध्यक्ष मौजूद थे और उन्होंने इस समझौते पर दस्तखत किए थे.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक अब करीब 13 दिन बाद एमबीडीपीएफ ने इस समझौते से इनकार करते हुए कहा है कि इस समझौते में सरकारों द्वारा रखी गयी शर्तें ब्रू समुदाय को स्वीकार्य नहीं हैं.
एमबीडीपीएफ के महासचिव ब्रूनो मशा ने सोमवार को इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए बताया, ‘हमने गृह मंत्रालय को बता दिया है कि हमारे समुदाय को शर्तें मंज़ूर नहीं हैं. वे (ब्रू) मिज़ोरम में मंदिर, सामूहिक आवास बनाने की अनुमति और खेती करने की ज़मीन चाहते हैं. यह मांगें मिज़ोरम सरकार को मंज़ूर नहीं हैं.’
वहीं गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने इस अख़बार को बताया, ‘हमारे प्रतिनिधि त्रिपुरा में मौजूद हैं, हमें रिपोर्ट का इंतजार है. हम अपने समझौते पर दृढ़ हैं और अब भी जो लोग लौटना चाहते हैं, उनके लिए समझौता अब भी वही है.’
इस समझौते से अलग होने की घोषणा करते हुए एमबीडीपीएफ के अध्यक्ष ए सविबन्गा, जिन्होंने इस समझौते पर दस्तखत किए थे, ने कहा कि वे ब्रू लोगों के एमबीडीपीएफ नेताओं के खिलाफ कड़े प्रतिरोध के चलते इस समझौते से पीछे हट रहे हैं.
अधिकारियों के अनुसार करीब 5 हज़ार ब्रू शरणार्थियों ने त्रिपुरा में एमबीडीपीएफ के दफ्तर को घेर लिया और फौरन इस समझौते से इनकार करने की मांग रखी. उन्होंने एमबीडीपीएफ नेताओं को शारीरिक नुकसान पहुंचाने की भी धमकी दी, जिसके बाद स्थानीय प्रशासन और पुलिस तुरंत मौके पर पहुंचे.
यह पूछने पर कि क्या एमबीडीपीएफ मिज़ोरम सरकार और केंद्र सरकार के साथ समझौते की शर्तों पर फिर से विचार करेगा, ब्रूनो ने कहा कि हम अपने समुदाय के लोगों से बात करके अगला कदम लेंगे.
उन्होंने यह भी बताया कि ब्रू शरणार्थी उन्हें वापस लौटने पर दी जाने वाली 4 लाख रुपये की आर्थिक मदद फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) में नहीं बल्कि सेविंग्स खाते के रूप में चाहते हैं.
मालूम हो कि 3 जुलाई को हुई घोषणा में 5,407 परिवारों के विस्थापित लोगों को त्रिपुरा के अस्थायी शिविरों से इस साल 30 सितंबर के पहले मिज़ोरम भेजने का प्रस्ताव था.
समझौते में वापस लौटने वाले शरणार्थियों में हर परिवार को परिवार के मुखिया के नाम पर 4 लाख रुपये की एफडी, एक घर और दो साल के लिए मुफ्त राशन देने की बात कही गयी थी. साथ ही कहा गया था कि इन्हें 5,000 रुपये का मासिक खर्च भी दिया जाएगा. सरकार द्वारा घर बनाने के लिए तीन किश्तों में डेढ़ लाख रुपये देने को भी कहा गया था.
उस समय इस समझौते के बाद सविबन्गा ने कहा भी था, ‘मिज़ोरम सरकार ने यह शर्त रखी है कि हमें अपनी राजनीतिक मांगें छोड़नी होंगी. इन मांगों में ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल, विधानसभा सीट और नौकरियों में आरक्षण की मांग शामिल हैं. हम इन पर दोबारा सोच रहे हैं लेकिन सरकार को यह समझना चाहिए कि मिज़ोरम की समृद्धि अल्पसंख्यकों (ब्रू) के विकास पर निर्भर करती है.
ब्रू और बहुसंख्यक मिज़ो समुदाय के लोगों की बीच 1996 में हुआ सांप्रदायिक दंगा इनके पलायन का कारण बना था. इस तनाव ने ब्रू नेशनल लिबरेशन फ्रंट (बीएनएलएफ) और राजनीतिक संगठन ब्रू नेशनल यूनियन (बीएनयू) को जन्म दिया, जिसने राज्य के चकमा समुदाय की तरह एक स्वायत्त ज़िले की मांग की.
इस तनाव की नींव 1995 में तब पड़ी जब शक्तिशाली यंग मिज़ो एसोसिएशन और मिज़ो स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने राज्य की चुनावी भागीदारी में ब्रू समुदाय के लोगों की मौजूदगी का विरोध किया. इन संगठनों का कहना था कि ब्रू समुदाय के लोग राज्य के नहीं है.
इसके बाद 21 अक्टूबर, 1996 को बीएनएलफए ने एक मिज़ो अधिकारी की हत्या कर दी जिसके बाद से दोनों समुदायों के बीच सांप्रदायिक दंगा भड़क गया.
दंगे के दौरान ब्रू समुदाय के लोगों पड़ोसी उत्तरी त्रिपुरा की ओर धकेलते हुए उनके बहुत सारे गांवों को जला दिया गया था. इसके बाद से ही इस समुदाय के लोग त्रिपुरा के कंचनपुर और पाणिसागर उपसंभागों में बने राहत शिविरों में रह रहे हैं.
3 जुलाई को नई दिल्ली में गृह मंत्री राजनाथ सिंह, त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लव देव और मिज़ोरम के मुख्यमंत्री लालथनहवला की मौजूदगी में इस समझौते पर दस्तखत किए गए थे और समझौते के क्रियान्वयन व विस्थापितों के पुनर्वास की जिम्मेदारी गृह मंत्रालय के विशेष सचिव (आन्तरिक सुरक्षा) के अंतर्गत एक कमेटी को दी गयी थी.