विदेश मंत्रालय द्वारा जारी निर्देश में कहा गया है कि भारत में रह रहे विदेशी पत्रकारों को कश्मीर जाने के लिए 8 हफ्ते पहले आवेदन करना होगा. गृह मंत्रालय द्वारा दी जाएगी मंज़ूरी.
नई दिल्ली: देश में काम कर रहे विदेशी पत्रकारों के लिए केंद्र सरकार द्वारा एडवाइजरी जारी की गयी है, जिसमें कहा गया है कि उन्हें जम्मू कश्मीर जाने के लिए पहले से अनुमति लेनी होगी.
दिल्ली के विदेशी समाचार संस्थानों को विदेश मंत्रालय द्वारा 22 मई 2018 को एक पत्र भेजा गया जिसमें कहा गया कि भारत में विदेशी मीडिया संस्थानों के पत्रकारों को अब से जम्मू कश्मीर जाने से पहले लिखित में आवेदन करना होगा, जिसके बाद ही वे जम्मू कश्मीर के किसी हिस्से में जा सकते हैं.
इस पत्र में लिखा था, ‘विदेश मंत्रालय द्वारा ऐसा देखा गया है कि भारत में रह रहे विदेशी पत्रकार अपने पत्रकारिता के काम के लिए यात्राएं करते समय ऐसी प्रतिबंधित/संरक्षित (प्रोटेक्टेड) जगहों पर जा रहे हैं, जहां जाने के लिए पूर्व अनुमति/विशेष परमिट लेने की आवश्यकता होती है. ऐसे क्षेत्रों में बिना पूर्व अनुमति/विशेष परमिट के जाने से पत्रकार के लिए अनावश्यक रूप से असुविधा खड़ी हो सकती है.’
मालूम हो कि मंत्रालय की ओर से जारी संरक्षित क्षेत्रों की श्रेणी में मणिपुर, मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के ‘हिस्से’ और पूरे सिक्किम और नगालैंड आते हैं, वहीं पूरा अंडमान निकोबार द्वीप और सिक्किम के कुछ हिस्से प्रतिबंधित क्षेत्र में आते हैं.
इस पत्र में यह भी कहा गया है कि अगर पत्रकार पहले से दिए गए फॉर्मेट के अनुसार अपनी यात्रा योजना की जानकारी देंगे तो विदेश मंत्रालय उनके लिए विभिन्न सुविधाएं मुहैया करवाने में मदद कर सकेगा. इस पत्र के साथ स्पेशल परमिट के लिए आवेदन करने का फॉर्मेट भी दिया गया है.
द वायर ने देश में रह रहे कई विदेशी पत्रकारों से बात की, जिनका कहना था कि वे बीते कई सालों से कश्मीर जाते रहे हैं, लेकिन कभी उनसे इस तरह अनुमति लेने या पहले सूचित करने की बात नहीं कही गयी. द वायर से बात करते हुए फॉरेन कॉरेस्पोंडेंट क्लब ऑफ साउथ एशिया के अध्यक्ष एस वेंकट नारायण ने कहा कि वे इस बारे में विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय से बात करेंगे.
अनौपचारिक तौर पर विदेश मंत्रालय से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इस आदेश का मकसद सिर्फ ऐसे क्षेत्रों में विदेशी पत्रकारों के प्रवेश को लेकर बनी दीर्घकालिक नीति को दोहराना है, ऐसे क्षेत्रों में रिपोर्टिंग पर जाने को लेकर कोई पाबंदी नहीं है.
हालांकि पहले ऐसे कई मामले सामने आये हैं जहां विदेशी शिक्षाविद या पत्रकारों को कश्मीर जाने से रोका गया है, इनमें अमेरिका के चर्चित प्रस्तोता डेविड बर्समियन भी शामिल हैं.
डेविड ने कश्मीर को लेकर काफी रिपोर्टिंग की है. हालांकि 2011 में डेविड जैसे ही भारत पहुंचे, उन्हें डिपोर्ट कर दिया गया था. उन पर आरोप था कि उन्होंने अपनी पिछली यात्रा में वीसा नियमों का उल्लंघन किया था.
वहीं, दिसंबर 2017 में पैलेट गन से घायल हुए पीड़ितों पर डॉक्यूमेंट्री बनाने कश्मीर गए फ्रेंच पत्रकार और फिल्मकार कोमिति पॉल एडवर्ड को श्रीनगर में गिरफ्तार कर लिया गया था. उन पर भी वीसा नियमों के उल्लंघन का आरोप लगा था.
फ्रेंच एम्बेसी और कई विदेशी संगठनो के हस्तक्षेप के बाद एडवर्ड को छोड़ा गया, लेकिन इसके बाद भी अपने पासपोर्ट को लेकर वे काफी परेशान हुए थे.
मालूम हो कि अप्रैल 1990 में कश्मीर में उग्रवाद के सिर उठाने के बाद विदेशी मीडिया द्वारा इसे खासी कवरेज दी गयी थी, तब केंद्र सरकार ने राज्य में विदेशी पत्रकारों को बैन कर दिया था. हालंकि इस प्रतिबंध की मियाद ज्यादा नहीं थी. एक महीने के भीतर ही यह प्रतिबंध हटा लिया गया था.