सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलू ने कहा कि आरटीआई एक्ट असल मायने में लोकतांत्रिक क़ानून है. सरकार सूचना आयुक्तों संबंधी संशोधन ला रही है लेकिन सूचना आयुक्तों से कोई सलाह-मशविरा नहीं किया गया है.
नई दिल्ली: केंद्र की मोदी सरकार द्वारा प्रस्तावित सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2018 को लेकर केंद्रीय सूचना आयोग के हालिया सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलू ने कड़ी निंदा की है.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक श्रीधर आचार्युलू ने सभी सूचना आयुक्तों को एक पत्र लिख कर कहा कि ये संशोधन सूचना आयोगों को कमजोर कर देगा. उन्होंने मुख्य सूचना आयुक्त से गुजारिश की कि वे सरकार से आधिकारिक रूप से कहें कि सूचना का अधिकार क़ानून में संशोधन का प्रस्ताव वापस लिया जाए.
बता दें कि केंद्र की मोदी सरकार मानसून सत्र के लिए राज्यसभा में आरटीआई संशोधन बिल लेकर आई है. हालांकि भारी विरोध के चलते फिलहाल संशोधन प्रस्ताव को स्थगित कर दिया गया है.
इस बात की अभी आधिकारिक जानकारी नहीं है कि सरकार दोबारा प्रस्ताव पेश करेगी या नहीं. पूर्व सूचना आयुक्त शैलेष गांधी ने द वायर को बताया, ‘मुझे लगता है कि वे अब दोबारा इस प्रस्ताव को लेकर नहीं आएंगे.’
चूंकि मुख्य सूचना आयुक्त आरके माथुर इस समय छुट्टी पर हैं इसलिए श्रीधर आचार्युलू ने माथुर के बाद सबसे सीनियर सूचना आयुक्त यशोवर्धन आज़ाद को 19 जुलाई को पत्र लिखा और मांग की कि सभी सूचना आयुक्तों की एक बैठक बुलाई जाए और इस मामले पर सरकार को पत्र लिख कर संशोधन बिल वापस लेने की मांग की जाए.
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यशोवर्धन आज़ाद ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि ये मामला अब निष्फल हो गया है. सरकार ने इस विधेयक को संसद में नहीं लाने का फैसला किया है.
उन्होंने बताया, ‘उन्होंने (आचार्युलू) ने मुझे पत्र लिखा था. हम लोग इस पर एक बैठक करने वाले थे. लेकिन सरकार ने अभी संसद में इस बिल को नहीं लाने का फैसला लिया है. अब हम इस पर फैसला नहीं करेंगे.’
आचार्युलू ने अपने पत्र में कहा कि ये संशोधन आरटीआई एक्ट, 2005 के मूल उद्देश्य को ही खत्म कर देगा. ये संशोधन संघवाद के नियम के विपरीत है.
उन्होंने अपने पत्र में लिखा, ‘केंद्र सरकार ये मान रही है कि मूख्य सूचना आयुक्त का कद मुख्य चुनाव आयुक्त के मुकाबले छोटा है. आरटीआई एक्ट ये कहता है कि ये संवैधानिक अधिकार है लेकिन संशोधन बिल 2018 में लिखा है कि ऐसा नहीं है. अगर संविधान के अनुच्छेद 324(1) के तहत मुख्य चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है तो अनुच्छेद 19(1)(अ) के तहत संवैधानिक अधिकारों को लागू करवाने वाला मुख्य सूचना आयोग कैसे असंवैधानिक संस्था हो जाता है?’
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उन्होंने आगे लिखा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर कहा है कि वोट देने का अधिकार और जानने का अधिकार संवैधानिक अधिकार है. इसलिए मुख्य सूचना आयोग और मुख्य चुनाव आयोग को बराबर का दर्जा है. ये बात लंबी बहस और सलाह के बाद आरटीआई एक्ट, 2005 में तय की गई है.’
सूचना आयुक्त ने लिखा कि संसद से सूचना का अधिकार विधेयक पारित किया गया है जिसमें ये कहा गया है कि सूचना आयुक्त पांच साल तक अपने पद पर रहेंगे और उनके रिटायरमेंट की उम्र 65 साल होगी. इस संशोधन विधेयक के जरिए कार्यपालिका, संसद और राज्य विधानमंडल से ये ताकत छीनना चाह रही है.
हालांकि इस संशोधन विधेयक से हालिया सूचना आयुक्तों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. उन्होंने कहा, ‘ये हमारी जिम्मेदारी है कि हम सरकार और लोगों को इस विधेयक के जरिए पड़ने वाले प्रभावों के बारे में बताए. खासकर, इस विधेयक से केंद्रीय और राज्य सूचना आयोग की स्वतंत्रता पर प्रभाव पड़ेगा.’
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उन्होंने लिखा, ‘संविधान में केंद्र और राज्य सरकार के बीच शक्तियों का बंटवारा किया गया है और इसके मुताबिक केंद्र राज्य सूची के विषय पर क़ानून नहीं बना सकती है.’
उन्होंने कहा कि आरटीआई एक्ट, 2005 में राज्यों की संप्रभुता को ध्यान में रखते हुए ये कहा गया है कि राज्य सरकार को ये अधिकार होगा कि वे अपने मुख्य सूचना आयुक्तों की नियुक्ति करें, लेकिन संशोधन विधेयक 2018 उनको ये अधिकार नहीं देता है.
प्रस्तावित विधेयक में कहा गया है कि केंद्र राज्य सूचना आयुक्तों की सैलरी और उनका कार्यकाल निर्धारित करेगा.
सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलू ने कहा, ‘भारत के संविधान के बाद सूचना का अधिकार एकमात्र ऐसा एक्ट है जो कि लोगों के प्रतिनिधित्व, परामर्श और चर्चा का एक बड़ा आधार है. ये असल मायने में लोकतांत्रिक क़ानून है जो कि जनता को ये अधिकार देता है कि वो कुशासन को चुनौती दे सकें. सरकार सूचना आयुक्तों संबंधी संशोधन ला रही है लेकिन उन्होंने सूचना आयुक्तों से भी कोई सलाह-मशविरा नहीं किया.’