एक हिंदू महिला और मुस्लिम शख़्स ने हाईकोर्ट से राहत मांगी है कि वे गुरुग्राम डिस्ट्रिक्ट मैरिज अधिकारी को निर्देश दे कि उनकी शादी का नोटिस उनके घर न भेजा जाए. कोर्ट ने कहा कि मांगी गई कुछ सूचनाएं निजता का उल्लंघन करती हैं. इस प्रक्रिया में एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में बदलते वक़्त की मानसिकता झलकनी चाहिए.
चंडीगढ़: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार के अधिकारियों से कहा है कि वे अंतरधार्मिक विवाह में बाधा न खड़ी करें. अदालत ने कहा कि कोर्ट मैरिज के समय राज्य के नियमों के तहत मांगी गई कुछ सूचनाएं निजता का उल्लंघन करती हैं.
हाईकोर्ट का यह आदेश राज्य सरकार द्वारा तैयार की गई ‘चेकलिस्ट’ के खिलाफ दायर याचिका पर आया है. इस चेकलिस्ट के प्रावधानों में लिखा है कि शादी को लेकर दंपति के माता-पिता को जानकारी देनी होगी.
अदालत ने सुझाव दिया कि राज्य सरकार को अपने कोर्ट मैरिज की चेक लिस्ट (सीएमसीएल) में संशोधन कर इसे सरल बनाने की जरूरत है जिससे ‘न्यूनतम कार्यकारी हस्तक्षेप’ सुनिश्चित हो.
कोर्ट ने कहा कि इस प्रक्रिया में एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र में बदलते वक्त की मानसिकता झलकनी चाहिए.
20 जुलाई के अपने आदेश में जस्टिस राजीव नारायण रैना ने कहा कि कोर्ट मैरिज के रजिस्ट्रेशन के लिए तैयार की गई चेक लिस्ट विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के आधार पर होनी चाहिए. इस चेकलिस्ट में से गैरजरूरी चीजों को हटाया जाना चाहिए.
एक हिंदू महिला और मुस्लिम शख्स ने कोर्ट से राहत मांगी है कि वे गुरुग्राम डिस्ट्रिक्ट मैरिज ऑफिसर को निर्देश दे कि उनकी शादी की नोटिस को उनके घर पर न भेजा जाए.
उन्होंने कहा कि उनकी शादी की जानकारी उनके परिवार को देना निजता के अधिकार का उल्लंघन है.
याचिकाकर्ता ने यह भी मांग की है कि उनकी शादी से संबंधित अखबारों में कुछ भी न छपवाया जाए. दरअसल गुड़गांव के मैरिज चेकलिस्ट में लिखा हुआ है कि दंपति की शादी से संबंधित जानकारी अखबारों में छपवाई जाएगी.
महिला ने कहा कि उनके घरवाले शादी के बिल्कुल खिलाफ हैं. याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि ये चेकलिस्ट अत्यधिक आक्रामक, असंवेदनशील, मनमाने ढंग से तैयार किया गया और तेजी से बदलते सामाजिक व्यवस्था के मेल से बाहर है.
गुड़गांव कोर्ट मैरिज चेकलिस्ट में यह भी एक प्रावधान है कि आवेदन के वक्त लड़का और लड़की एक साथ एक घर में नहीं रह रहे हों. इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि ये एक तरीके की मॉरल पुलिसिंग है.
उन्होंने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप को कोर्ट द्वारा स्वीकृति दी गई है और इसे वयस्कों के बीच बहुमूल्य अधिकार के रूप में मान्यता प्राप्त हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा की इनपुट के साथ)