मेव समुदाय धार्मिक रूप से मुसलमान है लेकिन सांस्कृतिक रूप से हिंदू परंपराओं के क़रीब है. इनका गायों से एक सांस्कृतिक नाता है. कई ऐसे परिवार हैं, जिनके पास 500 से हज़ार गायें हैं. यहां तक कि बेटियों की शादी में भी गाय देने की रीत है.
1 अप्रैल, 2017 गोतस्करी के आरोप में मेवात के मुस्लिम पशुपालक पहलू खान की पीट पीटकर हत्या कर दी गई. 12 नवंबर 2017 को मेवात के डेयरी किसान उमर मोहम्मद की संदेहास्पद परिस्थितियों में हत्या कर दी गई.
6 दिसंबर 2017 को मेवात के गोव्यापारी तालिम हुसैन की मौत पुलिसिया कार्रवाई में हो गई. पुलिस ने इसे मुठभेड़ करार दिया जबकि सामाजिक संगठन इसे पुलिस की एकतरफा कार्रवाई बताते रहे. 21 जुलाई 2018 को मेवात के ही रहने वाले गोपालक अकबर खान की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई.
ये सारे लोग अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन इनमें कई समानताएं थीं. ये सभी मुसलमान थे. ये आर्थिक रूप से कमजोर थे और सभी उस मेवात इलाके के बाशिंदे थे, जहां हर गांव में पांच सौ से-हजार गाएं मिल जाएंगी.
यहां की आबादी में मेव मुसलमानों की अधिकता है. ज्यादातर लोग खेती किसानी के काम से जुड़े हुए हैं. मेव मुसलमान गुड़गांव से लेकर मेवात, अलवर और भरतपुर तक फैले हुए हैं. हालांकि मेवात में इनकी संख्या सबसे ज्यादा है. इनकी कुल आबादी 35 से 40 लाख के बीच में है.
राष्ट्रीय राजधानी से महज चंद मील दूर का यह इलाका गोकशी, पशु तस्करी, वाहन चोरी जैसे अपराधों लिए बदनाम रहा है. यहां आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक और विकास की दशा बहुत खराब रही है.
नीति आयोग ने हाल ही में देश के सौ पिछड़े इलाकों की सूची में मेवात को पहला स्थान दिया था. आयोग ने शिक्षा, स्वास्थ्य व पोषण जैसे पांच क्षेत्रों के विकास के 49 मानकों पर देश के 101 पिछड़े जिलों की रैंकिंग की, जिसमें यह तथ्य सामने आया था.
मेव मुसलमानों को लेकर हाल ही में राजस्थान के कई नेताओं ने विवादास्पद बयान भी दिए. राजस्थान के श्रम मंत्री जसवंत यादव ने जयपुर में संवाददाताओं से कहा, ‘मुस्लिम और मेव समुदाय के लोगों को गायों का गोरखधंधा बंद कर हिंदुओं की भावनाओं को समझना चाहिए ताकि देश में सद्भावना बनी रहे.’
उन्होंने कहा कि हिंदुओं की भावनाएं गाय से जुड़ी हुई हैं इसलिए आए दिन गाय के नाम पर हमले हो रहे है. यादव ने कहा कि 50 गायें एक ट्रक में ठूंस दी जाती हैं और उनके मुंह में तेजाब डाला जाता है, जिससे हिंदुओं का खून खौलता है, इसलिए मुस्लिम समाज को हिंदुओं की भावनाएं और गाय के प्रति आस्था का सम्मान करना चाहिए.
वहीं अलवर (शहर) से भाजपा विधायक बनवारी लाल सिंघल ने प्रदेश के अलवर और भरतपुर तथा हरियाणा के कुछ हिस्से में फैले मेवात क्षेत्र में अपराध के लिए मेव समाज को जिम्मेदार ठहराया है.
अब यहां के छपने वाले स्थानीय अखबारों पर नजर डाल लेते हैं. औसतन हर दिन गुड़गांव, मेवात, अलवर आदि में गोतस्करों, गाय के व्यापारियों और गोरक्षकों व पुलिस से संबंधित खबरें होती हैं. इसका कारण यह भी हो सकता है कि अरावली पहाड़ी से घिरे इस क्षेत्र के जंगलों में अक्सर गायों का झुंड लेकर उन्हें चराते हुए कोई न कोई मुस्लिम मिल जाता है.
गाय और मुसलमान का यह कॉम्बिनेशन आपको चौंकाएगा. केंद्र में भाजपा सरकार के आने के बाद यह कॉम्बिनेशन सबको चौंका रहा है, लेकिन मेव मुसलमानों को जानने वाले इसे सामान्य मानते हैं.
इस इलाके में घूमते हुए सामाजिक कार्यकर्ता खुर्शीद अहमद से मुलाकात हुई. वह मेव मुसलमानों के बारे में बताते हैं, ‘यहां हर गांव में गोपालक हैं. दो-तीन गाय पालने वाले परिवारों की संख्या हजारों में होगी. हम कोलगांव में हैं, यहां के बगल के नगीना, झिमरावट, चादन, पाटखोरी आदि गांवों में कई ऐसे मेव मुसलमान हैं जो 500 से हजार गायें पालते हैं. बेटियों की शादी में गाय देने की प्रथा है. बेटी को अगर बेटा पैदा होता है तो उसके मायके से ससुराल को गाय भेजी जाती है.’
वे आगे बताते हैं, ‘मेव धार्मिक रूप से मुसलमान हैं लेकिन सांस्कृतिक रूप से हिंदू हैं. जहां दूसरे मुसलमानों में परिवार में शादियां होती हैं और रिश्तेदारी में होने वाली शादियों को बेहतर माना जाता है. वहीं, मेवों में गोत्र के बाहर शादी करने का चलन है. पश्चिमी यूपी और हरियाणा, राजस्थान की दूसरी हिंदू जातियों की तरह यहां शादी करते समय गोत्र का खास ध्यान रखा जाता है. यहां इन्हीं की तरह की पंचायतें भी होती हैं. माना जाता है कि ज्यादातर मेवों का धर्म परिवर्तन हुआ है. आज भी बड़ी संख्या में शंकर खान जैसे हिंदू नामों के साथ मेव मुसलमान मिल जाएंगे.’
मेवों के धर्म परिवर्तन की बात से यहां के ज्यादातर लोग सहमत दिखते हैं. मेवात के इतिहास पर करीब दस किताबें लिख चुके इतिहासकार सिद्दीक अहमद मेव कहते हैं, ‘पहला कन्वर्जन मोहम्मद बिन कासिम के वक्त सन 712 में हुआ. दूसरा कन्वर्जन 1053 में सैय्यद सालार मसूद गाजी (महमूद गजनवी के भांजे) के वक्त और तीसरा वर्ष 1192-93 में हुआ. अहमद बताते हैं कि 1358 में फिरोजशाह तुगलक के शासन में भी यहां एक कन्वर्जन हुआ था.’
मेव मुसलमानों का इतिहास काफी गौरवान्वित करने वाला रहा है. इतिहास में उन्होंने कई लड़ाइयां लड़ी हैं. जानकार बताते हैं कि मेवात के राजा हसन खान मेवाती ने मुगल शासक बाबर से युद्ध लड़ा था. उन्होंने पहली लड़ाई अप्रैल 1526 में इब्राहिम लोधी के साथ पानीपत में लड़ी. उसके बाद मार्च 1527 में वह राणा सांगा के साथ खानवा के युद्ध में बाबर से लड़े और शहीद हो गए.’
1857 के स्वतंत्रता संग्राम में भी मेव मुसलमानों ने अपनी बहादुरी का परिचय दिया है. ‘1857 इतिहास, कला, साहित्य’ नामक किताब में ‘हरियाणा में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम’ शीर्षक से लिखे अपने लेख में इतिहासकार सूरजभान ने मेवों की भूमिका पर विस्तार से चर्चा की है.
उन्होंने लिखा है,
‘हरियाणा क्षेत्र में कंपनी राज के खिलाफ बगावत की पहली चिंगारी 11 मई 1857 को गुड़गांव पर कब्जा कर लिए जाने से शुरू हुई. गुड़गांव जिले का पहाड़ी भाग जो उत्तर में दिल्ली और दक्षिण में अलवर और भरतपुर तक फैला है, मेवात कहलाता है. उस समय सदरूद्दीन नामक एक मेव किसान ने बागी सेना, किसानों व कारीगरों को नेतृत्व प्रदान किया था… मेवात के बागी इतने शक्तिशाली हो गए थे कि जयपुर की कछवाहा रियासत के रेजीडेंट मेजर एडन को 6,000 सैनिकों और 7 तोपों को लेकर मेवात को काबू करने के लिए आना पड़ा था लेकिन उसे इतने बागी गांवों से जूझना पड़ा कि वो लौट गया…
दिल्ली पर 13 सितंबर के बाद अंग्रेजी सेना का कब्जा हो जाने पर भी मेवात के शूरवीर दिल्ली के हालात से बेखबर आजादी का परचम उठाए दो महीने तक अंग्रेजी सेना के मशहूर जनरल शावर का मुकाबला करते रहे… इस दौरान बड़ी संख्या में मेवों को पेड़ों से लटकाकर फांसी दे दी गई… नूंह अडवर और शाहपुर नंगली के 52 मेव चौधरियों को बरगद के पेड़ पर लटकाकर फांसी दी गई…
रूपकाडा की लड़ाई के बारे में एक अंग्रेज फौजी अफसर लिखता है कि हमने इस लड़ाई में 350-400 आदमी मार डाले और अपने फौजी दस्ते की मदद से पचानका, गोहपुर, चिल्ली, रूपडाका, मालपुरी, कोट, कुटावड़, मिठाका, खलूका, गुडकसर व झोडा जला दिए हैं. मेवों के गांव ही नहीं उनकी संपत्ति को भी बर्बाद कर दिया गया है… अंग्रेजी सेना की बर्बरता और भारी तोपों, गोला बारूद और सैनिक शक्ति के बावजूद मेवात के वीरों ने हार नहीं मानी. वे बार बार सदरूद्दीन के नेतृत्व में संगठित होते रहते थे और अपने देश की रक्षा के लिए आखिरी दम तक लड़ते रहते थे.’
मेवात के इलाके में घूमते हुए आपको कई लोग महात्मा गांधी से जुड़ा दिलचस्प किस्सा सुनाते हैं. वो कहते हैं कि बंटवारे के समय इस इलाके में बड़ी संख्या में मेव मुसलमान गांधी जी से आश्वासन मिलने के बाद यहां रुके थे.
खुर्शीद भी कहते हैं, ‘गांधी जी व मेव नेता यासीन खान के अथक प्रयासों के चलते मेवों का पलायन नहीं हुआ था. आजादी के बाद मेवातियों के साथ हो रहे अत्याचार और जबरदस्ती पाकिस्तान भेजने के मामले को लेकर यासीन खान अन्य मुस्लिम नेताओं के साथ महात्मा गांधी से मिले और उन्हें मेवात आने का न्योता दिया था. मेवातियों के देश प्रेम को देखते हुए महात्मा गांधी 19 दिसंबर 1947 को नूंह के नजदीक स्थित गांव घासेड़ा पहुंचे थे और मेव मुसलमानों को सुरक्षा का आश्वासन दिया था.’
अमर उजाला की एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘इतिहासकार सद्दीक अहमद मेव ने बताया कि महात्मा गांधी ने घासेड़ा में लाखों मेवातियों लोगों के बीच अपना ऐतिहासिक भाषण दिया था. उस समय गांधी जी ने कहा था कि आज मेरे कहने में वह शक्ति नहीं रही जो पहले हुआ करती थी. अगर मेरे कहने में पहले जैसा प्रभाव होता तो आज देश का एक भी मुसलमान भारतीय संघ को छोड़कर जाने की जरूरत महसूस नहीं करता. न ही किसी हिंदू-सिख को पाकिस्तान में अपना घर-बार छोड़कर भारतीय संघ में शरण लेने की जरूरत पड़ती.
उन्होंने बताया महात्मा गांधी ने अपने संबोधन में दुख प्रकट करते हुए कहा था कि यहां जो कुछ हो रहा है उसे सुनकर मेरा दिल रंज से भर जाता है. चारों ओर आगजनी, लूटपाट, कत्लेआम, जबरदस्ती धर्म परिवर्तन और औरतों का अपहरण मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारों को तोड़ना एक पागलपन है, इसे रोका नहीं गया तो दोनों जातियों का सर्वनाश हो जाएगा.
सद्दीक मेव के अनुसार इस मौके पर गांधी जी ने अपने भाषण में मुस्लिम प्रतिनिधियों द्वारा दिए गए शिकायत पत्र की प्रति लाखों लोगों को पढ़कर सुनाई और उन्होंने मेवातियों को विश्वास दिलाया कि उन्हें पूरा मान सम्मान दिलाया जाएगा. अगर किसी सरकारी अधिकारी ने मेवातियों के साथ कोई अत्याचार किया तो सरकार उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगी.’
जानकार बताते हैं कि यही कारण रहा है कि मेव मुसलमान लंबे समय से कांग्रेस के साथ जुड़े रहे थे. अब भी ज्यादातर मेव कांग्रेस को ही वोट करते हैं. हालांकि भाजपा और संघ ने इसमें सेंध लगाने की पूरी कोशिश की है.
हरियाणा में भाजपा सरकार आने के बाद आरएसएस की विचारधारा पर चलने वाले मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने सितंबर 2015 में यहां मुस्लिम गोपालकों का राष्ट्रीय सम्मेलन करवाया था, जिसमें देश भर से लोग आए थे और उन्हें सम्मानित किया गया था.
मेवात के मुस्लिमों ने कार्यक्रम में शिरकत करने आए मुख्यमंत्री मनोहर लाल और आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार को गाय भी भेंट की थी. हालांकि इसके बाद से रिश्ते कितने सामान्य हुए यह अलग सवाल हैं लेकिन अभी मेव मुसलमानों के साथ दिक्कत यह है कि उनकी धार्मिक पहचान के सवाल को संबोधित करते हुए उनके आर्थिक स्थिति को सुधारने की बात करने वाला कोई नेता नहीं है.
कोलगांव के रहने वाले हकीम ख़ान कहते हैं, ‘मेव समाज के लोग अपने इतिहास और संस्कृति को लेकर गौरवान्वित होते रहते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि वर्तमान में उनकी स्थिति बहुत बुरी है औैर भविष्य में भी इसके ठीक होने के आसार नहीं दिखते हैं. पढ़ाई-लिखाई और रोजगार की बेहतर स्थिति न होने के कारण यह पूरा समाज राजनीतिक दलों का पिछलग्गू बन गया है. कभी कांग्रेस ने इसका पूरा फायदा उठाया. अब भाजपा की सरकार है वह इस समाज के लोगों का अपने हिसाब से दोहन कर रही है.’
वे आगे कहते हैं, ‘इस समाज के लोगों के ताकतवर न होने के चलते इनके अच्छे कामों को भी न तो लोग तवज्जो देते हैं और न ही ये बातें मीडिया की खबर बनती हैं. जैसे कि पूरे हरियाणा और राजस्थान के उन इलाकों में महिलाओं का लिंगानुपात बेहतर है जहां पर मेव मुसलमानों की संख्या ज्यादा है. लेकिन मेव मुसलमानों को गोतस्कर बताने वाले उन्हें बेटी रक्षक नहीं बताते हैं. अब गोतस्करी को ही लेकर कुछ महीने पहले मेवात इलाके के उलेमाओं, मौलानाओं और पंच-सरपंचों ने पुन्हाना क्षेत्र के गांव जखोकर में एक पंचायत कर गोतस्करों और उनका समर्थन करने वालों पर 21 हजार का जुर्माना लगाने की घोषणा की थी. यही नहीं जुर्म साबित होने पर आरोपी का हुक्का-पानी बंद कर सभी रिश्ते खत्म करने की भी धमकी दी है. लेकिन यह किसी को पता नहीं है.’
मेव मुसलमानों को छवि क्यों खराब की जा रही है? क्या अपनी छवि को बचाने के लिए मेव समाज कुछ कर रहा है?
यह सवाल जब मेव पंचायत के संरक्षक शेर मोहम्मद से किया तो वे कहते हैं, ‘मेवों को सिर्फ राजनीतिक मकसद से बदनाम किया जा रहा है. राजस्थान में जल्द ही चुनाव होने वाले हैं इसलिए कुछ लोग हिंदू-मुस्लिम करना चाहते हैं. हम अपने समाज को बचाने के लिए लगातार कदम उठा रहे हैं. अभी हमने अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और मेवों को मिलाकर एक संगठन बनाया है जो जगह-जगह जाकर लोगों को इस गंदी राजनीति से दूर रखने की कोशिश कर रहा है.’
शेर मोहम्मद कहते है, ‘हर मेव के घर में गाय है. लेकिन आज के हालात में न तो वो बेच सकता है और न ही उसे दवा करवाने ले जा सकता है. सरकार ये नियम बना दे कि मुसलमान गाय पाल ही नहीं सकता, लेकिन वो ऐसा कर नहीं सकती, इसलिए अच्छा ये होगा कि ऐसी घटनाओं पर रोक लगाई जाए.’
वे आगे कहते हैं, ‘बात जहां तक गोतस्करों की है तो मेरे ख्याल से उन्हें गाय चोर कहना ज्यादा बेहतर होगा. इस पूरे इलाके में 200 से 300 गाय चोर सक्रिय होंगे लेकिन उनके चलते 40 लाख मेवों की छवि खराब हो रही है. हम एनकाउंटर के खिलाफ हैं, कोई गोतस्करी कर रहा है तो सरकार उसे पकड़े और जितने साल की सजा का प्रावधान है उतने साल तक जेल में रखे. लेकिन बेगुनाह लोगों को निशाना न बनाया जाए.’
फिलहाल इन सबसे अलग कुछ जानकार हिंदुत्ववादी संगठनों द्वारा मेव मुसलमानों को निशाना बनाए जाने का कारण तब्लीग़ी जमात को बताते हैं. बता दें कि भौगोलिक विस्तार और कार्यकर्ताओं की संख्या के नजरिए से तब्लीग़ी जमात एक बड़ा इस्लामिक आंदोलन है. तब्लीग़ की दुनिया में मेवात को इस आंदोलन की सबसे सफल प्रायोगिक जमीन के रूप में देखा जाता है.
मुस्लिम उलेमाओं द्वारा पारंपरिक तौर पर मेव समुदाय को ऐसी जमात के रूप में देखा जाता था, जिनकी इस्लाम के प्रति आस्था उतनी गहरी नहीं थी. पिछले तीन चार दशकों के तब्लीग़ी प्रयासों के बाद इसमें काफी बदलाव आ चुका है और कई उलेमाओं का भी कहना है कि इस्लामिक सिद्धांतों के प्रति उनके नजरिए में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं.
हालांकि इन सबसे अलग मेवात की पहचान संगीत की दुनिया में अलग कारणों से है. मेवाती घराना हिंदुस्तानी संगीत के प्रसिद्ध घरानों में से एक है. इस घराने की नींव घग्गे नज़ीर खान ने डाली थी.
इस घराने की गायकी में वैष्णव भक्ति का प्रभाव भी सुनने को मिलता है. इस घराने के गायक आम तौर पर अपनी गायकी खत्म करने से पहले एक भजन जरूर सुनाते हैं. विश्वविख्यात कलाकार पंडित जसराज इस घराने के मौजूदा प्रतिनिधि कलाकार हैं. नए कलाकारों में पंडित संजीव अभ्यंकर का नाम भी बड़े अदब से लिया जाता है.
फिलहाल मेव मुसलमान अभी दोहरी चुनौती का सामना कर रहे हैं. उनकी सामाजिक, शैक्षणिक एवं आर्थिक स्थिति तो खराब है. उनके सामाजिक ताने-बाने को समय-समय पर कमजोर और शांति-सद्भाव को भंग करने की कोशिशें भी जारी हैं.