30 जुलाई को जारी होने वाले एनआरसी के फाइनल ड्राफ्ट को लेकर सरकार का आश्वासन, मिलेंगे नागरिकता साबित करने के पर्याप्त अवसर. इस हफ्ते नॉर्थ ईस्ट डायरी में असम, त्रिपुरा, मणिपुर, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश के प्रमुख समाचार.
गुवाहाटी: असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के दूसरे एवं अंतिम मसौदा को जारी करने की तैयारी हो चुकी है और इसे सोमवार 30 जुलाई को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच जारी कर दिया जायेगा.
एनआरसी के राज्य समन्वयक प्रतीक हाजेला ने कहा कि मसौदे को समूचे राज्य के सभी एनआरसी सेवा केंद्रों (एनएसके) में सोमवार दोपहर तक प्रकाशित कर दिया जायेगा और आवेदक अपने नामों को सूची में देख सकते हैं. इसमें आवेदकों का नाम, पता और तस्वीर शामिल होगा.
एनआरसी में उन सभी भारतीय नागरिकों के नामों को शामिल किया जायेगा जो 25 मार्च, 1971 से पहले से असम में रह रहे हैं.
पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बहरहाल, सुरक्षा कानून एवं व्यवस्था को बनाये रखने के लिये समूचे राज्य में सुरक्षा बढ़ा दी गयी है. जिला उपायुक्तों एवं पुलिस अधीक्षकों को कड़ी सतर्कता बरतने के लिये कहा गया हैं.
पुलिस अधीक्षक अपने-अपने संबंधित जिलों में संवेदनशील इलाकों की पहचान कर रहे हैं और किसी भी अप्रिय घटना खासकर अफवाह से होने वाली घटनाओं को रोकने के लिये स्थिति पर बेहद सावधानी से निगरानी बरती जा रही है.
असम एवं पड़ोसी राज्यों में सुरक्षा चुस्त-दुरुस्त रखने के लिये केंद्र ने केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल की 220 कंपनियों को भेजा है.
असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने एनआरसी मसौदा जारी होने के मद्देनजर हाल में उच्च स्तरीय बैठक की और अधिकारियों को सतर्क रहने तथा मसौदे में जिन लोगों के नाम नहीं होंगे उनके दावों एवं आपत्तियों की प्रक्रिया की व्याख्या एवं मदद के लिये कहा है.
मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे एनआरसी मसौदा सूची पर आधारित किसी मामले को विदेश न्यायाधिकरण को नहीं भेजें.
हाजेला ने कहा कि मसौदा में जिनके नाम उपलब्ध नहीं होंगे उनके दावों की पर्याप्त गुंजाइश होगी. उन्होंने कहा, ‘अगर वास्तविक नागरिकों के नाम दस्तावेज में मौजूद नहीं हों तो वे घबरायें नहीं. बल्कि उन्हें (महिला/पुरुष) संबंधित सेवा केंद्रों में निर्दिष्ट फॉर्म को भरना होगा. ये फॉर्म सात अगस्त से 28 सितंबर के बीच उपलब्ध होंगे और अधिकारियों को उन्हें इसका कारण बताना होगा कि मसौदा में उनके नाम क्यों छूटे.’
इसके बाद अगले कदम के तहत उन्हें अपने दावे को दर्ज कराने के लिये अन्य निर्दिष्ट फॉर्म भरना होगा, जो 30 अगस्त से 28 सितंबर तक उपलब्ध रहेगा.
आवेदक अपने नामों को निर्दिष्ट एनआरसी सेवा केंद्र जाकर 30 जुलाई से 28 सितंबर तक सभी कामकाजी दिनों में सुबह 10 बजे से शाम चार बजे तक देख सकते हैं.
एनआरसी के बाद किसी के अधिकार या विशेषाधिकार कम नहीं होंगे- वित्त मंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा
असम सरकार में वरिष्ठ मंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने भी शुकवार को कहा कि 30 जुलाई को प्रकाशित होने वाले एनआरसी के अंतिम मसौदे में यदि किसी का नाम नहीं आता है तो उसके अधिकार और विशेषाधिकारों को कम नहीं किया जाएगा.
शर्मा ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘मसौदा तो मसौदा होता है. मसौदा एनआरसी के आधार पर किसी के अधिकार और विशेषाधिकार नहीं कम होंगे न ही किसी को किसी डिटेंशन शिविर में नहीं भेजा जाएगा.’
असम के वित्त मंत्री शर्मा ने कहा कि अंतिम मसौदे के प्रकाशन के बाद दावों, आपत्तियों और सुधार की प्रक्रिया होगी और लोग इन सेवाओं का लाभ उठा सकेंगे. इससे पहले असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने भी कहा था कि अगर किसी का नाम अंतिम मसौदे में नहीं आता है तो उसे विदेशी नहीं माना जाएगा.
उच्चस्तरीय सुरक्षा समीक्षा बैठक कीअध्यक्षता करते हुए उन्होंने अधिकारियों से दावों और आपत्तियों के बारे में उन लोगों को जानकारी देने को कहा जिनके नाम एनआरसी में मौजूद नहीं हैं.
बैठक में मौजूद एक अधिकारी ने सोनोवाल के हवाले से कहा, ‘अगर किसी का नाम पूरे मसौदे में नहीं है तो उसे विदेशी नहीं माना जाएगा. एनआरसी के प्रकाशन के बाद लोगों को दावों और आपत्तियों की प्रक्रिया के बारे में स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए.’
इसके पहले केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह गृह मंत्री राजनाथ सिंह भी कह चुके हैं कि एनआरसी जारी होने के बाद प्रभावित लोगों को अपने दावे और आपत्तियां दर्ज कराने के लिए पर्याप्त मौका मिलेगा और ‘चिंता की कोई बात नहीं है.’
नई दिल्ली में हुए एक कार्यक्रम में सिंह ने कहा, ‘किसी को भी उसे (एनआरसी मसौदा के जारी होने) लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं है. लोगों को अपने दावे और आपत्तियां दर्ज करने के लिए पर्याप्त समय मिलेगा और यदि कोई संतुष्ट नहीं है तो वह विदेशी न्यायाधिकरण से भी सम्पर्क कर सकता है.’
इसके पहले गृह मंत्रालय ने असम सरकार से उन लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने को कहा जिनका नाम राज्य के नागरिकों की सूची में नहीं आया है.
25 जुलाई को जारी एक परामर्श में मंत्रालय द्वारा कहा गया, ‘ड्राफ्ट एनआरसी में जिन लोगों का नाम नहीं आया है उनका नाम विदेशी न्यायाधिकरण में भेजने का सवाल नहीं उठता क्योंकि लोगों को दावे और आपत्ति दाखिल करने का अधिकार है और अंतिम प्रकाशन के पहले उन्हें अवसर दिया जाना है.’
गृह मंत्रालय ने कहा कि राज्य की एजेंसियों, नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरसी) प्राधिकार और केंद्रीय एजेंसी के बीच तालमेल बनाने के लिए असम सरकार को मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक राज्य स्तरीय समन्वय समिति बनाने की सलाह दी गयी है.
इसमें कहा गया है, ‘शिकायतें लेने के लिए राज्य की राजधानी और जिला मुख्यालयों में 24 घंटे चलने वाला नियंत्रण कक्ष काम करेगा और तुरंत समन्वय बनाया जाएगा.’
ड्राफ्ट एनआरसी के बारे में लोगों तक सूचना पहुंचाने के लिए भारत के महापंजीयक (आरजीआई) को वेबसाइट, टोल फ्री नंबर, एसएमएस आदि सहित संचार के सभी रूपों का इस्तेमाल करने को कहा गया है. मंत्रालय ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि एनआरसी की कवायद के आधार पर किसी व्यक्ति को हिरासत केंद्र भेजने का सवाल भी नहीं उठता.
इस बीच 30 जुलाई को एनआरसी के अंतिम मसौदे के प्रकाशन के बाद अवैध प्रवासियों की संभावित घुसपैठ रोकने के लिए कई पड़ोसी राज्यों ने अपने पुलिस बलों को अलर्ट पर रखा है.
बांग्लादेश की सीमा से लगे असम में अवैध प्रवासियों की पहचान के लिए एनआरसी में बदलाव किये जा रहे हैं. असम देश में एनआरसी रखने वाला एकमात्र राज्य है जिसे सबसे पहले 1951 में तैयार किया गया था. राज्य की सीमाएं मेघालय, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और मणिपुर से लगती हैं.
अरुणाचल प्रदेश सरकार ने पुलिस विभाग से सभी प्रवेश बिंदुओं पर निगरानी रखने को कहा है, वहीं मेघालय पुलिस ने असम के साथ अंतरराज्यीय सीमा पर सतर्कता बढ़ा दी है. दोनों राज्यों के अधिकारियों ने यह जानकारी दी.
एनआरसी का पहला मसौदा 31 दिसंबर और एक जनवरी की दरमियानी रात को प्रकाशित किया गया था. इसमें कुल 3.29 करोड़ आवेदकों में से 1.9 करोड़ नाम प्रकाशित किये गये.
नगालैंड सरकार एहतियात के तौर पर असम सीमा पर अतिरिक्त बल तैनात कर रही है. हालांकि मिजोरम सरकार एनआरसी के अंतिम मसौदे के प्रकाशन के कारण राज्य में कानून व्यवस्था को लेकर स्थिति बिगड़ने का पूर्वानुमान नहीं जता रही.
गृह मंत्रालय ने असम सरकार से यह भी कहा है कि एनआरसी में जिन लोगों के नाम नहीं हैं , उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाए. मालूम ही कि एनआरसी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में अपडेट किया जा रहा है.
पडोसी राज्यों ने सीमा पर तैनात किए अतिरिक्त बल
कोहिमा: नगालैंड सरकार 30 जुलाई को एनआरसी का अंतिम मसौदा प्रकाशित होने के बाद अवैध शरणार्थियों के आने की आशंका के मद्देनजर एहतियात के तौर पर असम की सीमा पर अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती कर रही है.
आधिकारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी है. राज्य सरकार ने एक बुलेटिन जारी किया जिसके अनुसार राज्य सरकार ने पीट-पीट कर मारने की घटनाओं को रोकने के लिए प्रत्येक जिले में विशेष कार्य बल ( एसटीएफ) का गठन करने का निर्णय किया है.
नगालैंड के मुख्य सचिव तेमजेन टॉय की अध्यक्षता में कल गृह तथा पुलिस विभाग की बैठक हुई जिसमें एहतियादी कदम उठाने पर चर्चा हुई. इसमें कहा गया है कि राज्य पुलिस नगालैंड-असम सीमा पर भारतीय रिजर्व बटालियन की टुकड़ियों सहित अतिरिक्त बलों की तैनाती कर रही है.
बुलेटिन में कहा गया है कि राज्य सरकार गांव की परिषदों को सतर्क रहने और अवैध शरणार्थियों को घुसने नहीं देने के साथ ही उन्हें किसी भी तरह का रोजगार नहीं देने के लिए पत्र लिख रही है.
केंद्र ने 22,000 सीएपीएफ कर्मियों को रवाना किया
नई दिल्ली: एनआरसी प्रकाशन के मद्देनजर केंद्र ने असम और पास के राज्यों में सुरक्षा बढ़ाने के लिए केंद्रीय अर्द्धसैन्य बल के 22,000 जवानों को रवाना किया है. अधिकारियों ने बताया कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने निर्देश दिया है कि इन टुकड़ियों की तैनाती तुरंत संवेदनशील इलाके में की जाएगी.
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘एनआरसी को ध्यान में रखते हुए राज्य में केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) की कुल 220 कंपनियां भेजी जा रही है.’
सुरक्षा बलों के बीच सबसे बड़ी टुकड़ी सीआरपीएफ (53 कंपनियां) की है. इसके बाद सशस्त्र सीमा बल (41), बीएसएफ (40), आईटीबीपी (27), सीआईएसएफ (20) और रेलवे सुरक्षा बल (पांच) की टुकड़ी है. राज्य के भीतर कानून-व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने में सीएपीएफ की करीब 105 कंपनियों का भी इस्तेमाल किया जा रहा. अर्द्धसैन्य बल की एक कंपनी में 100 कर्मी होते हैं.
एनआरसी प्रक्रिया में नहीं किया जा रहा भेदभाव: रिजिजू
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने मंगलवार को कहा कि उच्चतम न्यायालय के आदेशानुसार और उसकी निगरानी में असम में एनआरसी का मसौदा तैयार किया जा रहा है और इस प्रक्रिया में किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जा रहा है.
गृह राज्यमंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान यह बात कही. उन्होंने यह भी कहा कि पहली बार एनआरसी के मसौदे का प्रकाशन उच्चतम न्यायालय की निगरानी में हुआ.
रिजिजू ने कांग्रेस सदस्य संजय सिंह के इस आरोप को सिरे से खारिज कर दिया कि पूर्वोत्तर राज्य में गैर असमी लोगों के खिलाफ भेदभाव हो रहा है और लोगों को अवैध तरीके से हिरासत में लिया जा रहा है.
गृह राज्य मंत्री ने कहा कि सरकार उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देशों का पूरी तरह पालन कर रही है.
इससे पहले, कांग्रेस के संजय सिंह ने यह मुद्दा उठाते हुए आरोप लगाया था कि एनआरसी तैयार किया जा रहा है लेकिन इसकी जो प्रक्रिया है उसे देख कर संदेह होता है.
उन्होंने आरोप लगाया कि एनआरसी तैयार करते समय कई लोगों के नाम छोड़ दिए गए और करीब सवा लाख मतदाताओं को संदिग्ध ‘डी वोटर’ की श्रेणी में रखा गया है. इन लोगों को हिरासत में भी ले लिया जाता है.
एनआरसी में शामिल नहीं करने का मतलब विदेशी घोषित करना नहीं: गृह मंत्रालय
नई दिल्ली: गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने सोमवार को कहा कि जो लोग एनआरसी के मसौदे का हिस्सा नहीं हैं, वे अपने आप ही विदेशी घोषित नहीं हो जाएंगे. वैसे लोगों को अपना दावा पेश करने और आपत्ति दर्ज कराने के लिए एक महीने का समय मिलेगा.
इसके अलावा उनके लिए न्यायिक रास्ते भी खुले होंगे. एनआरसी असम के बाशिंदों की सूची है.
अधिकारी ने बताया कि सभी दावों और आपत्तियों की उपयुक्त पड़ताल की जाएगी. एनआरसी अधिकारियों को एक महीने का समय दिया जाएगा, जिस दौरान सभी आपत्तियों और शिकायतों की उपयुक्त सुनवाई के बाद पड़ताल की जाएगी.
अंतिम एनआरसी से नाम हटाने का मतलब यह नहीं है कि कोई भी व्यक्ति स्वत: ही विदेशी घोषित हो गया है. अंतिम दस्तावेज प्रकाशित होने के बाद यदि कोई असंतुष्ट होगा तो वह न्याय पाने के लिए हमेशा ही राज्य में विदेशी नागरिक अधिकरण का रूख कर सकता है.
असम में करीब 300 विदेशी नागरिक प्राधिकरण हैं. गृह मंत्री राजनाथ सिंह भी कई बार कह चुके हैं कि नागरिकों को दहशत में आने की कोई जरूरत नहीं है और सभी वास्तविक भारतीयों को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए पर्याप्त अवसर दिया जाएगा.
उन्होंने यह भी कहा था कि एनआरसी को असम समझौते के अनुरूप अपडेट किया जा रहा है. इस पर 15 अगस्त 1985 को हस्ताक्षर किया गया था. साथ ही, उच्चतम न्यायालय के निर्देश के मुताबिक प्रक्रिया की जा रही है. शीर्ष न्यायालय इसकी लगातार निगरानी कर रहा है.
उन्होंने कहा कि असम सरकार से यह सुनिश्चित करने को कहा गया है कि कानून-व्यवस्था बनी रहे और किसी को कानून अपने हाथ में नहीं लेने दिया जाए और सभी की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव उपाय किए जाएं.
एनआरसी के मसौदे का एक हिस्सा 31 दिसंबर और एक जनवरी की दरमियानी रात प्रकाशित किया गया था. इसमें 3. 29 करोड़ आवेदकों में 1.9 करोड़ के नाम शामिल किए गए थे. अब 30 जुलाई को सभी 3. 29 करोड़ आवेदकों के भविष्य का फैसला होगा.
व्यापक स्तर पर किए जा रहे इस कार्य का उद्देश्य बांग्लादेश से लगे इस राज्य में अवैध प्रवासियों का पता लगाना है. केंद्र , राज्य सरकार और ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (आसू) के बीच हुई सिलसिलेवार बैठकों के बाद इस सिलसिले में 2005 में एक फैसला लिया गया था.
बांग्लादेश से सटे असम में अवैध प्रवासियों की पहचान के मकसद से एनआरसी के प्रकाशन की कवायद की जा रही है. केंद्र एवं राज्य सरकारों एवं ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) के बीच हुई बैठकों के बाद 2005 में कांग्रेस सरकार के दौरान लिए गए एक फैसले के बाद एनआरसी के प्रकाशन की कवायद की जा रही है.
20 वीं सदी की शुरुआत से ही बांग्लादेश से लोगों के असम में आने का सिलसिला चलता रहा है. असम भारत का एकमात्र राज्य है जहां एनआरसी की व्यवस्था है. पहला एनआरसी 1951 में तैयार किया गया था. साल 1951 में जब पहली बार एनआरसी तैयार किया गया था, उस वक्त असम में 80 लाख नागरिक थे.
असम में अवैध प्रवासियों की पहचान की मांग को लेकर आसू ने 1979 में छह साल तक आंदोलन किया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की मौजूदगी में 15 अगस्त 1985 को असम समझौते पर दस्तखत के साथ यह आंदोलन खत्म हुआ था.
असम में 1951 में जब पहली बार एनआरसी तैयार किया जा रहा था तब राज्य में 80 लाख नागरिक थे. असम में अवैध प्रवासियों की पहचान का विषय राज्य की राजनीति में एक विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है.
एनआरसी को बेपटरी करने का प्रयास कर रहीं सांप्रदायिक ताकतें डॉ. गोहेन
गुवाहाटी: जानेमाने बुद्धिजीवी डॉ. हिरेन गोहेन ने मंगलवार को दावा किया कि हिंदू और मुस्लिम दोनों ही सांप्रदायिक ताकतें उकसाने वाले बयान देकर एनआरसी की प्रक्रिया को विफल करने की कोशिश कर रही हैं.
गोहेन फोरम अगेंस्ट सिटीजनशिप एक्ट अमेंडमेंट बिल के अध्यक्ष भी हैं. उन्होंने सरकार से अनुरोध किया है कि एनआरसी में जिन लोगों का नाम शामिल नहीं है उनके भविष्य क्या होगा यह देखने के लिए और किसी भी मानवीय मुद्दे से बचने के लिए वह एक स्वतंत्र आयोग का गठन करे.
उन्होंने कहा कि एनआरसी खराब या सांप्रदायिक चीज नहीं है, लेकिन एक वर्ग है जो इसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश कर रहा है.
फोरम ने चिंता जताई कि कुछ अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन ऐसे हैं जो एनआरसी की कवायद को बंगाली भाषी मुस्लिमों के जातीय सफाए की शुरुआत बता रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘ऐसे उकसावे वाले बयान देकर वह एनआरसी को रोक नहीं सकते हैं.’
त्रिपुरा: वामपंथी सरकार के 25 साल के शासन में भीड़ द्वारा हत्या की कोई घटना नहीं हुई- माणिक सरकार
नई दिल्ली: त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री माणिक सरकार ने दावा किया कि वामपंथी मोर्चे के 25 साल के शासन में राज्य में भीड़ द्वारा पीट-पीट कर हत्या की कोई घटना नहीं हुई थी.
उन्होंने कहा कि इस तरह की घटनाएं तब होती हैं जब सरकार अपने वादों को पूरा करने में विफल होती है और लोगों का ध्यान इससे इतर कहीं ओर भटकाना चाहती है.
पूर्व मुख्यमंत्री हाल ही में पांच वामपंथी पार्टियों की ओर से आयोजित एक विरोध प्रदर्शन ‘मर्डर ऑफ डेमोक्रेसी’ (लोकतंत्र की हत्या) में शामिल होने दिल्ली आए थे. यह प्रदर्शन त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में कथित तौर पर लोकतंत्र की हत्या और पीट-पीट कर हत्या की घटनाओं के विरोध में आयोजित किया गया था.
सरकार ने आरोप लगाया कि भाजपा 2014 के चुनाव के दौरान जनता से किए गए वादों को पूरा करने में विफल रही है और वह समाज को वर्ग एवं पंथ के आधार पर बांटने की कोशिश कर रही है.
त्रिपुरा में चार लोगों की भीड़ हत्या की घटना का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि राज्य में वामपंथी मोर्च के 25 साल के शासन काल में इस तरह की घटना कभी नहीं हुई थी.
उन्होंने कहा कि बच्चा चोरी, पीट-पीटकर हत्या और गौ रक्षा भाजपा के शासन का ‘ भयानक तरीका’ है. वह केंद्र सरकार की विफलताओं से लोगों का ध्यान भटकाना चाहते हैं.
सरकार ने कहा कि देश में पसरी इस मनोविकृति का सबसे ज्यादा शिकार अल्पसंख्यक और दलित हो रहे हैं. सरकार उन सभी लोगों की आवाजों को दबाना चाहती है जो भाजपा का विरोध करते हैं.
त्रिपुरा की बिपल्ब देब नीत भाजपा सरकार की आलोचना करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार की तरह ही त्रिपुरा की सरकार भी विधासभा चुनाव के समय जनता से किए गए अपने वादों को पूरा करने में सक्षम नहीं है.
उन्होंने दावा किया, ‘अब भुखमरी शुरू हो गई है. राज्य की आर्थिक स्थिति पर दबाब पड़ रहा है. कारोबार और व्यापार में ठहराव आ गया है. लोगों ने सरकार से सवाल पूछने शुरू कर दिए हैं.’
मणिपुर: भीड़ ने पुलिस पर हमला किया, पुलिस अधीक्षक सहित दस लोग घायल
इंफाल: शनिवार को मणिपुर के जिरिबाम जिले में भीड़ ने पुलिस पर हमला कर दिया, जिसमें पुलिस अधीक्षक सहित चार पुलिसकर्मी जख्मी हो गए.
पुलिस ने बताया कि जिले के लालपानी इलाके में शुक्रवार को हुई झड़प के दौरान छह प्रदर्शनकारी भी घायल हो गए.
उन्होंने बताया कि हाल में राज्य विधानसभा में पारित मणिपुर जन सुरक्षा विधेयक 2018 के खिलाफ बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारियों ने धरने पर बैठने की कोशिश की.
पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा , ‘जिले में सुबह से सीआरपीसी की धारा 144 लागू होने के कारण पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को धरने पर बैठने के लिए जिला प्रशासन से अनुमति लेने को कहा.’
इस पर प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया. उन्हें तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोलों और रबड़ की गोलियों का इस्तेमाल किया.
उन्होंने बताया कि झड़प के दौरान एक पुलिस अधीक्षक और एक महिला कर्मी सहित चार पुलिसकर्मी मामूली रूप से घायल हो गए. इस दौरान चार प्रदर्शनकारी भी जख्मी हो गए.
इसके बाद सामान्य स्थिति और कानून-व्यवस्था बहाल करने के लिए राज्य पुलिस के कमांडो और इंडियन रिजर्व बटालियन के कर्मियों को घटनास्थल पर भेजा गया.
अरुणाचल प्रदेश: उच्च न्यायालय ने संसदीय सचिव अधिनियम को ‘असंवैधानिक’ करार दिया
ईटानगर: गुवाहाटी उच्च न्यायालय की ईटानगर पीठ ने अरुणाचल प्रदेश संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन, भत्ते तथा अनेक प्रावधान) अधिनियम, 2007 को ‘असंवैधानिक’ करार दिया है.
जस्टिस मोनोजीत भूयान और जस्टिस रूमी कुमारी फुकन की खंडपीठ ने बुधवार को एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान संसदीय सचिवों की नियुक्तियों से जुड़े एक मामले में उच्चतम न्यायालय के पिछले साल 27 जुलाई के फैसले मद्देनजर इस अधिनियम को असंवैधानिक करार दिया.
पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘पक्षकार इस बात पर सहमत हैं कि उच्चतम न्यायालय के आदेश को ध्यान में रखते हुए यह जनहित याचिका आगे विचारयोग्य नहीं है.’ यह जनहित याचिका क्योदा राम ने दाखिल की थी.
गौरतलब है कि अरुणाचल प्रदेश में पेमा खांडू नीत भाजपा सरकार में 23 संसदीय सचिव हैं.
असम: माता-पिता की देखभाल न करने पर सरकारी कर्मचारियों को मिलेगी सजा
गुवाहाटी: असम सरकार दो अक्तूबर से एक नया कानून लाने जा रही है जिसके अनुसार उसके कर्मचारियों के लिए उन पर निर्भर मां-बाप एवं शारीरिक रूप से अशक्त भाई-बहन की देखभाल करना अनिवार्य होगा. इस कानून का पालन न करने पर कर्मचारियों के वेतन से पैसे काटे जाएंगे.
वित्त मंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने यह जानकारी दी और साथ ही बताया कि इस तरह का कानून लाने वाला असम देश का पहला राज्य होगा.
एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘मंत्रिमंडल ने इस हफ्ते की शुरूआत में प्रणाम अधिनियम के नियमों को मंजूरी दे दी. हम अब एक प्रणाम आयोग का गठन करेंगे और उसमें अधिकारी नियुक्त करेंगे. अंत में हम दो अक्तूबर से प्रणाम अधिनियम लागू करना शुरू कर देंगे.’
पिछले साल राज्य विधानसभा ने असम कर्मचारी माता-पिता जिम्मेदारी एवं जवाबेदही तथा निगरानी नियम विधेयक, 2017 या ‘प्रणाम विधेयक’ पारित किया था. इसका मकसद यह सुनिश्चत करना है कि राज्य सरकार के कर्मचारी अपने वृद्ध हो रहे माता पिता या शारीरिक रूप से अशक्त भाई-बहन की देखभाल करें नहीं तो उनके वेतन से पैसे काट लिए जाएंगे.
शर्मा ने कहा, ‘नियमों के तहत, अगर कोई सरकारी कर्मचारी उस पर निर्भर माता-पिता की देखभाल नहीं करता तो उसके कुल वेतन का 10 प्रतिशत हिस्सा काट लिया जाएगा और वह राशि माता-पिता के खाते में डाल दी जाएगी. दिव्यांग (शारीरिक रूप से अशक्त) भाई-बहन होने की स्थिति में वेतन से 15 प्रतिशत तक हिस्सा काट लिया जाएगा.’
त्रिपुरा: वामपंथी नेता की प्रतिमा गिराने के आरोप में दो गिरफ्तार
अगरतला: त्रिपुरा के उनाकोटी जिले के श्रीरामपुर इलाके में वरिष्ठ वामपंथी नेता बैद्यनाथ मजूमदार की एक प्रतिमा को क्षतिग्रस्त करने के लिए दो लोग गिरफ्तार किए गए हैं.
जिला पुलिस निरीक्षक लकी चौहान ने बताया कि यह घटना बुधवार रेत रात हुई और इस संबंध में दो युवा गिरफ्तार किए गए. हालांकि उनका कहना है कि उन्हें घटना में कोई भी राजनीतिक एंगल नहीं नजर आया.
गौरतलब है कि मई में राज्य में भाजपा के सत्ता संभालने के तुरंत बाद एक समूह ने दक्षिणी त्रिपुरा जिले के मुख्यालय बेलोनिया में रूस के वामपंथी क्रांतिकारी नेता व्लादिमीर लेनिन की प्रतिमा ढहा दी थी.
स्थानीय लोगों ने बुधवार की इस घटना की जानकारी पुलिस को दी जिन्होंने सूचना के मुताबिक शरारती तत्वों की पहचान की. चौहान ने बताया, ‘इस संबंध में दो युवा गिरफ्तार किए गए जिनकी पहचान लितन सरकार और रंजीत नामा के तौर पर हुई है.’
बैद्यनाथ मजूमदार की प्रतिमा उनके निधन के एक साल बाद 2012 में स्थापित की गई थी. मजूमदार 1993 से 1998 के दौरान वरिष्ठ वामपंथी नेता दशरथ देब नीत सरकार में राज्य के उपमुख्यमंत्री थे.
माकपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व शिक्षा एवं कानून मंत्री तपन चक्रवर्ती ने आरोप लगाया है कि सत्तारूढ़ भाजपा के कार्यकर्ताओं ने यह प्रतिमा गिराई. वहीं भाजपा के प्रदेश सचिव नीतीश डे ने घटना के जिम्मेदार लोगों की गिरफ्तारी की मांग की.
मेघालय: दो विधानसभा सीटों के लिए 23 अगस्त को होगा उपचुनाव
नई दिल्ली/ शिलांग: मेघालय की रानीकोर और दक्षिण तुरा विधानसभा सीट पर उपचुनाव 23 अगस्त को होगा.
निर्वाचन आयोग की ओर से जारी चुनाव कार्यक्रम के मुताबिक दोनों सीटों पर 23 अगस्त को मतदान और 27 अगस्त को मतगणना होगी. ये दोनों सीटें अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित हैं.
चुनाव कार्यक्रम के मुताबिक दोनों सीटों के लिये चुनाव की अधिसूचना 30 जुलाई को जारी की जायेगी. नामांकन पत्र भरने की अंतिम तिथि छह अगस्त होगी और नामांकन पत्रों की जांच सात अगस्त को की जायेगी.
नामांकन पत्र वापस लेने की अंतिम तिथि नौ अगस्त निर्धारित की गयी है. दोनों सीटों के सभी मतदान केंद्रों पर वीवीपेट युक्त ईवीएम से वोट डाले जायेंगे.
राज्य के मुख्यमंत्री कोनराड के संगमा पश्चिम गारो पर्वतीय जिले में स्थित दक्षिण तुरा सीट से चुनाव लड़ेंगे. नेशनल पीपुल्स पार्टी विधायक अगाथा के संगमा ने दक्षिण तुरा सीट से दो जुलाई को इस्तीफा दे दिया था. इससे उनके भाई और मुख्यमंत्री के चुनाव लड़ने का मार्ग प्रशस्त हुआ.
कोनराड ने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा था और मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके लिए, मेघालय विधानसभा में 6 सितंबर से पहले निर्वाचित होना अनिवार्य है.
रानीकोर सीट पांच बार के कांग्रेस विधायक मार्टिन एम डांगो के 21 जून को विधानसभा से इस्तीफा देने के बाद खाली हुई है.
मणिपुर: सीमा स्तंभ हटाकर राज्य के भीतर नहीं किया गया- महासर्वेक्षक
इंफाल: भारत के महासर्वेक्षक लेफ्टिनेंट जनरल गिरीश कुमार ने बुधवार को उन आरोपों को खारिज कर दिया कि मणिपुर के एक गांव के पास म्यांमार की सीमा पर लगा एक सीमा स्तंभ हटाकर राज्य के भीतर लगाया गया है.
कई सामाजिक संगठनों एवं स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया था कि मणिपुर के तेंगनौपाल जिले के क्वाथा खुनोउ में लगा सीमा स्तंभ संख्या 81 अपनी मूल जगह से हटाकर राज्य में तीन किलोमीटर भीतर लगा दिया गया.
कुमार ने संवाददाताओं से कहा, ‘स्थल का मुआयना करने के बाद और उपलब्ध रिकार्ड एवं दस्तावेजों के अनुरूप, स्तंभ संख्या 81 को कथित रूप से हटाकर अंदर लगाने जैसा कुछ नहीं हुआ.’
कुमार के नेतृत्व में एक केंद्रीय दल ने मणिपुर में क्वाथा खुनोउ गांव के निकट म्यांमार की सरहद पर लगे सीमा स्तंभ का निरीक्षण किया.
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि पड़ोसी देश के प्रदेश के भीतर सीमा स्तंभ लगाने को लेकर पैदा हुए विवाद के चलते केंद्रीय दल ने निरीक्षण किया.
कुमार की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय टीम में उनके साथ गृह मंत्रालय में संयुक्त सचिव (सीमा प्रबंधन) जेएवी धर्मा रेड्डी और विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव (बांग्लादेश और म्यांमार) श्रीप्रिया रंगनाथन शामिल थे.
सूत्रों ने बताया कि टीम ने मंगलवार को आकर सीमा स्तंभ संख्या 81 का निरीक्षण किया था. मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने 12 जुलाई को कहा था कि भारत-म्यांमार अंतरराष्ट्रीय सीमा ‘अनछुई और अप्रभावित’ है.
उन्होंने कहा था कि जनता की आशंकाओं को देखते हुए राज्य सरकार ने केंद्र को पत्र लिखा है कि वह इस बात की जांच के लिये फील्ड विजिट कराए कि क्या सीमा स्तंभ संख्या 81, 1967 के समझौते के अनुसार अपने वास्तविक स्थान पर है.
इस पर विदेश मंत्रालय ने भी 8 जुलाई को बयान जारी करके दावा था कि ये आरोप ‘निराधार और अप्रमाणित’ हैं.
असम: एपीएससी घोटाले में जांच प्रभावित करने की कोशिश के आरोप में भाजपा नेता समेत तीन गिरफ्तार
गुवाहाटी: पैसा देकर नौकरी पाने के मामले की जांच को प्रभावित करने की कोशिश के आरोप में असम पुलिस ने सोमवार को प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा के एक नेता तथा एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी समेत तीन लोगों को गिरफ्तार किया है.
डिब्रूगढ़ जिले के पुलिस अधीक्षक गौतम बोरा ने बताया कि प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा की दरांग इकाई के उपाध्यक्ष सैलेन सरमा बरूआ, दुलियाजान की पुलिस उपाधीक्षक कबिता दास और व्यापारी सुरजीत चौधरी को बीते रविवार की रात गिरफ्तार किया गया .
बोरा ने बताया, ‘हमने पुलिस उपाधीक्षक कबिता दास को रविवार रात को गिरफ्तार किया. उसे गुवाहाटी ले जाया गया है और पूछताछ की जा रही है.’
उन्होंने बताया, ‘दरांग और गुवाहाटी से दो और लोगों को गिरफ्तार किया गया है. इनमें से एक सैलेन सरमा बरूआ है जो सत्तारूढ़ भाजपा की दरांग इकाई का उपाध्यक्ष है और दूसरा सुरजीत चौधरी व्यापारी है.’
सरकारी सूत्रों के अनुसार गुवाहाटी उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों से मुलाकात कर दोनों जांच को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे थे.
डिब्रूगढ़ पुलिस असम लोक सेवा आयोग में हुए घोटाले की जांच कर रही है. इस मामले में आयोग के चेयरमैन राकेश कुमार पॉल सहित कुल 67 लोगों को गिरफ्तार किया गया है . गिरफ्तार किये गए लोगों में 55 से अधिक लोक सेवा के अधिकारी शामिल हैं .
त्रिपुरा: शुरू किए जाएंगे छह नये बॉर्डर हाट
अगरतला: भारत और बांग्लादेश छह नये बॉर्डर हाट स्थापित करने पर सहमत हो गए हैं, जिसका लक्ष्य दोनों देशों के बीच व्यापार में इजाफा करना है.
केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय में संयुक्त सचिव भूपिंदर एस भल्ला और बांग्लादेश के वाणिज्य मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव मोहम्मद शफीकुल इस्लाम की संयुक्त बॉर्डर हाट समिति (जेबीएचसी) की पहली बैठक में हाट की स्थापना से जुड़े समझौते पर हस्ताक्षर किया गया. यह बैठक सोमवार को खत्म हुई.
अधिकारियों ने बताया कि बांग्लादेश की सीमा से सटे पूर्वोत्तर राज्यों में मार्च, 2019 से पहले छह हाटों की स्थापना की जाएगी लेकिन स्थानों का चुनाव अभी नहीं किया गया है.
केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि दोनों पड़ोसी देशों के बीच बॉर्डर हाट स्थापित किये जाने संबंधी समझौता ज्ञापन पर आठ अप्रैल, 2017 को हस्ताक्षर किया गया था.
मणिपुर: राजनीतिक दलों की मांग- नगा मुद्दे पर विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया जाए
इंफाल: मणिपुर में कांग्रेस को छोड़कर बाकी सभी पार्टियों ने बीते रविवार विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की मांग की ताकि 2015 में केंद्र और नेशनलिस्ट सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (एनएससीएन-आईएम) द्वारा कथित तौर पर हस्ताक्षरित समझौते की रूपरेखा (फ्रेमवर्क एग्रीमेंट) पर चर्चा की जा सके.
मीडिया में आई खबरों के मुताबिक, नगा वार्ता के वार्ताकार आरएन रवि ने 19 जुलाई को एक संसदीय समिति को बताया कि सरकार ने एनएससीएन-आईएम के साथ समझौते की एक रूपरेखा पर दस्तखत किए हैं. समझौते की रूपरेखा पर दस्तखत तब हुए जब एनएससीएन-आईएम ‘विशेष दर्जे’ के साथ भारतीय परिसंघ के भीतर ही मामले को सुलझाने पर सहमत हुआ.
खबरों के मुताबिक, रवि ने समिति को बताया था कि सरकार ने इसे समझौते की रूपरेखा करार दिया और उस पर दस्तखत किए गए.
भाकपा के राज्य सचिव एल. सोतिन कुमार सिंह ने समाचार एजेंसी पीटीआई-भाषा को बताया, ‘मुख्यमंत्री कार्यालय में हुई बैठक में फैसला किया गया कि नगा मुद्दे पर केंद्र के समझौते की रूपरेखा का दखल मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता पर नहीं होना चाहिए.’
भाकपा नेता ने कहा कि कांग्रेस इस बैठक से दूर रही क्योंकि उसका मानना है कि जिस तरह से चीजों से निपटा जा रहा है, वह सही नहीं है. इस बैठक में कुल 17 पार्टियों ने हिस्सा लिया था.
त्रिपुरा: सचिवालय में आधार से दर्ज होगी बायोमेट्रिक उपस्थिति
अगरतला: त्रिपुरा सरकार ने प्रदेश सचिवालय में आधार के जरिए बायोमेट्रिक उपस्थिति प्रणाली शुरू करने का निर्णय लिया है. सरकार का मानना है कि इससे कर्मचारी अनुशासित रहेंगे और कार्यकाल में कागज का उपयोग कम हो सकेगा.
मुख्यमंत्री विप्लव कुमार देव ने संवाददाताओं को बताया कि उनकी सरकार ‘अनावश्यक कार्यबोझ’ कम करने और कर्मचारियों की जवाबदेही एवं दक्षता में वृद्धि करने के लिए काम कर रही है. उन्होंने बताया कि प्रदेश सचिवालय में 996 कर्मचारी कार्यरत हैं. सभी नई प्रणाली को लेकर उत्साहित हैं.
देव ने कहा कि केंद्र सरकार कार्यालय में उपयोग के लिए कागज खरीदने को काफी धन देती है. इसका न्यायसंगत उपयोग करके काफी धन बचा सकते हैं.
सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव टीके चकमा ने 16 जुलाई को जारी कार्यालय ज्ञापन में कहा कि सरकारी कार्यालयों में कागजों के उपयोग के महत्व पर जोर देने के लिए प्रदेश सरकार ने यह निर्णय लिया है. प्रदेश सरकार ने चरणबद्ध तरीके से अन्य कार्यालयों में डिजिटल उपस्थिति सेवा के विस्तार की उम्मीद जतायी है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)