एससी-एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम को अपने पुराने और मूल स्वरूप में फिर से लागू करने के लिए केंद्र सरकार संसद के इसी सत्र में संशोधन बिल पेश करेगी.
नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचारों की रोकथाम) कानून के मूल प्रावधानों को बहाल करने संबंधी विधेयक को मंजूरी दे दी है. भाजपा नीत राजग सरकार के इस कदम को दलितों की इस मूल मांग के पक्ष में नौ अगस्त को देशव्यापी प्रदर्शन के प्रस्ताव को शांत करने के तौर पर देखा जा रहा है.
यह विधेयक किसी भी अदालती आदेश से प्रभावित हुए बिना एससी/एसटी के खिलाफ अत्याचार के आरोपी व्यक्ति को अग्रिम जमानत के किसी भी प्रावधान को खारिज करता है. इसमें यह भी व्यवस्था है कि आपराधिक मामला दर्ज करने के लिए कोई प्रारंभिक जांच की जरूरत नहीं है. साथ ही इस कानून के तहत गिरफ्तारी के लिए किसी प्रकार की मंजूरी की जरूरत नहीं है.
दलित संगठन सरकार से उच्चतम न्यायालय के 20 मार्च के फैसले को पलटने की मांग कर रहे थे. उनका कहना था कि समाज के कमजोर तबके पर अत्याचार के खिलाफ इस कानून में आरोपी की गिरफ्तारी पर अतिरिक्त बचाव ने इस कानून को कमजोर और शक्तिहीन बना दिया है.
भाजपा तथा राजग के सहयोगी दलों के अनेक दलित नेताओं ने भी उच्चतम न्यायालय के आदेश को पलटने के लिए आवशयक कदम उठाने की मांग का समर्थन किया था.
लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष राम विलास पासवान ने विधेयक को ‘ऐतिहासिक’ करार देते हुए संवाददाताओं से कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में संशोधित विधेयक को मंजूरी दी गई और इसे संसद के इसी सत्र में पेश किए जाने की संभावना है.