यूजीसी द्वारा पारित नए नियमों के मुताबिक थीसिस में प्लेगरिज़्म यानी साहित्य चोरी पाए जाने डिग्री मिल जाने की स्थिति में शिक्षकों को वेतन वृद्धि और नए छात्रों के सुपरविज़न के अधिकार नहीं दिए जाएंगे.
नई दिल्ली: मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने रिसर्च पेपर में साहित्यिक चोरी (प्लेगरिज्म) पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के नये नियमों को मंजूरी दे दी है.
इन नियमों के मुताबिक अगर कोई शोधार्थी रिसर्च में प्लेगरिज्म का दोषी पाया जाता है तो उनका पंजीकरण रद्द हो सकता है और अध्यापकों की नौकरी जा सकती है.
मंत्रालय ने यूजीसी (उच्चतर शिक्षा संस्थानों में अकादमिक सत्यनिष्ठा और साहित्य चोरी की रोकथाम को प्रोत्साहन) विनियम, 2018 को इस हफ्ते अधिसूचित कर दिया. यूजीसी ने इस साल मार्च में अपनी बैठक में नियमन को मंजूरी देते हुए प्लेगरिज्म के लिए दंड का प्रावधान किया.
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार प्लेगरिज्म के 4 लेवल दिए गए हैं. जहां लेवल 0 पर किसी तरह की पेनाल्टी नहीं है, जबकि लेवल 3 पर सबसे कड़ी सज़ा यानी रजिस्ट्रेशन रद्द करना है.
डिग्री मिल जाने की स्थिति में शोधार्थी को अपनी मैनुस्क्रिप्ट वापस लेने को कहा जाएगा, लगातार दो वार्षिक इन्क्रीमेंट का अधिकार नहीं दिया जाएगा और तीन साल के लिए किसी नए मास्टर्स/एम.फिल/पीएचडी छात्र या स्कॉलर को सुपरवाइज़ करने की अनुमति नहीं होगी.
यानी 10 प्रतिशत तक प्लेगरिज्म पर किसी दंड का प्रावधान नहीं है जबकि 10 प्रतिशत से 40 प्रतिशत के बीच प्लेगरिज्म पाए जाने पर छह महीने के भीतर संशोधित शोधपत्र पेश करना होगा.
इसी तरह 40 से 60 प्रतिशत समानताएं मिलने पर छात्रों को एक साल के लिए संशोधित पेपर जमा करने से रोक दिया जाएगा. इससे ऊपर के मामले में पंजीकरण रद्द कर दिया जाएगा.
इस नियम के तहत अध्यापकों के लिए भी दंड का प्रावधान किया गया है. उनके शोध में दस प्रतिशत से चालीस प्रतिशत समानता पर मैनुस्क्रिप्ट वापस लेने को कहा जाएगा.
इससे अधिक यानी चालीस से 60 प्रतिशत समानता पर 3 वर्ष की अवधि के लिए पीएचडी छात्र का सुपरविज़न करने से रोक दिया जाएगा और दो वार्षिक वेतन वृद्धि के अधिकार से वंचित किया जाएगा. साठ प्रतिशत से अधिक समानता पर उनके खिलाफ निलंबन या सेवा समाप्ति का भी कदम उठाया जा सकता है.
एनडीटीवी के अनुसार छात्रों, फैकल्टी सदस्यों और शोधार्थियों को यूनिवर्सिटियों द्वारा प्रमाणित प्लेगरिज्म डिटेक्शन टूल को इस्तेमाल करने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा.
इस साल जून महीने में पत्रकारों से बात करते हुए मानव संसाधन और विकास मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कहा था, ‘किसी व्यक्ति की पीएचडी थीसिस को कोई दूसरा व्यक्ति अपनी थीसिस को पूरा करने के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकता. आज जब इस तरह के मामले बढ़ रहे हैं, तो हमने ‘टरनिटिन’ जैसे सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके ऐसी थीसिस को चेक कर सकें.
इससे पहले इसी हफ्ते राज्यसभा में मानव संसाधन और विकास राज्यमंत्री सत्यपाल सिंह ने बताया था कि बीते 3 सालों में यूजीसी को इस तरह के पीएचडी में प्लेगरिज्म के 3 मामले मिले हैं.
उन्होंने सदन को बताया कि इनमें पांडिचेरी विश्वविद्यालय के वीसी चंद्र कृष्णमूर्ति, वाराणसी के महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के रीडर अनिल कुमार उपाध्याय और लखनऊ की एपीजे अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी (यूपीटीयू) के वीसी विनय कुमार पाठक का नाम है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)