शीर्ष अदालत ने एनआरसी समन्वयक प्रतीक हजेला और भारत के महापंजीयक शैलेष के मीडिया को बयान देने के अधिकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि उन्हें भविष्य में एनआरसी मुद्दे पर मीडिया से बात करने से पहले अनुमति लेनी होगी.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) समन्वयक और भारत के महापंजीयक (रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया) को एनआरसी मुद्दे पर उनके बयान के लिए फटकार लगाते हुए कहा कि उन्हें अवमानना के अपराध में जेल भेज सकता है. साथ ही, बिना शीर्ष अदालत की अनुमति के भविष्य में उनके मीडिया में बोलने पर रोक लगाई है.
न्यायालय ने समाचार पत्रों की खबरों का जिक्र करते हुए मीडिया को बयान जारी करने के एनआरसी समन्वयक और भारत के महापंजीयक के अधिकार पर सवाल उठाये और कहा कि उन्हें भविष्य में एनआरसी के मुद्दे पर मीडिया से बातचीत करने से पहले अनुमति लेनी होगी.
हजेला के अखबार में आए इंटरव्यू को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है.
जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस आरएफ नरीमन की पीठ ने असम राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के समन्वयक प्रतीक हजेला और भारत के महापंजीयक शैलेष द्वारा राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के मसौदे में छूट गए नामों के संबंध में दावों और आपत्तियों के निपटान के मसले पर मीडिया को बयान देने को ‘बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण’ बताया.
जस्टिस गोगोई ने इस घटनाक्रम पर नाराजगी व्यक्त करते हुए दोनों अधिकारियों से कहा, ‘क्या इस मामले में होने वाले दावों और आपत्तियों से आपका किसी भी प्रकार का कोई सरोकार है… आपने समाचार पत्रों में जो कहा है, आप हमें बताएं कि आपका इससे क्या सरोकार है.’ उन्होंने अधिकारियों से न्यायालय में ही समाचार पत्र पढ़ने के लिए कहा.
पीठ ने कहा, ‘यह मत भूलिए, आप न्यायालय के अधिकारी हैं. आपका काम हमारे निर्देशों का पालन करना है. आप इस तरह से प्रेस में कैसे जा सकते हैं.’ पीठ ने कहा कि आप दोनों को जेल भेजा जा सकता था.
पीठ ने दोनों अधिकारियों के अधिकारों पर सवाल उठाते हुए उन्हें फटकार लगाई और भविष्य में इस मसले पर मीडिया से बात नहीं करने की हिदायत दी.
एनडीटीवी के मुताबिक, एनआरसी समन्वयक प्रतीक हजेला के बयान पर शीर्ष अदालत ने कहा कि आप कौन होते हैं यह कहने वाले कि फ्रेश डॉक्यूमेंट दें? आपने ये कैसे कहा कि काफी मौके देंगे? आपका काम रजिस्टर तैयार करना है न कि मीडिया को ब्रीफ करना.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘आप कैसे कह रहे है कि रजिस्टर में नाम दर्ज करवाने के लिए फ्रेश डॉक्यूमेंट देने होंगे. सुप्रीम कोर्ट ने हजेला से पूछा कि आपको कोर्ट की अवमानना में जेल क्यों न भेजा जाए?’
पीठ ने कहा कि उसने केंद्र सरकार से कहा था कि वह राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के मसौदे से बाहर रह गए नामों के संबंध में दावों और आपत्तियों से निपटने के लिए एक मानक प्रक्रिया तैयार करें लेकिन इन अधिकारियों ने इसके तरीके पर बयान दिये जो पूरी तरह से उसके अधिकार क्षेत्र में आता है.
पीठ ने कहा, ‘हमें आप दोनों को न्यायालय की अवमानना का दोषी ठहराना चाहिए और आप दोनों को जेल भेज देना चाहिए. आपने जो कुछ भी कहा वह हमारे बारे में दर्शाता है.’
पीठ ने कहा कि वह इस मामले में अधिक कड़ा रुख़ अपना सकती थी परंतु असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के अंतिम प्रकाशन की तैयारियों के भावी काम को ध्यान में रखते हुये उन्हें बख्श रही है.
पीठ ने कहा, ‘आपका काम किसी का ब्रीफ लेकर प्रेस में जाना नहीं है.’ इस मामले में अब 16 अगस्त को आगे विचार किया जाएगा.
हजेला ने पीठ को सूचित किया कि उन्होंने भारत के महापंजीयक से परामर्श किया था और शिकायतों के समाधान के बारे में आशंकाएं दूर करने के लिए मीडिया से बात की थी.
दोनों अधिकारियों ने अपने इस कृत्यु के लिए पीठ से बिना शर्त क्षमा याचना कर ली.
शीर्ष अदालत ने 31 जुलाई को कहा था कि इस नागरिक रजिस्टर के मसौदे से बाहर रह गए 40 लाख से अधिक व्यक्तियों के ख़िलाफ़ प्राधिकारियों द्वारा कोई भी दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी. न्यायालय ने कहा था कि यह तो अभी सिर्फ मसौदा ही है.
राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर की रिपोर्ट के अनुसार, 3.29 करोड़ लोगों में से प्रकाशित मसौदे में 2.89 करोड़ लोगों के नाम शामिल किए गए हैं. इसमें यह भी कहा गया है कि सूची में 40,70,707 लोगों के नाम शामिल हैं. इनमें से 37,59,630 नाम अस्वीकार कर दिए गए हैं और शेष 2,48,077 अभी विलंबित रखे गए हैं.
हजेला ने न्यायालय को सूचित किया था कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में नाम शामिल करने और निकालने के बारे में 30 अगस्त से 28 सितंबर के बीच दावे और आपत्तियां की जा सकती हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)