दिल्ली हाईकोर्ट में निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम में नर्सों की स्थिति को लेकर एक जनहित याचिका दायर की गई है. इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि शिक्षा और चिकित्सा पैसा ऐंठने वाले धंधे बन गए हैं.
नई दिल्ली: नर्सों को न्यूनतम 20,000 रुपये मासिक वेतन देने की विशेषज्ञ पैनल की सिफारिश लागू करने को लेकर दिल्ली की आप सरकार के आदेश का निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम ने मंगलवार को दिल्ली उच्च न्यायालय में विरोध किया.
निजी अस्पतालों का कहना है कि इतना वेतन देना उनके व्यावसाय के लिए अलाभकारी है.
देश में स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने वालों का प्रतिनिधित्व करने वाले एसोसिएशन की एक याचिका सुनवाई के लिए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और जस्टिस सी. हरी शंकर की पीठ के पास आयी थी.
गौरतलब है कि पीठ ने हाल ही में कहा था कि स्वास्थ्य सेवाएं लाभकारी व्यावसाय बन गयी हैं.
अदालत ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए ये बात कही थी. याचिका में आरोप लगाया गया था कि राष्ट्रीय राजधानी में निजी अस्पताल और नर्सिंग होम नर्सों का वित्तीय शोषण कर रहे हैं.
समय की कमी के कारण अदालत ने एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई नहीं की और उसे 10 अगस्त के लिए सूचीबद्ध कर दिया.
एसोसिएशन ने दलील दिया कि दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य सेवा निदेशालय द्वारा 25 जून के आदेश में निजी अस्पतालों और नर्सिंग होमों में कार्यरत नर्सों की न्यूनतम मजदूरी में संशोधन किया गया था.
याचिकाकर्ता ने कहा कि दिल्ली सरकार ने ये फैसला लेने से पहले न तो प्राइवेट हेल्थकेयर प्रदाताओं से कोई बातचीत की और न ही समिति के सुझावों पर ध्यान दिया कि नर्सों की सैलरी बढ़ाने से व्यापार पर प्रभाव पड़ेगा.
याचिका में कहा गया, ‘कम से कम दो से तीन गुना नर्सों की सैलरी बढ़ाने से हेल्थकेयर के व्यापार पर अलाभकारी प्रभाव पड़ेगा.’
बता दें कि कुछ दिन पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम में नर्सों की स्थिति को लेकर दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान बुधवार को कहा कि शिक्षा और चिकित्सा धन ऐंठने वाले धंधे बन गए हैं.
कोर्ट ने कहा था कि कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नर्सों के अधिकारों की रक्षा को लेकर दिशा-निर्देश दिए जाने के बावजूद निजी चिकित्सा संस्थानों में नर्सों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)