भारतीय मूल के ब्रिटिश लेखक वीएस नायपॉल को 1990 में ‘नाइटहुड’ का सम्मान मिला था और 2001 में साहित्य के नोबेल पुरस्कार से उन्हें नवाज़ा गया था.
लंदन: भारतीय मूल के ब्रिटिश लेखक वीएस नायपॉल का बीते शनिवार को उनके लंदन स्थित घर में निधन हो गया. वह 85 वर्ष के थे.
त्रिनिदाद में 17 अगस्त 1932 को जन्मे वीएस नायपॉल को 1971 में बुकर पुरस्कार और साल 2001 में साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस (एपी) से बातचीत में उनकी पत्नी नादिरा नायपाल ने बताया, ‘अपने अंतिम समय में वे उन लोगों से घिरे हुए थे जिन्हें वे चाहते थे. उन्होंने एक ऐसा जीवन जीया जो आश्चर्यजनक तौर पर रचनात्मकता और कड़ी मेहनत से मिली सफलता से भरा हुआ था.’
विद्याधर सूरज प्रसाद (वीएस) नायपॉल ‘अ बेंड इन द रिवर’ और ‘अ हाउस फॉर मिस्टर बिस्वास’ जैसे उपन्यासों में अपने स्पष्ट और काव्यात्मक लेखन के लिए जाने जाते थे.
अपने सहज और स्पष्टवादी व्यक्तित्व की वजह से वह विश्व के प्रशंनीय और विवादपूर्ण लेखकों में से भी एक थे. उनके काम में त्रिनिदाद से लेकर लंदन और कुछ अन्य देशों की उनकी जीवन यात्रा की झलक मिलती है.
नायपॉल उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ थे और यह उनके लेखन में भी इसकी झलक मिलती थी. उनके बयानों से कई बार विवाद भी पैदा हुए.
जनसत्ता की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने भारत को ‘गुलाम समाज’ बताया था. इसके अलावा भारतीय महिलाओं के बिंदी लगाने को लेकर उन्होंने कहा था कि भारतीय महिलाएं माथे पर बिंदी यह कहने के लिए लगाती हैं कि ‘मेरा दिमाग खाली है’.
उनका परिवार लेखकों से भरा परिवार है. उनके पिता श्रीप्रसाद नायपॉल, छोटे भाई शिव नायपॉल आदि लेखक रहे हैं. उनकी पत्नी नादिरा नायपॉल पत्रकार रह चुकी हैं.
50 साल अपनी लेखकीय पारी के दौरान उन्होंने 30 से ज्यादा किताबें लिखीं, इसमें फिक्शन और नॉन फिक्शन दोनों शामिल हैं.
उनकी पहली किताब ‘द मिस्टिक मैसर’ साल 1957 में प्रकाशित हुई थी. हालांकि 1959 में नायपॉल समीक्षकों की नज़र में तब आए जब वह सोमरसेट मॉगम पुरस्कार से सम्मानित हुए. यह पुरस्कार उनके कहानी संग्रह ‘मिगुएल स्ट्रीट’ के लिए मिला.
इसके बाद 1961 में उनका उपन्यास ‘अ हाउस फॉर मिस्टर बिस्वास’ आया. इस उपन्यास में उन्होंने बताया है कि कैसे औपनिवेशिक समाज होने की वजह से एक व्यक्ति की ज़िंदगी सिमट कर रह जाती है. उन्होंने यह उपन्यास अपने पिता को समर्पित किया था.
उनकी कुछ और मशहूर कृतियों में अ फ्लैग आॅन द आइलैंड (1967), इन अ फ्री स्टेट (1971), अ वे इन द वर्ल्ड (1994), हाफ अ लाइफ (2001) और मैजिक सीड्स (2004) हैं.
नायपॉल के पूर्वज भारत से बंधुआ मज़दूर के तौर पर कैरेबियाई देश त्रिनिदाद लाए गए थे. साल 1950 में इंग्लैंड में पढ़ाई के लिए उन्हें एक सरकारी स्कॉलरशिप मिली. इसके बाद अंग्रेज़ी साहित्य में पढ़ाई के लिए उन्होंने परिवार छोड़ दिया और आॅक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी चले आए.
यहां उनकी मुलाकात उनकी पहली पत्नी पेट्रिशिया हाले से हुए, जिनसे उन्होंने परिवार को बिना बताए वर्ष 1955 में शादी कर ली.
ग्रेजुएशन के बाद नायपॉल को कुछ समय तक ग़रीबी और बेरोज़गारी में भी दिन गुज़ारने पड़े. उन दिनों वह अस्थमा से पीड़ित थे और आय के लिए पत्नी पर निर्भर रहते थे.
फिर वह बीबीसी वर्ल्ड सर्विस से जुड़ गए. यहां वह रेडियो पर पश्चिम भारतीय साहित्य पर चर्चा करते थे. इसी दौरान वह लेखन की ओर आकर्षित हुए और 1957 में अपनी पहली किताब ‘द मिस्टिक मैसर’ लिखी.
1990 में उन्हें नाइटहुड की उपाधि मिली थी.