भाजपा अध्यक्ष अमित शाह समेत पार्टी के कई नेता असम में एनआरसी की अंतिम सूची आने से पहले ही 40 लाख लोगों को घुसपैठिया बता चुके हैं.
‘विपक्षी दल चाहे जितना हो-हल्ला करें, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार असम के 40 लाख घुसपैठियों में से एक-एक को बाहर करेगी. केंद्र सरकार घुसपैठियों के प्रति उदारता बरतने के मूड में नहीं है.’
यह भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के उस वक्तव्य का अंश है, जो उन्होंने 12 अगस्त को उत्तर प्रदेश के मेरठ में भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक के समापन सत्र में दिया.
अमित शाह यहीं नहीं रुके उन्होंने आगे कहा कि देश में जहां-जहां घुसपैठिये हैं, उन सबको देश से बाहर जाने का रास्ता भाजपा की सरकार दिखाएगी. उनका इशारा पश्चिम बंगाल की ओर था.
इसके बाद उन्होंने असम में विवादों की जड़ बन रहे नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 पर टिप्पणी की और कहा कि हिंदू शरणार्थियों को देश में लाया जाएगा और उन्हें नागरिकता प्रदान की जाएगी.
30 जुलाई को असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का फाइनल मसौदा जारी किया गया. इसमें शामिल होने के लिए 3.29 करोड़ लोगों ने आवेदन किया था, जिनमें से 2.89 करोड़ लोगों के नाम इस मसौदे में शामिल हुए. 40, 07,707 लोगों का नाम इस सूची में नहीं हैं.
एनआरसी का पहला मसौदा 31 दिसंबर और एक जनवरी को जारी किया गया था, जिसमें 1.9 करोड़ लोगों के नाम थे. एनआरसी की अंतिम सूची 31 दिसंबर 2018 को जारी की जानी है. तब तक अंतिम मसौदे में छूटे व्यक्ति अपनी आपत्तियां दर्ज करवा सकते हैं.
एनआरसी जारी होने के बाद इन 40 लाख लोगों को लगातार ‘घुसपैठिया’ या ‘अवैध बांग्लादेशी’ बताया जाने लगा, विभिन्न दलों के नेताओं ने सरकार से सवाल किया कि वह इन 40 लाख लोगों के साथ क्या करना चाहती है.
हालांकि राज्य सरकार का कहना था कि जिनके नाम रजिस्टर में नहीं है उन्हें अपना पक्ष रखने के लिए एक महीने का समय दिया जाएगा.
असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने मसौदा जारी होने से पहले और बाद में भी स्पष्ट किया कि जिन लोगों के नाम इस ड्राफ्ट में नहीं होंगे, उन्हें अपनी पहचान साबित करने के पर्याप्त मौके दिए जाएंगे. नाम न आने की स्थिति में किसी के अधिकार या विशेषाधिकार कम नहीं होंगे, न ही किसी को हिरासत में लिया जाएगा.
फाइनल ड्राफ्ट आने के बाद मीडिया रिपोर्ट्स में यह भी आया कि इनमें बहुत से लोग ऐसे हैं, जिनका नाम 31 दिसंबर को जारी हुए ड्राफ्ट में था, पर इस मसौदे में नहीं है.
इस पर सरकार की ओर से कहा गया कि ऐसे लोगों को लेटर ऑफ इनफॉर्मेशन के जरिये सूचित कर उनके लिस्ट में शामिल न होने का कारण बताया जाएगा, जिससे वे इस गलती को सुधार सकें.
यानी स्पष्ट था कि ये सभी निश्चित तौर पर ‘अवैध बांग्लादेशी’ नहीं हैं और इन्हें अपनी पहचान को साबित करने के लिए दोबारा मौका दिया जाएगा.
लेकिन इस मसले पर राजनीति मसौदा जारी होने के साथ ही शुरू हो गयी. लगातार विपक्ष की ओर से सवाल किया गया कि इन 40 लाख लोगों का भविष्य क्या होगा. 30 जुलाई में इसी मुद्दे पर हंगामा हुआ और सदन की कार्यवाही स्थगित हुई.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गृहमंत्री राजनाथ सिंह से संशोधन लाने की मांग करते हुए सवाल किया, ‘जिन 40 लाख लोगों के नाम डिलीट कर दिए गए हैं वे कहां जाएंगे? क्या केंद्र के पास इन लोगों के पुनर्वास के लिए कोई कार्यक्रम है? अंतत: पश्चिम बंगाल को ही इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा. ये भाजपा की वोट पॉलिटिक्स है.’
ममता यहीं नहीं रुकीं, उन्होंने फिर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला और कहा कि असम में एनआरसी में 40 लाख लोगों को शामिल नहीं किए जाने से देश में खूनखराबा और गृह युद्ध हो सकता है. मोदी सरकार राजनीतिक फायदे के लिए लाखों लोगों को राज्य विहीन करने की कोशिश कर रही है.
हालांकि 30 जुलाई को सदन में ही केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने स्पष्ट किया कि इसमें उनकी सरकार की कोई भूमिका नहीं है.
लोकसभा में बोलते हुए सिंह ने कहा कि इसमें केंद्र की कोई भूमिका नहीं है. उन्होंने कहा, ‘मैं विपक्ष से पूछना चाहता हूं कि इसमें केंद्र की क्या भूमिका है? यह सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हुआ है. ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए.’
उन्होंने यह भी साफ किया कि यह मसौदा पूरी तरह ‘निष्पक्ष’ है और जिनका नाम इसमें शामिल नहीं है उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि उन्हें भारतीय नागरिकता साबित करने का मौका मिलेगा.
एक तरफ जहां गृहमंत्री सरकार की भूमिका से इनकार कर रहे थे, वहीं उनकी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष इस पर अपनी पार्टी की पीठ ठोंक रहे थे.
सदन में एनआरसी के मुद्दे पर बोलते हुए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि इसे लागू करने की हिम्मत कांग्रेस में नहीं थी इसलिए यह योजना अब तक लंबित रही.
उन्होंने कहा कि 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने असम समझौते के तहत एनआरसी बनाने की घोषणा की थी. एनआरसी को असम समझौते की आत्मा बताते हुए उन्होंने कहा, ‘एनआरसी को अमल में लाने की कांग्रेस में हिम्मत नहीं थी, हममें हिम्मत है इसलिए हम इसे लागू करने के लिए निकले हैं.’
इसके बाद 40 लाख लोगों पर किए जा रहे सवाल पर उन्होंने कहा, ‘ये 40 लाख लोग कौन हैं? इनमें बांग्लादेशी घुसपैठिये कितने हैं? मैं पूछना चाहता हूं कि क्या आप बांग्लादेशी घुसपैठियों को बचाना चाहते हैं.’
उनके बयान से स्पष्ट था कि वे आश्वस्त थे कि ये 40 लाख लोग घुसपैठिये थे.
यहां जान लें कि एनआरसी की जड़ें असम के इतिहास से जुड़ी हुई हैं. 1979 से 1985 का समय राज्य में राजनीतिक अस्थिरता का था. इस बीच लगातार आंदोलन हुए, जिन्होंने कई बार हिंसक रूप भी लिया. जातीय हिंसा चरम पर रही. इसी बीच अगस्त 1985 को तत्कालीन राजीव गांधी सरकार और आंदोलन के नेताओं के बीच समझौता हुआ, जिसे असम समझौते के नाम से जाना गया.
लेकिन इसके बाद सरकार के कई प्रयासों के बाद भी इस पर कोई काम नहीं हो सका. 2013 में असम पब्लिक वर्क नाम के एनजीओ सहित कई अन्य संगठनों इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे.
2017 तक सुप्रीम कोर्ट में इस बारे में कुल 40 सुनवाइयां हुईं, जिसके बाद नवंबर 2017 में असम सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि 31 दिसंबर 2017 तक एनआरसी को अपडेट कर दिया जाएगा.
2015 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और निगरानी में यह शुरू हुआ और 2018 जुलाई में एनआरसी का रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया की ओर से फाइनल ड्राफ्ट जारी किया गया.
इस मसौदे के आने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी साफ कहा है कि जो लोग एनआरसी के ड्राफ्ट में जगह बनाने से छूट गए हैं, उनके द्वारा दाखिल की जाने वाली आपत्तियों की प्रक्रिया पूरी तरह से निष्पक्ष होनी चाहिए. वहीं चुनाव आयोग ने भी स्पष्ट किया कि एनआरसी से नाम हटने का मतलब यह नहीं है कि मतदाता सूची से भी ये नाम हट जाएंगे.
यानी न ही सुप्रीम कोर्ट और न ही चुनाव आयोग इन 40 लाख लोगों को ‘अवैध नागरिक’ मान रहे थे, लेकिन भाजपा के नेता लगातार इन्हें ‘घुसपैठिये’ और ‘बांग्लादेशी’ के नाम से पुकार रहे थे.
एक तरफ तो केंद्र सरकार इस मुद्दे पर राजनीति न करने की बात कर रही थी, तो दूसरी ओर पार्टी के विभिन्न नेता विभिन्न राज्यों में एनआरसी को लेकर अलग-अलग राग अलाप रहे थे.
31 जुलाई को राज्यसभा में एनआरसी जारी करने की भाजपा की हिम्मत का बखान करने के बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई.
यहां वे बोले कि केंद्र सरकार के किसी के साथ भेदभाव नहीं कर रही है. उन्होंने कहा, ‘मुझे संसद में बोलने नहीं दिया गया. मैं देशवासियों को कहना चाहता हूं कि एनआरसी से किसी भारतीय का नाम नहीं काटा गया है और जिनका नाम लिस्ट में नहीं है वे घुसपैठिये हैं.’
इस बात पर ज़ोर देते हुए वो यहां तक कह गए कि इस लिस्ट में जिनका नाम नहीं है वह घुसपैठिये हैं और इसमें किसी भारतीय नागरिक का नाम नहीं कटा है.
खुद रजिस्ट्रार जनरल आॅफ इंडिया शैलेश भी इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं थे. उन्होंने मसौदा जारी करते हुए कहा था कि इस संबंध में लोगों को आपत्ति जताने की पूर्ण और पर्याप्त गुंजाइश दी जाएगी.
लेकिन ऐसा लगता है कि भाजपा के नेता इन नागरिकों के ‘घुसपैठिये’ होने के बारे में पूरी तरह आश्वस्त हैं. तेलंगाना से भाजपा के विधायक टी. राजा सिंह ने इस बारे में टिप्पणी करते हुए कहा कि अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को वापस उनके देश नहीं लौटने पर गोली मार देनी चाहिए. हालांकि राजा सिंह अब पार्टी छोड़ दी है.
एनआरसी मसौदा जारी होने के बाद उन्होंने सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट पर एक वीडियो संदेश पोस्ट में कहा, ‘अगर ये लोग, अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या शराफत से नहीं लौटते हैं तो उन्हें उनकी भाषा में समझाने की जरूरत है. उन्हें गोली मार देनी चाहिए तभी भारतीय सुरक्षित रह सकेंगे.’
उन्होंने कहा कि 1971 के युद्ध के दौरान बड़ी संख्या में बांग्लादेशियों ने असम में घुसपैठ की, जहां 40 लाख लोग अब भी अवैध तरीके से रह रहे हैं.
एनआरसी को देश भर में लागू करने की मांग भी उठी और यह मांग ज्यादातर भाजपा नेताओं की ओर से की गयी. असम में नागरिकता संबंधी नियम देश भर से अलग हैं, असम समझौते के चलते वहां एनआरसी की ज़रूरत समझी गयी, लेकिन लगातार इसकी प्रक्रिया पर सवाल उठते रहे.
देश के विभिन्न राज्यों में असल में एनआरसी की ज़रूरत है या नहीं, यह कितनी महत्वपूर्ण होगी, इस बारे में कोई स्पष्ट विचार न होने के बावजूद भाजपा नेता ‘घुसपैठियों’ को देश से निकाल फेंकने की मांग दोहरा रहे थे.
भाजपा नेता नरेश अग्रवाल ने कहा कि देश के सभी राज्यों में इसका अनुसरण किया जाना चाहिए क्योंकि अवैध बांग्लादेशी शरणार्थी देश के कई हिस्सों में रह रहे हैं.
नरेश अग्रवाल ने कहा, ‘यह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा है. उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और अन्य ऐसे राज्य हैं जहां असम की ही भांति अवैध बांग्लादेशी शरणार्थी रह रहे हैं.’
बीते एक अगस्त को दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष मनोज तिवारी ने भी मांग की थी कि दिल्ली में भी एनआरसी की तरह सर्वे करवाया जाना चाहिए. तिवारी ने केंद्रीय गृहमंत्री को पत्र लिखकर कहा कि दिल्ली में भी बड़ी संख्या में रोहिंग्या और विदेशी घुसपैठिये रह रहे हैं.
बिहार भाजपा के वरिष्ठ नेता और सांसद अश्विनी चौबे का बयान भी आया. उन्होंने कहा, ‘ऐसे घुसपैठिये चाहे बंगाल में हों, बिहार में हों या दिल्ली में इन्हें निकाल कर बाहर करना चाहिए. निश्चित रूप से बांग्लादेशी बिहार में हैं, बंगाल में हैं. निश्चित रूप से जो असम में हुआ है वो बिहार में भी होना चाहिए. बिहार हो, बंगाल हर जगह करना चाहिए.’
वहीं बिहार के ही एक अन्य भाजपा नेता भी एनआरसी मसौदा जारी होने के बाद घुसपैठियों और शरणार्थियों में अंतर बताते नज़र आये. बिहार सरकार में पीडब्ल्यूडी मंत्री विनोद नारायण झा ने कहा कि शरणार्थियों और घुसपैठियों में अंतर होता है. विपक्ष को ये सोचना चाहिए कि ये देश भारतीयों के लिए है, किसी घुसपैठियों के लिए नहीं.
हालांकि इस बीच भाजपा महासचिव राम माधव ने कहा कि एनआरसी केवल असम तक सीमित रहेगा. एनआरसी में ‘नेशनल’ शब्द इस्तेमाल किया गया है, लेकिन अब तक यह केवल असम के लिए ही है.
एनआरसी का सबसे ज़्यादा विरोध पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने किया था, उनके विरोध के बाद पश्चिम बंगाल के भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष भी पीछे नहीं रहे.
घोष ने मसौदा जारी होने के बाद कहा, ‘अगर भाजपा यहां (बंगाल में) चुनाव जीतकर सत्ता में आई तो यहां भी एनआरसी लागू किया जाएगा. यहां रहने वाले तमाम अवैध नागरिकों को बांग्लादेश भेज दिया जाएगा. साथ ही घुसपैठियों का समर्थन करने वालों को भी देश से बाहर निकाल दिया जाएगा.
वहीं भाजपा महासचिव और पश्चिम बंगाल में पार्टी के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने भी कहा कि पश्चिम बंगाल का युवा चाहता है कि बांग्लादेश से आए घुसपैठियों की पहचान हो, जिसकी वजह से उन्हें काफी दिक्कतों जैसे कि बेरोजगारी और कानून व्यवस्था का सामना करना पड़ रहा है. भाजपा उनकी मांगों का समर्थन करती है.
2 अगस्त को भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा में मांग उठाई कि एनआरसी पूरे देश में लागू होनी चाहिए.
दुबे ने कहा कि एनआरसी का मुद्दा पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण है. पूर्वी बंगाल से पश्चिमी बंगाल में लगातार पलायन होता रहा. असम में गोपीनाथ बारदोलोई ने इस विषय पर आंदोलन भी चलाया था. असम में एक लाख एकड़ भूमि पर ऐसे लोगों को बसाया भी गया. उन्होंने यह भी दावा किया कि जम्मू कश्मीर, पूर्वोत्तर समेत कई क्षेत्रों में जनगणना नहीं हुई है और एक खास समुदाय की जनसंख्या काफी बढ़ी है.
इस बीच असम के राज्यपाल प्रो. जगदीश मुखी ने एनआरसी को उपलब्धि करार दिया और इसे देश में घुसपैठ की समस्या का कारगर समाधान बताया.
उन्होंने भी देश भर में एनआरसी लागू करने की पैरवी की और कहा कि जिस प्रकार से असम ने अपनी एनआरसी तैयार की है, देश के हित में यह बेहतर होगा कि हर राज्य अपनी एनआरसी तैयार कराए ताकि देश की सरकार को और राज्य की सरकार को यह पूर्ण जानकारी रहे कि राज्य और देश में कौन विदेशी रह रहे हैं और जो विदेशी रह रहे हैं उनको भी यह जानकारी हो कि वे बतौर विदेशी रह रहे हैं.
भाजपा नेताओं के इन दावों के बीच कई बार असम एनआरसी कोऑर्डिनेटर प्रतीक हजेला द्वारा कहा गया कि नागरिकों को डरने की आवश्यकता नहीं है. इस मसौदे के बारे में आपत्तियां 7 अगस्त के बाद दर्ज की जा सकेंगी, लेकिन भाजपा नेताओं को शायद इससे कोई फर्क नहीं पड़ा.
एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में पहुंचे भाजपा नेता एनआरसी ड्राफ्ट के पूरे होने की बात तो कह रहे थे, लेकिन इन नागरिकों को ‘घुसपैठिया’ ही कह रहे थे.
7 अगस्त को न्यूज18 इंडिया के एक कार्यक्रम में अमित शाह ने कहा कि जिनका नाम एनआरसी में नहीं है, उनसे वोट देने का अधिकार ले लेना चाहिए. ये घुसपैठिये हैं. लेकिन जब तक एनआरसी ड्राफ्ट का काम पूरा नहीं हो जाता सभी को एक मौका दिया जाएगा. ऐसे लोग अपनी नागरिकता का सबूत पेश कर सकते हैं.
इसी कार्यक्रम में भाजपा नेता राम माधव और सुब्रमण्यम स्वामी भी इस बात पर राज़ी दिखे कि इन लोगों से वोट देने का अधिकार वापस ले लेना चाहिए.
लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने स्पष्ट कर चुके थे कि एनआरसी से नाम हटने पर मतदाता सूची से स्वत: नाम कटने का अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए.
लेकिन इसके बावजूद भाजपा नेताओं की देश की सुरक्षा के लिए ‘घुसपैठियों’ को बाहर निकालने हुंकार धीमी नहीं पड़ी.
11 अगस्त को खुदीराम बोस की पुण्यतिथि पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह कोलकाता पहुंचे और एक रैली में कहा कि एनआरसी का मतलब घुसपैठियों को देश से भगाना है. घुसपैठिये टीएमसी के वोटर हैं. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को निशाने पर लेते हुए वे यह भी बोले, ‘ममता दीदी, एनआरसी आपके रोकने से नहीं रुकेगी.’
इसके बाद 13 अगस्त को मेरठ पहुंचे शाह ने कहा, ‘हमने बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर साहस दिखाया तो कांग्रेस ने बखेड़ा शुरू कर दिया. ममता बनर्जी भी हाय-तौबा मचा रही हैं. हमारा साफ कहना है कि हमारे नेता नरेंद्र मोदी ने 56 इंच का सीना दिखाया है और एक भी घुसपैठिये को हम देश में रहने नहीं देंगे.’
उनके साथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी थे. एनआरसी के मुद्दे पर बोलने से वे भी नहीं चूके. उन्होंने कहा कि अगर ज़रूरत हुई तो उत्तर प्रदेश में भी एनआरसी लागू किया जाएगा. देश एक भी घुसपैठिया स्वीकार नहीं करेगा.
इस बीच भाजपा के एक अन्य नेता भी पीछे नहीं रहे. भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओम माथुर ने कहा देश को किसी भी सूरत में धर्मशाला नहीं बनने देंगे और 2019 में सत्ता में आने के बाद एनआरसी को संपूर्ण देश में लागू किया जाएगा.
उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर आरोप लगाते हुए कहा कि वे अपने परिवार के प्रति भी वफादार नहीं है, क्योंकि एनआरसी की शुरुआत तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ही की थी लेकिन कांग्रेस दस साल के कार्यकाल में एनआरसी को लागू करने की हिम्मत नहीं जुटा सकी.
हालांकि इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नागरिकों को आश्वस्त किया कि किसी भी भारतीय नागरिक को देश नहीं छोड़ना पड़ेगा.
समाचार एजेंसी एएनआई को दिए एक साक्षात्कार में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘मैं जनता को आश्वस्त करता हूं कि किसी भी भारतीय को देश नहीं छोड़ना पड़ेगा. लोगों को उचित प्रक्रिया के तहत संभावित अवसर दिए जाएंगे. एनआरसी हमारा वादा था जो हमने माननीय सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में पूरा किया. यह राजनीति नहीं बल्कि जनता के बारे में है. अगर कोई इसके बारे में राजनीति कर रहा है, तो यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है.’
प्रधानमंत्री ने तो यह कह दिया, लेकिन पार्टी के अलग-अलग नेताओं के बयान इस मामले पर हो रही राजनीति में आग में घी का ही काम कर रहे हैं. एनआरसी को लेकर भाजपा का ही एकमत न होना जनता से जुड़े इस संवेदनशील मुद्दे को लेकर उनकी गंभीरता पर सवाल खड़े करता है.