पर्यावरणविद माधव गाडगिल ने 2011 में सौंपी एक रिपोर्ट में केरल में बाढ़ की आशंका जताई थी. पूर्व सूचना आयुक्त शैलेष गांधी ने बताया कि इस रिपोर्ट को केंद्र सरकार ने देश के आर्थिक हितों पर प्रभाव का हवाला देते हुए आरटीआई के तहत सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया था.
मुंबई: केंद्रीय सूचना आयोग के पूर्व सूचना आयुक्त शैलेष गांधी ने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा पश्चिमी घाट के बारे में माधव गाडगिल पैनल द्वारा तैयार की गयी पारिस्थितिकीय रिपोर्ट (इकोलॉजिकल रिपोर्ट) की जानकारी आरटीआई के तहत देने से इनकार कर दिया था.
हालांकि केंद्रीय सूचना आयोग और हाईकोर्ट के आदेश के बाद सरकार को गाडगिल रिपोर्ट सार्वजनिक करना पड़ा.
माधव गाडगिल मशहूर पर्यावरणविद हैं, जिन्होंने केरल में आई हालिया बाढ़ के बाद चेताया है कि यदि गोवा ने पर्यावरण को लेकर ऐहतियात नहीं बरता, तो वहां भी केरल जैसा हश्र हो सकता है.
मालूम हो कि केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने मार्च 2011 में पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ समिति (वेस्टर्न घाट्स इकोलॉजिकल एक्सपर्ट कमेटी) का गठन किया था और माधव गाडगिल इसके प्रमुख थे. कमेटी ने 31 अगस्त 2011 को केंद्र सरकार को रिपोर्ट सौंप दी थी.
तब ही माधव गाडगिल ने केरल बाढ़ की आशंका जताई थी. उस समय इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया था. केरल में आई भीषण बाढ़ के बाद यह रिपोर्ट चर्चा में है.
शैलेश गांधी ने द वायर को बताया, ‘गाडगिल रिपोर्ट सार्वजनिक करने के लिए एक आरटीआई दायर की गई थी, जिस पर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इस पर जानकारी देने से मना कर दिया था. जब ये मामला आयोग में आया तो मैंने मंत्रालय के संबंधित अधिकारी से पूछा कि आखिर किस वजह से आप इस पर जानकारी देने से मना कर रहे हैं.’
गांधी ने कहा कि अधिकारी ने इस पर सही से जवाब नहीं दिया बस इतना कहा कि अगर इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करते हैं तो भारत के आर्थिक हितों पर प्रभाव पड़ेगा. इसके बाद सूचना आयुक्त ने अपने फैसले में आदेश दिया कि आवेदनकर्ता को गाडगिल रिपोर्ट की जानकारी मुहैया कराया जाए.
पिछले हफ्ते ही गाडगिल ने कहा था कि यह मानव निर्मित आपदा है और नदियों के किनारे अवैध निर्माण और अनाधिकृत खनन ने इस आपदा को न्योता दिया है.
पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त (सीआईसी) शैलेष गांधी ने बताया कि उन्होंने पर्यावरण मंत्रालय को नौ अप्रैल, 2012 को पारित आदेश में रिपोर्ट सार्वजनिक करने को कहा था.
उन्होंने कहा कि इस आदेश के बाद आरटीआई आवेदक ने 2012 में दूसरी अपील की थी. सीआईसी का कहना था कि ये सारे रिपोर्ट्स करदाताओं के पैसे से तैयार किए जाते हैं इसलिए इन्हें जल्द से जल्द सार्वजनिक किया जाना चाहिए.
मंत्रालय ने सीआईसी के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी और रिपोर्ट नहीं सार्वजनिक करने की मांग की. हालांकि हाईकोर्ट ने सीआईसी के फैसले को सही माना और कहा कि गाडगिल रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाना चाहिए.
29 सितंबर 2011 में केरल के एर्नाकुलम निवासी जी कृष्णन ने रिपोर्ट का सारांश प्राप्त करने के लिए आरटीआई आवेदन किया था. तब संबंधित जनसूचना अधिकारी ने ये कहकर जानकारी देने से मना कर दिया था कि रिपोर्ट पूरी तरीके से तैयार नहीं है और इसका मसौदा अभी पर्यावरण मंत्रालय के सामने विचाराधीन है, इसलिए आरटीआई के तहत इसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है.
गांधी ने इसी मामले में ये भी आदेश दिया था कि इस तरह कि जितनी भी रिपोर्ट्स बनती हैं उसे 30-45 दिनों के भीतर वेबसाइट पर डालनी चाहिए. हालांकि शैलेष गांधी इस बात पर चिंता जताते हैं कि शायद ही उनके इस आदेश का पालन किया जा रहा है.