बाल आसरा घरों पर एनसीपीसीआर की रिपोर्ट ‘खौफनाक’, हम असहाय हैं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर हम कोई निर्देश देते हैं तो उसे 'न्यायिक सक्रियतावाद' करार दे दिया जाता है. यदि अधिकारियों ने ठीक से अपना काम किया होता तो बिहार में मुजफ्फरपुर जैसी घटनाएं नहीं होतीं.

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सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर हम कोई निर्देश देते हैं तो उसे ‘न्यायिक सक्रियतावाद’ करार दे दिया जाता है. यदि अधिकारियों ने ठीक से अपना काम किया होता तो बिहार में मुजफ्फरपुर जैसी घटनाएं नहीं होतीं.

सुप्रीम कोर्ट (फोटो: पीटीआई)
सुप्रीम कोर्ट (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: भारत में बाल आसरा घरों में बच्चों की स्थिति पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की रिपोर्ट को ‘खौफनाक’ करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह ‘असहाय’ है, क्योंकि इस मामले में अधिकारियों को कोई निर्देश दिए जाने पर उसे ‘न्यायिक सक्रियतावाद (ज्युडिशियल एक्टिविज्म)’ करार दे दिया जाएगा.

आसरा घरों पर एनसीपीसीआर की सोशल ऑडिट रिपोर्ट का जिक्र करते हुए जस्टिस मदन बी. लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि 2,874 बाल आसरा घरों में से सिर्फ 54 के लिए आयोग ने सकारात्मक टिप्पणी की है.

रिपोर्ट के मुताबिक, जिन 185 आसरा घरों का ऑडिट किया गया उनमें से सिर्फ 19 के पास वहां रह रहे बच्चों का लेखा-जोखा था.

जस्टिस एस. अब्दुल नजीर और दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि यदि अदालत ने इस मामले में कुछ कहा तो उस पर ‘न्यायिक सक्रियतावाद’ के आरोप लगेंगे, भले ही अधिकारी अपना काम करने में दिलचस्पी नहीं लें और सिर्फ जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ें और इन आसरा घरों की स्थिति के लिए एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ते रहें.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि अधिकारियों ने ठीक से अपना काम किया होता तो बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर जैसी घटनाएं नहीं होतीं. मुज़फ़्फ़रपुर के एक बालिका गृह में कई लड़कियों से बलात्कार और उनके यौन उत्पीड़न की घटना सामने आई है.

इस मामले में अदालत की मदद कर रहीं वकील अपर्णा भट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश ‘न्यायिक सक्रियता’ नहीं है, क्योंकि कोर्ट का आदेश आसरा घरों में रह रहे बच्चों की बेहतरी के लिए अहम है.

पीठ ने उनसे कहा, ‘क्या आपने एनसीपीसीआर की रिपोर्ट देखी है? यह खौफनाक है.’

इससे पहले शीर्ष अदालत उस वक्त हतप्रभ रह गई थी जब उसे बताया गया कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के निर्देश पर 2016-17 में कराए गए सर्वेक्षण के अनुसार, बाल देखभाल संस्थाओं (सीसीआई) में रहने वाले बच्चों की संख्या तकरीबन 4.73 लाख थी जबकि सरकार ने इस साल मार्च में जो आंकड़ा अदालत में दाखिल किया है उसमें उनकी संख्या 2.61 लाख बताई गई है.

कोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि शेष तकरीबन दो लाख बच्चों का क्या हुआ. ये बच्चे आंकड़ों से गायब प्रतीत हो रहे हैं. वहीं कोर्ट ने इस मामले में पश्चिम बंगाल सरकार को भी कड़ी फटकार लगाई थी.

इस मामले में अगली सुनवाई 20 सितंबर को होगी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)