बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले को आधार मानकर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने सभी मीडिया संस्थानों को परामर्श पत्र भेज कर कहा है कि खबरों में दलित शब्द की जगह अनुसूचित जाति शब्द का प्रयोग किया जाना चाहिए.
नई दिल्ली: सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने एक परामर्श जारी कर सभी मीडिया संस्थानों को बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले के आधार पर अनुसूचित जातियों से जुड़े लोगों के लिए ‘दलित’ शब्द के इस्तेमाल से बचने का आग्रह किया है.
परामर्श में चैनलों से आग्रह किया गया है कि वे अनुसूचित जाति के लोगों का उल्लेख करते हुए ‘दलित’ शब्द के इस्तेमाल से बच सकते हैं.
सात अगस्त को सभी निजी टीवी चैनलों को संबोधित करके लिखे गए पत्र में बॉम्बे हाईकोर्ट के जून के एक दिशा-निर्देश का उल्लेख किया गया है. उस दिशा-निर्देश में मंत्रालय को मीडिया द्वारा ‘दलित’ शब्द का इस्तेमाल नहीं करने को लेकर एक निर्देश जारी करने पर विचार करने को कहा गया था.
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के परामर्श पत्र में कहा गया, ‘मीडिया अनुसूचित जाति से जुड़े लोगों का जिक्र करते वक्त दलित शब्द के उपयोग से परहेज कर सकता है. ऐसा करना माननीय बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन करना होगा. इसके तहत मीडिया को अंग्रेजी में शिड्यूल कास्ट (अनुसूचित जाति) और दूसरी राष्ट्रीय भाषाओं में इसके उपयुक्त अनुवाद का इस्तेमाल करना चाहिए.’
पंकज मेशराम की याचिका पर बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने ये निर्देश दिया था.
एनडीटीवी की खबर के अनुसार, सरकार का परामर्श पत्र दो अदालत के फैसले पर आधारित है, लेकिन प्रतिबंध को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. राजनीतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं का मानना है कि एक शब्द पर प्रतिबंध लगने से उस समुदाय की स्थितियों में कोई सुधार नहीं आने वाला है.
समुदाय के लोग भी चिंतित हैं कि दलित शब्द पर प्रतिबंध अनुसूचित जाति पर हो रहे उत्पीड़न की रिपोर्टिंग को प्रभावित कर सकता है.
भाजपा सांसद उदित राज ने भी सरकार के इस परामर्श पत्र पर आपत्ति जताते हुए कहा, ‘दलित का मतलब अनुसूचित जाति ही होता है. ‘दलित’ शब्द को व्यापक रूप से उपयोग और स्वीकार किया जाता है. यह आदेश एक सलाह के रूप में ठीक है लेकिन इसे अनिवार्य नहीं किया जाना चाहिए.’
Dalit means scheduled class. The term 'Dalit' is widely used and accepted. An advisory is fine but it should not be made compulsory: Udit Raj BJP MP on an advisory by I&B ministry to the media to stop using the word 'Dalit’ pic.twitter.com/hios1lxeNC
— ANI (@ANI) September 4, 2018
जनवरी में एक याचिका का जवाब देते हुए मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने कहा था कि ‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि दलित शब्द का उपयोग सरकार द्वारा नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि संविधान में इसका उल्लेख नहीं किया गया है.’
इकोनॉमिक टाइम्स की खबर के अनुसार, प्राइवेट टेलीविजन न्यूज चैनलों का प्रतिनिधित्व करने वाली न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) के कुछ सदस्यों ने पिछले कुछ दिनों में इन नियमों का विरोध किया है. सूचना प्रसारण मंत्रालय के इस आदेश को लेकर एनबीए कानूनी कदम उठा सकता है और 20 सितंबर को इस मामले को लेकर बैठक करेगा.
एक सदस्य ने कहा कि चूंकि यह आदेश केवल टीवी चैनलों को भेजा गई है और प्रिंट या डिजिटल पब्लिकेशन्स से कुछ नहीं कहा गया है, इससे ये मसला उलझ गया है. एक सदस्य ने कहा, ‘एनबीए भी यह मामला जल्द उठा सकता है. हम एक और बैठक करेंगे, जिसके बाद आगे के कदम पर फैसला किया जाएगा.’
एनबीए के एक सदस्य ने अपना नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा, ‘दलित शब्द का इस्तेमाल लंबे समय से मीडिया रिपोर्टों में किया जा रहा है. राजनेता, शिक्षक और दलित नेता खुद इसका इस्तेमाल करते हैं.’
एक संपादक ने कहा कि यह बहुत मुश्किल है क्योंकि टीवी न्यूज़ चैनल पर कई बार पुरानी वीडियो दिखाई जाती है, जिसमें दलित शब्द का इस्तेमाल किया गया है. अब उन वीडियो में से दलित शब्दों को हटाना बेहद मुश्किल है. बहुत सारे नेता और शिक्षक शब्द का इस्तेमाल करते हैं, जिससे उन्हें चेतना और बल मिलता है.
उन्होंने आगे कहा, ‘यह एक सामाजिक तौर पर स्वीकार किया गया शब्द है, यह अपमानजनक नहीं है. इस वजह से हमें यह समझ नहीं आ रहा कि हमें इसका इस्तेमाल क्यों रोकना चाहिए? इसका इस्तेमाल लंबे समय से हो रहा है और हम कैसे पैनलिस्ट्स या मेहमानों को इसका इस्तेमाल करने से रोक सकते हैं.’
इससे पहले केंद्र सरकार ने 15 मार्च को केंद्र और राज्यों के सभी विभागों से आधिकारिक संचार में ‘दलित’ शब्द के इस्तेमाल से बचने और इसके स्थान पर अनुसूचित जाति (अनुसूचित जाति) का इस्तेमाल करने को कहा था.
(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)