पिछले दिनों पंजाब कैबिनेट ने धार्मिक ग्रंथों का अनादर करने के दोषियों को उम्रक़ैद की सज़ा देने के लिए भारतीय दंड संहिता और आपराधिक प्रक्रिया संहिता में संशोधनों के प्रस्ताव वाले विधेयक के मसौदे को मंज़ूरी दी है.
इंडोनेशिया पिछले दिनों अलग वजह से सुर्खियों में आया. वजह बनी 44 वर्षीय बौद्ध महिला, माईलाना- जिसे पिछले दिनों मेदान की जिला अदालत ने 18 माह की सजा सुना दी. वजह बताई गई कि चूंकि अपने घर के पास की मस्जिद में सुनाई जा रही अजान की अत्यधिक आवाज पर उसने आपत्ति जतायी थी और इस तरह धर्मविशेष के प्रति अपनी नफरत का प्रदर्शन किया था.
इंडोनेशिया के विवादास्पद ईशनिंदा कानून के तहत उसे सुनाई गई सजा की न केवल मानवाधिकार संगठनों ने बल्कि इंडोनेशिया के सबसे बड़े इस्लामिक संगठनों की तरफ से घोर भर्त्सना की गई है.
लोगों का साफ कहना है कि किस तरह लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन करने के लिए इस कानून का इस्तेमाल हो रहा है. याद रहे माईलाना की प्रतिक्रिया, ने चीनी विरोधी दंगे की शक्ल धारण की थी जिसमें कई बौद्ध मंदिरों का आग लगाई गई थी.
पिछले दिनों पंजाब कैबिनेट ने धार्मिक ग्रंथों का अनादर करने के दोषियों को उम्रकैद की सजा देने के लिए भारतीय दंड संहिता और आपराधिक प्रक्रिया संहिता में संशोधनों के प्रस्ताव वाले विधेयक के मसौदे को मंजूरी दी है.
भारत के दंड विधान में सेक्शन 295 एए को जोड़ने का प्रस्ताव भी इसमें शामिल किया गया है जिसके तहत कहा गया है कि जो कोई ‘जनता की धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाने के इरादे से श्री गुरु ग्रंथ साहिब, श्रीमद भगवदगीता, पवित्र कुरान और पवित्र बाइबिल की आलोचना करेगा, उसे नुकसान पहुंचाएगा या उनकी अवमानना करेगा’ उसे उम्र कैद की सजा सुनायी जाए.
देश के तमाम हिस्सों के प्रबुद्धजनों एवं इंसाफपसंद लोगों ने इस कानून पर अपनी आपत्ति जताई है.
एक अग्रणी अखबार (टाइम्स आॅफ इंडिया) ने लिखा है कि ‘अगर बाकी राज्यों ने भी इसी किस्म की धार्मिक लोकरंजकता का सहारा लिया तो वह दिन दूर नहीं जब भारत भी पाकिस्तान जैसा नजर आने लगेगा. ऐसे कानून जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की तुलना में आहत भावनाओं को वरीयता देते हैं उनका ऐसे लोगों के जरिए दुरुपयोग का रास्ता खुलता है, जो सभी की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित करना चाहते हैं. ऐसा रुख धर्मनिरपेक्ष जनतंत्र के लिए प्रतिकूल है और उसे अंदर से नष्ट कर सकता है.’
ध्यान रहे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में ऐसा ही कानून किस तरह लोगों पर कहर बरपा कर रहा है, इसकी मिसालें आए दिन सामने आती रहती हैं. वहां अब ऐसा आलम है कि ईशनिंदा कानून पर सवाल उठाना भी ईशनिंदा में शुमार किया जाने लगा है, जिसने वहां के दो दमदार राजनेताओं पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शाहबाज भट्टी को जान से हाथ धोना पड़ा है.
पंजाब के इस कानून पर आपत्ति दर्ज कराने वालों की इस कड़ी में रिटॉयर्ड सिविल सेवा अधिकारियों का ताजा बयान भी जुड़ा है. ‘कांस्टीट्यूशनल कंडक्ट’ नामक इस समूह द्वारा पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी के नाम खुला खत लिखा गया है.
इस पत्र में कहा गया है कि जहां धर्मनिरपेक्षता के उसूलों के तहत राज्य के मामलों से धर्म की भूमिका को लगातार कम करते जाने की बात शामिल रही है वहीं ‘यह कदम संकीर्णतावाद की पकड़ को मजबूत करेगा और सभी पक्षों के धार्मिक कट्टरपंथ को मजबूती दिलाएगा.’
ईशनिंदा कानूनों को ‘अभिव्यक्ति की आजादी के लिए सीधा खतरा’ बताते हुए, पत्र में कहा गया है कि दुनिया भर में ऐसे कानून ‘अल्पसंख्यकों और कमजोर तबकों के खिलाफ, उन्हें प्रताड़ित करने के लिए, उनसे बदला चुकाने के लिए और व्यक्तिगत तथा पेशागत विवादों को निपटाने के लिए’ इस्तेमाल होते रहे हैं और यह सभी ऐसे मामले होते हैं जिनका ईशनिंदा से कोई वास्ता नहीं होता है.
इस बात को रेखांकित करते हुए कि ‘भारत ने फौरी राजनीतिक फायदों के लिए, फिर चाहे शाहबानो का मसला हो, तस्लीमा नसरीन का मसला हो या बाबरी मस्जिद के गेट खोलने का मसला हो, विभिन्न धर्मों की अतिवादी भावनाओं का तुष्टीकरण करने के लिए बहुत कीमत पहले ही चुकाई है, इसलिए यह वक्त का तकाजा है कि सभी किस्म के धार्मिक मूलवाद को प्रदान किए जा रहे दायरे को अधिकाधिक सीमित किया जाए.’
पत्र में पंजाब के मुख्यमंत्री से मांग की गई है कि भारतीय दंड विधान (पंजाब संशोधन) विधेयक 2018 , तथा अपराध दंड संहिता (पंजाब संशोधन) विधेयक, 2018 को वापस ले.
याद रहे कि पंजाब के लिए वर्ष 2015 इस मामले में अक्सर सुर्खियों में रहा जब वहां धर्मग्रंथों के ‘अपवित्र’ करने की कई घटनाएं सामने आईं और लोग सड़कों पर आए. इस मामले को लेकर उत्तेजना इस कदर बढ़ी कि दो प्रदर्शनकारी भी मारे गए.
अपने आप को जनता की भावनाओं के साथ दिखाने के लिए पंजाब मंत्रिमंडल ने इस संबंध में एक बिल भी पारित किया (22 मार्च 2016) जिसके तहत ग्रंथों के ‘अपवित्र’ करने की सजा तीन साल से लेकर उम्र कैद कर दी गई, जिस बिल को 22 मार्च 2016 को पारित किया गया था.
अकाली दल- भाजपा की तत्कालीन सरकार द्वारा बनाए गए उस कानून का केंद्र सरकार ने इस आधार पर लौटा दिया था कि उसमें सिर्फ गुरुग्रंथ साहिब का जिक्र था. अब राज्य में सत्तासीन कांग्रेस सरकार ने अपनी पूर्ववर्ती सरकार के नक्शेकदम पर चलते हुए उसमें बाकी धर्मो के ग्रंथों को शामिल किया है और एक तरह से आहत भावनाओं के लिए उम्रकैद के लिए रास्ता खोल दिया है.
ध्यान रहे भारत के दंड विधान की धारा 295 एक- जिसमें एक पूरा अध्याय ‘धर्म से संबंधित उल्लंघनों’ को लेकर है वह ‘धर्म’ या ‘धार्मिकता’ को परिभाषित नहीं करता. कहने का तात्पर्य कि पंजाब सरकार का यह कानून जो धार्मिक ‘(जिसकी व्याख्या नहीं की जा सकती) भावनाओं (बहुत धुंधला इलाका) को आहत करने के नाम पर लोगों को जिंदगी भर जेलों में डाल सकता है.
आहत भावनाओं की यह दुहाई किस तरह मनोरंजन में मुब्तिला व्यक्ति को बुरी तरह प्रताड़ित करने का रास्ता खोलती है, इसकी मिसाल हम किकू शारदा के मसले में देख चुके हैं. याद रहे बलात्कार के आरोप में जेल की सलाखों के पीछे रह रहे राम रहीम सिंह की नकल उतारने के बाद उसके अनुयायियों ने किकू के खिलाफ केस दर्ज किया था और प्रताड़ना का उसका सिलसिला तब तक चलता रहा जब तक गिरफ्तारी में चल रहे किकू को बाबा ने ‘माफ’ नहीं किया था.
विडम्बना ही है कि ऐसा कानून किस तरह आम लोगों के लिए जानलेवा साबित हो सकता है, इस अनुभव को भी पंजाब की कांग्रेस सरकार ने ध्यान में नहीं रखा है, जिसके चलते दो साल पहले दो महिलाएं मार दी गई हैं. इसे विचित्र संयोग कहा जाना चाहिए कि दोनों ही मामलों में मारी गई महिलाओं का नाम बलविंदर कौर था.
अगर एक बलविंदर कौर अमृतसर के वेरोके गांव में अपने घर में ही मार दी गई थी (रविवार, 9 सितंबर 2016) तो दूसरी बलविंदर कौर को एक साजिश रचकर अतिवादियों ने मार गिराया था.
मालूम हो कि वेरोके गांव की 55 वर्षीय बलविंदर कौर जेल से जमानत पर रिहा होकर आयी थी. सिखों के धार्मिक ग्रंथ को अपवित्र करने के नाम पर उसे बीते दस नंवबर 2015 को जेल भेज दिया गया था.
मामला यही था कि बलविंदर चप्पल पहन कर वहां गुरुद्वारे के अंदर पहुंच गई थी और हंगामा इस कदर बढ़ा था जो उसकी गिरफ्तारी से ही शांत हो सका था. एक माह बाद उसे जमानत मिली थी, मगर ग्रंथ को ‘अपवित्र’ करने को लेकर उत्तेजना इस कदर रही है कि दस माह से उसका परिवार सामाजिक बहिष्कार का भी शिकार बनाया गया था.
पिछले दिनों उनके पति को उनकी हत्या में गिरफ्तार किया गया था, जो उनके द्वारा कराई गई घर की ‘बेइज्जती’ से क्षुब्ध था.
27 जुलाई 2016 को लुधियाना जिले में मारी गई एक अन्य महिला- जिसका नाम भी बलविन्दर कौर (उम्र 47 साल) था जो घवाड़ी गांव की रहने वाली थी और वह भी गुरुग्रंथसाहिब की ‘बेअदबी’ के मामले में जमानत पर रिहा होकर आयी थी.
लगभग दो दशकों से वह गुरुद्वारे में काम कर रही थी और उस पर यह आरोप लगा कि उसने गुरुग्रंथसाहिब के पन्ने फाड़ दिए थे, जबकि उसके परिवारवालों का कहना था कि गांव के वर्चस्वशाली लोगों ने उसे फंसाया था.
पुलिस के मुताबिक उसे किसी ने फोन करके आलमगिर के गुरुद्वारा मांजी साहिब के सामने बुलाया था तथा यह आश्वासन दिया था कि वह उसे स्वर्ण मंदिर ले जाएंगे ताकि उस पर लगा यह ‘दाग’ मिट जाए. और जब वह अपने बेटे के साथ ऑटो में बैठ कर वहां पहुंची तो वहां पहले से खड़े दो मोटरसाइकिल सवारों ने उसे गोलियों से भून डाला. इस मामले में पकड़े गए दो अभियुक्त किसी रेडिकल सिख संगठन से संबंधित बताए गए थे.
(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता और चिंतक हैं.)