मध्य प्रदेश के मंत्री नरोत्तम मिश्रा को पेड न्यूज़ के आरोप में तीन साल के लिए अयोग्य ठहराने के चुनाव आयोग के फैसले को निरस्त करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.
नई दिल्ली: चुनाव आयोग ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि किसी नेता द्वारा प्रशंसात्मक समाचार लेख में अपने रिकॉर्ड तथा उपलब्धियों का बखान करते हुए अपने समर्थन में वोटों की अपील करने को ‘पेड न्यूज़’ माना जाना चाहिए.
मध्य प्रदेश के मंत्री नरोत्तम मिश्रा को पेड न्यूज़ के आरोप में तीन साल के लिए अयोग्य ठहराने के आयोग के फैसले को निरस्त करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती देते हुए आयोग ने दावा किया कि उच्च न्यायालय ने पेड न्यूज़ की समस्या पर काबू पाने के लिए कार्रवाई करने की उसकी भूमिका सीमित करके ग़लती की है.
आयोग ने अपनी अपील में कहा कि जब ज़्यादा प्रसार वाले दैनिक अख़बारों में किसी उम्मीदवार द्वारा और उनके नाम से जारी ऐसे बयान नज़र आते हैं, जो न केवल उनके रिकॉर्ड तथा उपलब्धियों की प्रशंसा करने वाले हैं बल्कि उम्मीदवार द्वारा ख़ुद मतदाताओं से सीधी अपील करने वाले हैं तो क्या चुनाव आयोग के लिए ऐसे बयानों को समाचार नहीं मानते हुए ‘पेड न्यूज़’ मानना ग़लत होगा.
आयोग ने शीर्ष अदालत से इस मुद्दे पर ग़ौर करने को कहा क्योंकि इस तरह के प्रश्न चुनावों के दौरान अक्सर पूछे जाते हैं.
चुनाव आयोग की ओर से कहा गया कि जब उम्मीदवार एक निश्चित समयसीमा तक चुनाव ख़र्च के लिए जवाबदेह होता तब चुनाव प्रचार के दौरान उसे दी जाने वाली अन्य सुविधाओं पर छूट नहीं मिलनी चाहिए.
हाईकोर्ट के 18 मई के फैसले को चुनौती देते हुए चुनाव आयोग ने दलील दी कि उम्मीदवार के पास इस बात का सबूत होना चाहिए कि उस अवधि के दौरान वह धर्मार्थ सेवाओं या समाचारों से दूर रहा.
चुनाव आयोग ने कहा, ‘चुनाव अवधि के दौरान अगर स्वतंत्र भाषण की आड़ में इस तरह के प्रेरित प्रचार की अनुमति मिल जाएगी तो मज़बूत नेटवर्क वाला उम्मीदवार समाज में अपने प्रभाव क्षेत्र का नाजायज़ फायदा उठा सकता है.’
चुनाव आयोग ने हाईकोर्ट के 18 मई के आदेश पर रोक लगाने की मांग कि जिसमें मध्य प्रदेश के जनसंपर्क, जल संसाधन और संसदीय मामलों के मंत्री नरोत्तम मिश्रा को अयोग्य ठहराने के फैसले को रद्द कर दिया था.
चुनाव आयोग ने कांग्रेस नेता राजेंद्र भारती की शिकायत पर 23 जून 2017 को अपना फैसला सुनाया था और तीन साल के लिए मिश्रा को अयोग्य करार दिया था.
जनप्रतिनिधित्व क़ानून, 1951 की धारा 10 (ए) के तहत वे तीन साल के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहराए गए थे. तो वहीं, धारा 7 (बी) के तहत उनकी विधानसभा की सदस्यता रद्द हो गई थी. जिससे वे विधानसभा के सदस्य भी नहीं रह सकते थे.
गौरतलब है कि राजेंद्र भारती ने 2008 में डबरा विधानसभा सीट से मिश्रा के खिलाफ चुनाव लड़ा था.
चुनाव आयोग ने 2008 के विधानसभा चुनाव में चुनावी ख़र्च के बारे में गलत जानकारी देने का उन्हें दोषी ठहराया था. फैसले के खिलाफ मिश्रा सुप्रीम कोर्ट चले गए थे, जहां से उन्हें स्टे मिल गया था.
दैनिक भास्कर की ख़बर के मुताबिक, मिश्रा ने आयोग के फैसले को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच में चुनौती दी थी, लेकिन वकीलों की हड़ताल के चलते सुनवाई नहीं हुई. जिसके बाद मामला जबलपुर हाईकोर्ट पहुंचा. हाईकोर्ट ने इसे सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने इसे दिल्ली हाईकोर्ट भेज दिया.
चुनाव आयोग ने कहा कि नरोत्तम मिश्रा को अयोग्य ठहराने का निर्णय हमारी पेड न्यूज़ कमेटी की रिपोर्ट के बाद दिया गया, जिसमें समिति ने बताया था कि नरोत्तम मिश्रा को लेकर 42 ख़बरें या लेख ऐसे थे जो पक्षपातपूर्ण, एकतरफा और उन्हें फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से लिखे गए थे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)