देश के 46वें मुख्य न्यायाधीश बने जस्टिस रंजन गोगोई. जस्टिस रंजन गोगोई का कार्यकाल 13 महीने से थोड़ी अधिक अवधि का होगा और वह 17 नवंबर, 2019 को सेवानिवृत होंगे.
नई दिल्ली: न्यायिक प्रक्रिया और कार्यवाही के संदर्भ में एक सख़्त न्यायाधीश के तौर पर पहचान रखने वाले जस्टिस रंजन गोगोई ने बुधवार को देश के 46वें प्रधान न्यायाधीश का पदभार संभाल लिया. वह पूर्वोत्तर से न्यायपालिका के इस शीर्ष पद पर पहुंचने वाली पहली हस्ती हैं.
तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की कार्यशैली और मुक़दमों के आवंटन की प्रक्रिया पर सवाल उठाने वाले न्यायाधीशों में शामिल रहे जस्टिस रंजन गोगोई को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बुधवार तीन अक्टूबर को राष्ट्रपति भवन में प्रधान न्यायाधीश पद की शपथ दिलायी.
जस्टिस रंजन गोगोई ने जस्टिस दीपक मिश्रा का स्थान लिया है, जिनका कार्यकाल दो अक्टूबर को समाप्त हो गया था. असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) और लोकपाल क़ानून के तहत लोकपाल संस्था की स्थापना जैसे विषयों पर सख़्त रुख़ अपनाने वाले जस्टिस गोगोई 17 नवंबर 2019 को सेवानिवृत्त होने तक तकरीबन 13 महीने देश के प्रधान न्यायाधीश रहेंगे.
जस्टिस गोगोई इस साल तब सुर्ख़ियों में आए थे जब निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की कार्यशैली को लेकर 12 जनवरी को जस्टिस जे. चेलमेश्वर के नेतृत्व में चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी. इन चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों में जस्टिस गोगोई भी शामिल थे. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में न्यायाधीशों ने तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश पर कई आरोप लगाये थे.
भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में संभवत: यह ऐसी पहली घटना थी.
उन्होंने बाद में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा था, ‘स्वतंत्र न्यायाधीश और आवाज़ उठाने वाले पत्रकार लोकतंत्र की रक्षा की पहली पंक्ति हैं.’ उनका यह भी कहना था कि न्यायपालिका के संस्थान को आम लोगों के लिए सेवा योग्य बनाए रखने के लिए सुधार नहीं क्रांति की जरूरत है.
पिछले सप्ताह एक अन्य सार्वजनिक समरोह में उन्होंने कहा था कि देश के प्रधान न्यायाधीश के तौर पर उनकी प्राथमिकता मामलों के ‘बैकलॉग’ से निपटना है.
केरल में फरवरी, 2011 में एक ट्रेन में हुए सनसनीखेज सौम्या बलात्कार और हत्या मामले में शीर्ष अदालत के निर्णय से असहमति व्यक्त करते हुए पूर्व न्यायाधीश मार्कण्डेय काटजू ने तब सोशल मीडिया पर तल्ख़ टिप्पणियां कीं थीं. इसे लेकर जस्टिस गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने 11 नवंबर, 2016 को पूर्व सहयोगी जस्टिस मार्कण्डेय काटजू को अवमानना का नोटिस जारी करके सनसनी पैदा कर दी थी.
यह पहला मौका था जब शीर्ष अदालत ने अपने ही पूर्व सदस्य के ख़िलाफ़ स्वत: अवमानना का नोटिस जारी किया था. जस्टिस काटजू ने बाद में अपनी टिप्पणियों के लिए न्यायालय से क्षमा मांग ली थी जिसे स्वीकार करते हुये जस्टिस गोगोई की पीठ ने मामला ख़त्म कर दिया था.
इसी तरह, असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के मसौदे के संबंध में मीडिया से बात करने पर इस काम से जुड़े अधिकारियों को आड़े हाथ लेते हुए जस्टिस गोगोई की पीठ ने उन्हें सख़्त चेतावनी दी थी.
शीर्ष अदालत के फैसले के बावजूद लोकपाल संस्था की स्थापना और लोकपाल की नियुक्ति में हो रहे विलंब को लेकर दायर अवमानना याचिका पर भी जस्टिस गोगोई की पीठ ने सख़्त रुख़ अपना रखा है.
जस्टिस गोगोई की 23 अप्रैल, 2012 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर पदोन्नति हुई थी.
पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने मुख्य न्यायाधीश के बाद के वरिष्ठतम जज के नाम की सिफारिश करने की परंपरा के अनुसार इस महीने की शुरुआत में जस्टिस गोगोई के नाम की सिफारिश अपने उत्तराधिकारी के तौर पर की थी.
मामलों के अविलंब उल्लेख, सुनवाई के लिए मानदंड तय किए जाएंगे: सीजेआई रंजन गोगोई
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने बुधवार को कहा कि मामलों के अविलंब उल्लेख और सुनवाई के लिये ‘मानदंड’ तय किए जाएंगे.
भारत के 46वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ लेने के बाद उन्होंने कहा, ‘जब तक कुछ मानदंड तय नहीं कर लिए जाते, तब तक मामलों के अविलंब उल्लेख की अनुमति नहीं दी जाएगी.’
उन्होंने कहा, ‘हम मानदंड तय करेंगे, उसके बाद देखेंगे कि कैसे मामलों का उल्लेख किया जाएगा.’ उन्होंने कहा, ‘अगर किसी को कल फांसी दी जा रही हो तब हम (अत्यावश्यकता को) समझ सकते हैं.’
कांग्रेस ने जस्टिस रंजन गोगोई को देश का प्रधान न्यायाधीश नियुक्त किए जाने का स्वागत किया है.
न्यायपालिका के शीर्ष पद पर पहुंचने के लिए जस्टिस रंजन गोगोई ने लंबा सफर तय किया
देश के मुख्य न्यायाधीश बने जस्टिस रंजन गोगोई ने न्यायपालिका के शीर्ष पद तक पहुंचने के लिए एक लंबा सफर तय किया है और वह इस पद पर पहुंचने वाले पूर्वोत्तर के पहले शख्स हैं.
18 नवंबर, 1954 को जन्मे जस्टिस रंजन गोगोई ने डिब्रूगढ़ के डॉन बॉस्को स्कूल से अपनी शुरुआती पढ़ाई की और दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से इतिहास की पढ़ाई की.
असम के पूर्व मुख्यमंत्री केशव चंद्र गोगोई के बेटे जस्टिस रंजन गोगोई ने 1978 में वकालत के लिए पंजीकरण कराया था. उन्होंने संवैधानिक, कराधान और कंपनी मामलों में गौहाटी उच्च न्यायालय में वकालत की.
उन्हें 28 फरवरी, 2001 को गौहाटी उच्च न्यायालय का स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया था.
गोगोई को नौ सितंबर, 2010 को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में तबादला किया गया. उन्हें 12 फरवरी, 2011 को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था.
वह 23 अप्रैल, 2012 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त किए गए.
63 वर्षीय जस्टिस रंजन गोगोई जनवरी में सुप्रीम कोर्ट के तीन अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीशों के साथ संवाददाता सम्मेलन कर तथा उसके चार महीने बाद अपने एक बयान से सुर्खियों में आए थे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)