डॉ. मिरेकल के नाम से मशहूर डॉ. डेनिस मुकवेगे ने युद्ध प्रभावित कांगो गणराज्य में बलात्कार पीड़ित महिलाओं का तकरीबन दो दशक तक इलाज किया है. वहीं मुराद इराक की उन युवतियों में से एक हैं जो आतंकी संगठन आईएस की सेक्स स्लेव रहीं और आईएस के चंगुल से छूटने के बाद अपने जैसी महिलाओं के लिए काम किया.
ओस्लो (नॉर्वे): कांगो के चिकित्सक डेनिस मुकवेगे और यजीदी कार्यकर्ता नादिया मुराद को विश्वभर के युद्धग्रस्त क्षेत्रों में यौन हिंसा के खिलाफ काम करने के लिए 2018 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए चुना गया है.
नोबेल समिति की अध्यक्ष बेरिट रेइस एंडरसन ने नामों की घोषणा करते हुए कहा कि यौन हिंसा को युद्ध के हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने पर रोक लगाने के इनके प्रयासों के लिए इन दोनों को चुना गया है.
Nadia Murad, awarded the 2018 Nobel Peace Prize, is the witness who tells of the abuses perpetrated against herself and others. She has shown uncommon courage in recounting her own sufferings and speaking up on behalf of other victims.#NobelPrize pic.twitter.com/NeF70ig09J
— The Nobel Prize (@NobelPrize) October 5, 2018
उन्होंने कहा, ‘एक अति शांतिपूर्ण विश्व तभी बनाया जा सकता है जब युद्ध के दौरान महिलाओं, उनके मूलभूत अधिकारों और उनकी सुरक्षा को मान्यता और सुरक्षा दी जाएगी. दोनों वैश्विक अभिशाप के खिलाफ संघर्ष का उदाहरण हैं जो केवल एक देश में नहीं बल्कि बड़े पैमाने पर है और मीटू अभियान इसे साबित करता है.’
63 वर्षीय मुकवेगे को युद्ध प्रभावित पूर्वी लोकतांत्रिक कांगो गणराज्य में यौन हिंसा और बलात्कार पीड़ित महिलाओं को हिंसा और सदमे से बाहर निकालने के क्षेत्र में दो दशक तक काम करने के लिए चुना गया है.
मुकवेगे ने 1999 में दक्षिण कीव में पांजी अस्पताल खोला था जहां उन्होंने बलात्कार पीड़ित लाखों महिलाओं, बच्चों और यहां तक कि कुछ माह के शिशुओं का भी इलाज किया है.
The physician Denis Mukwege, awarded the Nobel Peace Prize, has spent large parts of his adult life helping the victims of sexual violence in the Democratic Republic of Congo. Dr. Mukwege and his staff have treated thousands of patients who have fallen victim to such assaults. pic.twitter.com/9CrNWfj7zu
— The Nobel Prize (@NobelPrize) October 5, 2018
इन्हें ‘डॉक्टर मिरेकल’ के नाम से भी जाना जाता है. इसके साथ ही वह युद्ध के दौरान महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मुखर विरोधी हैं.
डेनिस मुकवेगे ने महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा और युद्ध के हथियार के रूप में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के प्रयोग को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाने के लिए कांगो सरकार और अन्य देशों की आलोचना की है.
मुकवेगे के अलावा समिति ने नादिया मुराद को भी नोबेल शांति पुरस्कर के लिए चुना है. मुराद इराक से हैं और यजीदी समुदाय से ताल्लुक रखती हैं.
आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने उन्हें 2014 में अगवा कर लिया था. आतंकवादियों के चंगुल से फरार होने से पहले तीन महीने तक इन्हें यौन दासी बना कर रखा गया था.
मुराद उन 3,000 यजीदी लड़कियों और महिलाओं में से एक है जो कि आईएस द्वारा बलात्कार और अन्य दुर्व्यवहार का शिकार रही हैं. ऐसा करना आईएस की सैन्य रणनीति का हिस्सा था. आतंकी संगठन ने यौन हिंसा को यज़ीदी और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ लड़ाई में एक हथियार के रूप में कार्य किया था.
नार्वे की नोबेल समिति ने कहा, ‘डेनिस मुकवेगे और नादिया मुराद दोनों ने युद्ध अपराधों के खिलाफ लड़ाई छेड़ने और पीड़ितों को न्याय की मांग करके अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डाला है. इस प्रकार उन्होंने अंतरराष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों को लागू कर देशों के बीच भाईचारे का प्रचार प्रसार किया है.’
गौरतलब है कि इस प्रतिष्ठित सम्मान के लिए 331 व्यक्तियों और संगठनों को नामित किया गया था. यह पुरस्कार यहां 10 दिसंबर को प्रदान किया जाएगा.
नादिया मुराद: आतंकी संगठन आईएस की सेक्स स्लेव से नोबेल सम्मान तक का मुश्किल सफ़र
बगदाद (इराक): इराक में आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट के पैर पसारते ही खुशहाली की ज़िंदगी जी रहे यजीदी समुदाय के लोगों का ख़राब वक़्त शुरू हो गया था.
आतंकवादियों के चंगुल से किसी तरह जान बचाकर भागीं यजीदी महिला 25 वर्षीय नादिया मुराद उत्तरी इराक के सिंजर के निकट के गांव में शांतिपूर्वक जीवन जी रही थीं लेकिन 2014 में इस्लामिक स्टेट के आंतकवादियों के जड़े जमाने के साथ ही उनके बुरे दिन शुरू हो गए.
वह सिंजर के जिस गांव में रह रही थीं, उसकी सीमा सीरिया के साथ लगती है और यह इलाका किसी ज़माने में यजीदी समुदाय का गढ़ था.
उसी साल अगस्त के एक दिन काले झंड़े लगे जिहादियों के ट्रक उनके गांव कोचो में धड़धड़ाते हुए घुस आए. इन आतंकवादियों ने पुरुषों की हत्या कर दी, बच्चों को लड़ाई सिखाने के लिए और हज़ारों महिलाओं को यौन गुलाम (सेक्स स्लेव) बनाने और बलपूर्वक काम कराने के लिए अपने क़ब्ज़े में ले लिया.
आज मुराद और उनकी मित्र लामिया हाज़ी बशर तीन हज़ार लापता यजीदियों के लिए संघर्ष कर रहीं हैं. माना जा रहा है कि ये अभी भी आईएस के क़ब्ज़े में हैं.
दोनों को यूरोपीय संघ का 2016 शाखारोव पुरस्कार दिया जा चुका है.
मुराद फिलहाल मानव तस्करी के पीड़ितों के लिए संयुक्त राष्ट्र की गुडविल एंबेसडर हैं. वह कहती हैं, ‘आईएस लड़ाके हमारा सम्मान छीनना चाहते थे लेकिन उन्होंने अपना सम्मान खो दिया.’
आईएस की गिरफ़्त में रह चुकीं मुराद इसे एक बुराई मानती हैं. पकड़ने के बाद आतंकवादी मुराद को मोसुल ले गए. मोसुल आईएस के स्वघोषित खिलाफत की ‘राजधानी’ थी. दरिंदगी की हदें पार करते हुए आतंकवादियों ने उनसे लगातार सामूहिक दुष्कर्म किया, यातानांए दी और मारपीट की.
वह बताती हैं कि जिहादी महिलाओं और बच्चियों को बेचने के लिए गुलाम बाज़ार लगते हैं और यजीदी महिलाओं को धर्म बदल कर इस्लाम धर्म अपनाने का भी दबाव बनाते हैं.
मुराद ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में आपबीती सुनाई. हज़ारों यजीदी महिलाओं की तरह मुराद का एक जिहादी के साथ जबरदस्ती निकाह कराया गया. उन्हें मेकअप करने और चुस्त कपड़े पहनने के लिए मारा-पीटा भी गया.
अपने ऊपर हुए अत्याचारों से परेशान मुराद लगातार भागने की फ़िराक़ में रहती थीं और अंतत: मोसुल के एक मुसलमान परिवार की सहायता से वह भागने में कामयाब रहीं.
वह बताती हैं कि गलत पहचान पत्रों के ज़रिये वह इराकी कुर्दिस्तान पहुंचीं और वहां शिविरों में रह रहे यजीदियों के साथ रहने लगीं.
वहां उन्हें पता चला कि उनके छह भाइयों और मां को कत्ल कर दिया गया है. इसके बाद यजीदियों के लिए काम करने वाले एक संगठन की मदद से वह अपनी बहन के पास जर्मनी चली गईं. आज भी वह वहां रह रही हैं.
मुराद ने अब अपना जीवन ‘अवर पीपुल्स फाइट’ के लिए समर्पित कर दिया है.
डेनिस मुकवेगे: कांगो की महिलाओं के जख्मों को भरने वाला साहसी चिकित्सक
किन्शासा (कांगो): कांगो गणराज्य में यौन शोषण और बलात्कार की शिकार महिलाओं के ज़ख़्मों को ठीक करने और उन्हें मानसिक आघात से बाहर निकालने के सतत प्रयासों के लिए उन्हें ‘डॉक्टर मिरेकल’ के नाम से पुकारा जाता है.
डेनिस मुकवेगे दो दशक से महिलाओं को शारीरिक और मानसिक परेशानियों से निकालने के काम में लगे हुए हैं. 2015 में उनके जीवन पर आधारित फिल्म ‘द मैन हू मेंड्स विमन’ आई थी.
पांच बच्चों के पिता मुकवेगे युद्ध के दौरान महिलाओं के शोषण के मुखर विरोधी हैं.
उन्होंने 2016 में समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में कहा था, ‘हम रासायनिक हथियार, जैविक हथियार और परमाणु हथियारों के ख़िलाफ़ लक्ष्मण रेखा खींच पाए हैं, आज हमें बलात्कार को युद्ध के हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने पर भी रोक लगानी चाहिए.’
मुकवेगे ने फ्रांसीसी में अपनी आत्मकथा ‘प्ली फॉर लाइफ’ भी लिखी है जिसमें उन्होंने अपने पैतृक दक्षिण कीव प्रांत में ऐसे हादसों का ज़िक्र किया है जिन्होंने बकावू में ‘पांजी’ अस्पताल खोलने के लिए उन्हें मजबूर किया.
चिकित्सक ने उस एक घटना का ज़िक्र किया जब उन्होंने 1999 में पहली बार किसी बलात्कार पीड़िता को देखा. वह लिखते हैं कि बलात्कारी ने महिला के गुप्तांग में बंदूक डाल कर गोली चला दी थी.
उन्होंने कहा, ‘मुझे लगा कि यह किसी पागल आदमी का काम होगा, लेकिन उसी साल मैंने इसी से मिलते-जुलते 45 मामलों में महिलाओं का उपचार किया.’
बकावू अस्पताल में वह संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षकों की हिफ़ाज़त में रहते हैं.
एक मार्च 1955 में जन्मे मुकवेगे नौ भाई-बहनों के बीच तीसरे नंबर पर आते हैं. उनके पिता ने उन्हें चिकित्सक बनने के लिए प्रेरित किया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)