इस हफ्ते नॉर्थ ईस्ट डायरी में मणिपुर, त्रिपुरा, मिज़ोरम, असम, अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड के प्रमुख समाचार.
इम्फाल: तकरीबन 5 महीनों से मणिपुर विश्वविद्यालय में छात्रों, शिक्षकों और प्रशासन के बीच का तनाव कम होता नहीं दिख रहा है. स्थितियां सामान्य करने की कोशिश में गुरुवार को मणिपुर हाईकोर्ट ने कार्यवाहक कुलपति (वीसी) के युगिन्द्रो सिंह और कार्यवाहक रजिस्ट्रार श्यामकेशो को निलंबित कर दिया है.
हाईकोर्ट ने मणिपुर यूनिवर्सिटी एक्ट 2005 के अधिनियमों के अनुसार राज्य के पूर्व मुख्य सचिव जरनैल सिंह को प्रशासन का कार्यभार सौंपते हुए वीसी पद की जिम्मेदारी दी है.
जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह और के. नोबिन सिंह की बेंच ने अपने आदेश में कहा कि सिंह की नियुक्ति निलंबित रहेगी। मालूम हो कि सितंबर महीने में युगिन्द्रो सिंह को तत्कालीन कुलपति एपी पांडेय ने नियुक्त किया था. पांडेय को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा निलंबित किया गया था.
बीते 30 मई से 24 अगस्त तक यूनिवर्सिटी में अनियमितताओं, लापरवाही और कुलपति पर विभिन्न आरोप लगाते मणिपुर यूनिवर्सिटी छात्रसंघ (एमयूएसयू), मणिपुर विश्वविद्यालय टीचर्स एसोसिएशन (एमयूटीए) और मणिपुर विश्वविद्यालय स्टाफ एसोसिएशन (एमयूएसए) ने आंदोलन किया था.
मानव संसाधन विकास मंत्रालय और राज्य सरकार के दखल के बाद कुलपति को अवकाश पर भेज दिया था. लेकिन सितंबर के पहले हफ्ते में पांडेय द्वारा जारी बयान में कहा गया कि उन्होंने कार्यभार संभाल लिया है. इसका भी छात्रों, शिक्षकों और स्टाफ ने विरोध किया था.
पांडेय पर वित्तीय अनियमितता और प्रशासनिक लापरवाही के आरोपों की जांच के लिए एक कमेटी का भी गठन किया गया है. 18 सितंबर को राष्ट्रपति द्वारा इस जांच के पूरे हो जाने तक पांडेय के निलंबन के आदेश दिए गए थे.
अधिकारियों ने बताया कि मणिपुर विश्वविद्यालय एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है और विश्वविद्यालय के विजिटर होने के नाते राष्ट्रपति ने पांडेय को निलंबित किया है. पांडेय ने तब युगिन्द्रो सिंह को कुलपति बनाया था.
5 अक्टूबर को हुई पिछली सुनवाई में कोर्ट ने अभियोजन पक्ष से छात्रों के हित में यूनिवर्सिटी की स्थितियां सामान्य करने के लिए सुझाव मांगे थे. गुरुवार को जब अभियोजन पक्ष द्वारा कोई सुझाव नहीं दिया गया तब कोर्ट ने कहा कि ‘वह इसमें हस्तक्षेप करने के लिए मजबूर है.’
अदालत ने यह भी माना कि अगरइस समस्या का जल्द ही कोई समाधान नहीं ढूंढा गया तो तनाव और बढ़ेगा। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि उसकी चिंता यूनिवर्सिटी में स्थितियां सामान्य करना है न कि यह कि किसकी वजह से ‘तनाव’ की यह स्थिति उत्पन्न हुई.
अदालत ने जरनैल सिंह को कार्यवाहक रजिस्ट्रार चुनने और अपनी मदद के लिए नियुक्तियां करने के अधिकार दिए हैं. साथ ही वे यूनिवर्सिटी में स्थितियां सामान्य करने और किसी भी अप्रिय स्थिति से बचने के लिए कोई भी आदेश दे सकते हैं या रद्द कर सकते हैं.
यूनिवर्सिटी में 30 मई से कोई क्लास नहीं हुई है.
1 अक्टूबर को हाईकोर्ट में इस मामले से जुड़ी दो अलग-अलग जनहित याचिकाएं दायर की गयी थीं. कोर्ट का यह भी कहना था कि यूं तो मैनेजमेंट यूनिवर्सिटी के कार्यक्षेत्र में आता है, जिसमें अदालत का कम से कम दखल होना चाहिए, लेकिन असामान्य परिस्थितियों के चलते कोर्ट को इसमें दखल देना पड़ता है.
इससे पहले मणिपुर विश्विद्यालय के कार्यवाहक कुलपति के युगिन्द्रो सिंह ने अपने अनुचित बयान के लिए राज्यपाल नजमा हेपतुल्ला से माफी मांगी थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि राज्यपाल ने विश्वविद्यालय में हाल ही में हुए विवाद में प्रदर्शनकारियों को सरेआम समर्थन दिया था.
राजभवन के एक अधिकारी ने बुधवार को यह जानकारी दी थी. गौरतलब है कि सिंह ने केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय को तीन अक्टूबर को एक पत्र लिखकर दावा किया था कि उनके केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति का पद भार संभालने पर हेपतुल्ला ने सवाल उठाया और 21 सितंबर को एक बैठक के दौरान प्रदर्शनकारियों के प्रति समर्थन व्यक्त किया था.
सिंह ने अपने पत्र में लिखा, ‘मैं मणिपुर के माननीय राज्यपाल से अपने अनुचित और गलत बयानों के लिए बिना किसी शर्त के नम्रतापूर्वक और सम्मानपूर्वक माफी मांगता हूं जिसमें राज्यपाल से जुड़े शिष्टाचार का उल्लंघन और उपयुक्तता शामिल हैं.’
उन्होंने कहा कि ‘मानसिक दबाव’ के कारण बैठक के दौरान पूछे गए प्रश्नों को वह ठीक तरह से समझ नहीं पाए थे.
मालूम हो कि राजभवन ने मणिपुर विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति की टिप्पणियों को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बताया था जिसमें उन्होंने कहा था कि विश्वविद्यालय में हाल में हुए आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों को राज्यपाल नजमा हेपतुल्ला का खुला समर्थन हासिल था.
प्रोफेसर युगिन्द्रो को भेजे एक पत्र में राजभवन की ओर से कहा गया था कि 3 अक्टूबर को उन्होंने केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय को भेजे अपने पत्र में जो बात कही है वह मानहानिकारक है. इसमें प्रोटोकॉल और शिष्टाचार का भी खयाल नहीं रखा गया है.
राजभवन की ओर से कहा गया, ‘आपकी ओर से कही गई बात से माननीय राज्यपाल दुखी और हैरान हैं. परिसर में जो कुछ भी हुआ उससे राज्यपाल निश्चित ही परेशान हैं और चिंतित हैं. इस सब से हजारों छात्रों को अकादमिक नुकसान उठाना पड़ा है.’
युगिन्द्रो द्वारामंत्रालय को भेजे पत्र में केंद्र से कहा था कि विश्वविद्यालय को ‘आतंकियों जैसे’ आंदोलनकारियों के हाथों से बचाने के लिए वह तत्काल कदम उठाएं.
राजभवन ने पत्र में यह भी लिखा था, ‘राज्यपाल का मानना है कि यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि आपने छात्रों और शिक्षकों के लिए ‘आतंकी’ शब्द का इस्तेमाल किया, इससे परिसर में हालात और खराब हो सकते हैं.’
छात्रों ने कार्यवाहक कुलपति की इस टिप्पणी का विरोध किया था.
विश्वविद्यालय परिसर में छात्रों की पुलिस से हुई झड़प
बुधवार को विश्वविद्यालय परिसर के भीतर छात्रों की सुरक्षा बलों के साथ झड़प हुई, जिस दौरान पुलिस ने आंसू गैस के गोलों का इस्तेमाल किया. पुलिस सूत्रों ने यह जानकारी दी.
छात्र परिसर में उन सभी 15 शिक्षकों और छात्रों को बिना शर्त रिहा करने की मांग करते हुए प्रदर्शन कर रहे थे, जिन्हें सितंबर में गिरफ्तार किया गया था. तत्कालीन कार्यवाहक कुलपति द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी के बाद सितंबर में इन शिक्षकों और छात्रों को गिरफ्तार कर लिया गया था.
त्रिपुरा: भाजपा की सहयोगी आईपीएफटी ने फिर छेड़ा अलग राज्य का राग
अगरतला: सत्तारूढ़ भाजपा की सहयोगी इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) ने आदिवासी लोगों के सामाजिक.आर्थिक और राजनीतिक हितों की रक्षा के लिए एक अलग तिपरालैंड राज्य की अपनी पुरानी मांग फिर दोहरायी है.
आईपीएफटी ने यह मांग गृह मंत्रालय द्वारा स्थापित एक उच्च अधिकार समिति के समक्ष रखी है.
शुक्रवार की रात समिति को सौंपे गए ज्ञापन में कहा गया है कि अलग राज्य की मांग के कारणों का पता करने के लिए समिति को गंभीरता से प्रयास करना चाहिए तथा संबंधित मुद्दों को उसके अनुसार हल करना चाहिए.
यह पार्टी लंबे समय से तिपरालैंड राज्य की मांग करती रही है. त्रिपुरा में फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव के पहले दोनों दलों का गठबंधन बना था.
मार्च में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने आईपीएफटी के साथ गठजोड़ किया था. राज्य में करीब 31 फीसदी आबादी आदिवासियों की है.
आईपीएफटी लम्बे समय से अलग राज्य की मांग उठाती रही है. हालांकि भाजपा ने चुनाव के समय कहा था कि उनके साथ गठबंधन के लिए आईपीएफटी ने अपनी इस मांग को दरकिनार किया है.
मिज़ोरम: कांग्रेस ने की उम्मीदवारों की घोषणा, मुख्यमंत्री ललथनहवला दो सीटों से लड़ेंगे चुनाव
आइजोल: मिज़ोरम की 40 सदस्यीय विधानसभा के लिए 28 नवंबर को होने वाले चुनाव में मुख्यमंत्री एवं प्रदेश कांग्रेस प्रमुख ललथनहवला दो सीटों से लड़ेंगे.
ललथनहवला ने बीते बृहस्पतिवार को आइजोल कांग्रेस भवन में पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक में उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की.
सात मौजूदा विधायकों को इस बार टिकट नहीं मिला है, जबकि 12 उम्मीदवार पहली बार चुनाव लड़ेंगे.
मुख्यमंत्री ललथनहवला दो सीटों- सेरछिप और चंफाई दक्षिण से चुनाव लड़ेंगे.
दो विधायकों के निकलने से संभावनाओं पर नहीं पड़ेगा असर
इससे पहले सत्तारूढ़ कांग्रेस ने बुधवार को कहा था कि पार्टी से दो वरिष्ठ विधायकों का जाना विधानसभा चुनाव में उसकी संभावनाओं को प्रभावित नहीं करेगा और उसे तीसरे कार्यकाल के लिए राज्य की सत्ता में वापसी का भरोसा है.
एआईसीसी महासचिव और पूर्वोत्तर प्रभारी लुइजिन्हो फलेरो ने कहा, ‘32 विधायकों के साथ, मुझे यकीन है कि हम लगातार तीसरी बार सरकार बनाने के लिए आसानी से बहुमत हासिल करेंगे. मिज़ोरम की जनता ने मुख्यमंत्री लाल थानहावला के नेतृत्व में भरोसा नहीं खोया है.’
फलेरो ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि दो विधायक भले ही चले गये हों लेकिन सैकड़ों अन्य पूर्वोत्तर क्षेत्र में एकमात्र कांग्रेस नीत राज्य मिज़ोरम में पार्टी में शामिल हो रहे हैं.
गृह मंत्री आर. लालजिरलियाना ने 14 सितंबर को इस्तीफा दे दिया था. इससे तीन दिन पहले उन्हें एमसीसीसी अनुशासनात्मक समिति ने पार्टी कार्यकर्ताओं को भ्रमित करने के आरोप में कारण बताओ नोटिस भेजा था. उन्हें बाद में निष्कासित कर दिया गया था.
एक अन्य विधायक और पूर्व मंत्री लालरिनलियाना सैलो ने इसी महीने पद से इस्तीफा दे दिया था. दोनों नेताओं के विपक्षी ‘मिजो नेशनल फ्रंट’ के बैनर से चुनावी मैदान में उतरने की संभावना है.
कांग्रेस को मिल रही है कड़ी चुनौती
लगातार दो बार सत्ता में बने रहने के बाद आंतरिक तकरार और सत्ता विरोधी लहर की वजह से कांग्रेस के लिये मिज़ोरम में मुश्किल खड़ी होती दिख रही है और उसे आगामी विधानसभा चुनाव में मिजो नेशनल फ्रंट से कड़ी चुनौती मिलने की उम्मीद है.
मुख्यमंत्री ललथनहवला ने 6 अक्टूबर को आरोप लगाया था कि उनके पूर्व कैबिनेट सहयोगी आर ललजीरलियाना और ललरिनलियाना साइलो जब मंत्री थे तो ‘भ्रष्ट’ थे.
ज्ञात हो कि ललजीरलियाना प्रदेश के गृह मंत्री थे और उन्होंने 14 सितंबर को इस्तीफा दिया था. कांग्रेस की अनुशासनात्मक कार्रवाई समिति (डीएसी) द्वारा कारण बताओ नोटिस दिये जाने के बाद उन्हें 17 सितंबर को पार्टी से निकाल दिया गया था.
पूर्व मंत्री साइलो के कांग्रेस पार्टी से हाल में दिये गए इस्तीफे को भी सत्ताधारी पार्टी के लिए बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है.
नगालैंड: एनपीएफ की अपील, नगा शांति वार्ता में तेजी लाएं
कोहिमा: विपक्षी नगा पीपल्स फ्रंट (एनपीएफ) ने नगा नेशनल वर्कर्स और केंद्र से अपील की है कि वह नगा शांति वार्ता में तेजी लाएं और इसे इसके तार्किक अंत तक पहुंचाएं.
यह अपील एनपीएफ की तीसरी केंद्रीय कार्यकारी परिषद की मंगलवार को कोहिमा में हुई बैठक में लाए गए प्रस्ताव के मुताबिक की गई.
एनपीएफ ने शांति प्रक्रिया में शामिल नहीं होने वाले नगा राष्ट्रीय समूहों से अनुरोध किया कि नगा लोगों के हित में वह अपने फैसलों पर विचार करें.
परिषद में शुरूहोजेली लिजित्सू को पार्टी अध्यक्ष बनाए रखने और टीआर जेलियांग को एनपीएफ विधायक दल का नेता बनाए रखने पर सहमति बनी.
पूर्वोत्तर छात्रों के संगठन ने की पूरे नॉर्थ ईस्ट में की एनआरसी की मांग
नई दिल्ली: पूर्वोत्तर के छात्रों के एक प्रभावशाली संगठन ने बृहस्पतिवार को केंद्र से पूरे क्षेत्र में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) लागू करने का आग्रह किया ताकि वहां रह रहे अवैध प्रवासियों का पता लगा कर उन्हें निर्वासित किया जाए.
द नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन (एनईएसओ) ने यह भी दावा किया कि चीन अरुणाचल प्रदेश के उन निवासियों को अब भी नत्थी वीजा जारी कर रहा है, जो वहां की यात्रा करना चाहते थे.
संगठन ने केंद्र से यह मुद्दा चीनी अधिकारियों के साथ उठाने का आग्रह किया.
एनईएसओ के अध्यक्ष सैमुअल बी जिरवा ने यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘बांग्लादेश से अवैध प्रवासियों की घुसपैठ लगातार जारी है. हम मांग करते हैं कि असम की तरह पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र में एनआरसी लागू किया जाना चाहिए.’
एनईएसओ के प्रतिनिधिमंडल ने बुधवार को केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह और गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू से मुलाकात की और अपनी मांगों को उनके समक्ष रखा.
एनईएसओ के सलाहकार एस के भट्टाचार्य ने कहा कि हमारा मानना है कि कोई भी प्रवासी जो बिना वैध दस्तावेजों के भारत में रह रहा है, वह अवैध प्रवासी है, भले ही वह किसी भी धर्म का अनुयायी हो.
त्रिपुरा: कांग्रेस ने फर्जी अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र मामले में पूर्व विधायक से धन वसूलने की मांग उठाई
अगरतला: त्रिपुरा उच्च न्यायालय द्वारा आरएसपी के पूर्व विधायक की याचिका खारिज किए जाने के बाद कांग्रेस ने उनसे वह धन लौटाने की मांग की है जो उन्होंने विधायक के रूप में प्राप्त किया था.
दरअसल राज्य सरकार ने अपनी एक जांच रिपोर्ट में कहा था कि विधायक का अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र फर्जी है. विधायक ने इस रिपोर्ट को त्रिपुरा उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी.
प्रदेश कांग्रेस अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के महासचिव रतन दास ने बृहस्पतिवार को कहा, ‘हम चाहते हैं कि सरकार पार्थ दास से वेतन, भत्ते, पेंशन तथा अन्य खर्च वसूले जो उन्होंने विधायक के तौर पर लिए हैं.’
इसके साथ ही उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार मीरा दास को शालगढ़-ककराबन विधानसभा सीट से विजयी घोषित करने की भी मांग की, जहां से वह 2008 के चुनाव में पार्थ दास से हार गईं थीं.
गौरतलब है कि वाम मोर्चा के शासन के दौरान राज्यस्तरीय जांच समिति ने 2012 में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि दास का अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र फर्जी है.
इसके बाद दास ने इस रिपोर्ट को त्रिपुरा उच्च न्यायालय की एकल पीठ के समक्ष चुनौती दी थी और जस्टिस टीएनके सिंह ने उसी वर्ष उनकी याचिका खारिज कर दी थी.
मिज़ोरम: चकमा स्वायत्ता जिला परिषद को रद्द करने की मांग को लेकर मिजो एसोसिएशन ने निकाली रैलियां
आइजोल: मिज़ोरम में बुधवार को हजारों लोगों ने चकमा स्वायत्ता जिला परिषद (सीएडीसी) को निरस्त करने की मांग को लेकर कई इलाकों में रैलियां निकाली.
सीएडीसी की स्थापना वर्ष 1972 में हुई थी. इन रैलियों का आयोजन यंग मिजो एसोसिएशन (वाईएमए) ने किया.
वाईएमए के अध्यक्ष वानलालरूता ने कहा कि सीएडीसी का गठन 1972 में हुआ था और इसमें मिज़ोरम की जनता की राय नहीं ली गई थी.
उन्होंने कहा कि बांग्लादेशी घुसपैठियो के लिए परिषद सुरक्षित ठिकाना बन गई है.
नगालैंड: जेलियांग ने एनपीएफ में मतभेद के एनडीपीपी के दावे को खारिज किया
कोहिमा: नगालैंड में सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी नगा पीपुल्स फ्रंट(एनपीएफ) ने कहा है कि पार्टी में कोई मतभेद नहीं है.
विपक्षी एनपीएफ ने नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के उस दावे को भी खारिज किया है कि उसके 14 विधायक सत्तारूढ़ पीडीए गठबंधन की दो सहयोगी पार्टियों में शामिल होने के इच्छुक हैं.
राज्य में सत्तारूढ़ पीडीए में एनडीपीपी (17), भाजपा (12), जदयू (1), नेशनल पीपुल्स पार्टी (2) और एक निर्दलीय विधायक है. प्रदेश की 60 सदस्यीय विधानसभा में एक सीट एनडीपीपी के विधायक के निधन से रिक्त है.
एनपीएफ नेता टीआर जेलियांग ने मंगलवार को तीसरी केंद्रीय कार्यकारिणी परिषद की बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि पार्टी में किसी प्रकार का कोई मतभेद नहीं है. साथ ही उन्होंने एनडीपीपी के उस दावे को भी खारिज किया कि एनपीएफ के 26 विधायकों में से सात एनडीपीपी के साथ और सात भाजपा में शामिल होना चाहते हैं.
एनडीपीपी की अगुवाई वाली पीडीए सरकार को सत्ता से बेदखल करने के जेलियांग के कथित कदम के बारे में पूछे जाने पर पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, ‘एनपीएफ विधायी दल ने मुझे अधिकृत किया है वहीं पार्टी ने गठबंधन सरकार बनाने के लिए निर्णय अध्यक्ष पर छोड़ दिया है और इस प्रकार को कोई भी निर्णय सामूहिक निर्णय होगा.’
उन्होंने कहा, ‘हम जल्दबाजी में नहीं है क्योंकि लक्ष्य हासिल करने के लिए धैर्य सबसे अचूक नुस्खा है.’
असम और अरुणाचल प्रदेश में टूजी प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल पर केंद्र व बीएसएनएल को नोटिस
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र एवं दूरसंचार परिचालक बीएसएनएल को अरुणाचल प्रदेश और असम के दो जिलों में ‘पुरानी पड़ चुकी’ टूजी प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल के लिए हुए एक समझौते को रद्द करने की मांग करने वाली याचिका पर सोमवार को नोटिस जारी किया.
जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने केंद्र और भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) को इस सिलसिले में नोटिस जारी किया है. दरअसल, याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि दूरसंचार नियामक ट्राई और दूरसंचार विभाग द्वारा इसे अप्रचलित बताए जाने के बावजूद टूजी प्रौद्योगिकी का इन इलाकों में इस्तेमाल किया जा रहा.
याचिका गैर सरकारी संगठन टेलीकॉम वाचडॉग ने दायर की है. उसने दिल्ली उच्च न्यायालय के 13 अगस्त के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसके तहत इस सिलसिले में इसकी याचिका खारिज कर दी गई थी.
एनजीओ की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि कार्य के अनुबंध के मुताबिक इसकी लागत 80 लाख रुपये प्रति टावर आई, जबकि टूजी आधारित प्रौद्योगिकी के लिए प्रति टावर 11 लाख रुपये की लागत होनी चाहिए थी.
याचिका के जरिए समझौते को रद्द करने की मांग की गई है जो दूरसंचार विभाग और सरकारी कंपनी बीएसएनएल के बीच इस साल 16 जनवरी को हुई थी.
इस समझौते के तहत अप्रचलित टूजी प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल का अधिकार दिया गया जो 2,258 करोड़ रुपये की लागत से दो निजी कंपनियों से खरीदी गई.
त्रिपुरा: राज्य में एनआरसी की मांग की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को उस याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब तलब किया, जिसमें अवैध प्रवासियों की पहचान के लिए त्रिपुरा में एनआरसी लागू करने की मांग की गई है.
प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने त्रिपुरा पीपुल्स फ्रंट (टीपीएफ) की ओर से दायर याचिका पर विचार किया. याचिका में अवैध प्रवासियों की पहचान के लिए एनआरसी में त्रिपुरा के नागरिकों के पंजीकरण की मांग की गई है.
राज्य के एक संगठन, दोफा योकसामा बोडोल, ने भी इस मुद्दे पर इसी तरह की याचिका दायर की है.
याचिका में दावा किया गया है कि बांग्लादेश से त्रिपुरा में अवैध प्रवासियों के काफी संख्या में आने से राज्य में बड़ा जनसांख्यिकीय परिवर्तन हुआ है.
हालांकि केंद्र सरकार ने 5 अक्टूबर को स्पष्ट किया था कि उसकी त्रिपुरा में एनआरसी लागू करने की कोई योजना नहीं है.
गृह मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि ‘इंडिजिनस नेशनलिस्ट पार्टी आफ त्रिपुरा’ (आईएनपीटी) के अध्यक्ष बिजॉय कुमार हरांगखावल के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने गुरुवार को गृह मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की लेकिन राज्य में एनआरसी लागू करने के संबंध में दल को कोई आश्वासन नहीं दिया गया.
बयान में कहा गया, ‘गृह मंत्री ने चार अक्टूबर को आईएनपीटी के अध्यक्ष बिजॉय कुमार हरांगखावल के नेतृत्व एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की. गृह मंत्री ने त्रिपुरा में एनआरसी को लागू करने के संबंध में किसी तरह का कोई आश्वासन नहीं दिया. यह स्पष्ट किया जाता है कि त्रिपुरा में एनआरसी के मुद्दे पर कोई निर्णय नहीं किया गया है.’
मंत्रालय यह भी कहा कि त्रिपुरा में एनआरसी को लागू किये जाने की संभावना के बारे में आ रहे समाचार ‘पूरी तरह से अनुचित और गलत’ हैं.
हालांकि इस बीच खुद मुख्यमंत्री बिप्लब देब कह चुके हैं कि असम में एनआरसी लाना सफल हुआ तो त्रिपुरा में एनआरसी लागू किया जायेगा.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)